भारत की नई उड़न परी हिमा दास ने गुरुवार को फिनलैंड के टेंपेरे में जारी आईएएएफ वर्ल्ड अंडर-20 चैंपियनशिप में इतिहास रच दिया। हिमा ने महिलाओं की 400 मीटर स्पर्धा में गोल्ड मेडल जीता है। आइए जानें कौन हैं हिमा दास और कैसा रहा उनका सफर....


कौन हैं हिमा दासकानपुर। आइएएफ वर्ल्ड अंडर 20 चैंपियनशिप में भारत का नाम रोशन करने वाली 18 साल की हिमा दास असम की रहने वाली हैं। पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी हिमा दास के पिता रंजीत दास धान की खेती करते हैं। घर पर हिमा के खेल को पहले कोई महत्व नहीं दिया जाता था। उनके पिता के पास हिमा को ट्रेनिंग देने के पैसे नहीं थे। घर की माली हालत सही न होने के बावजूद हिमा ने हिम्मत नहीं हारी और कड़ी मेहनत के दम पर आज भारत को गोल्ड मेडल दिलाया। ईएसपीएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हिमा ने अपने शुरुआती करियर में काफी संघर्ष किया। उनके रास्ते में तमाम बाधाएं आईं मगर हिमा ने अपने कोच निपुण दास की देखरेख में नई ऊंचाईयों को छुआ।फुटबॉलर बनने का देखा था सपना


एथलेटिक्स से पहले हिमा को फुटबॉल में रुचि थी। अपने गांव में वह स्कूल फुटबॉल टीम की प्लेयर रहीं। हिमा की मानें तो, वह बतौर स्ट्राइकर लोकल फुटबॉल क्लब की तरफ से खेल चुकीं और उन्होंने लगता था कि वह एक दिन भारत के लिए खेलेंगी। हालांकि साल 2016 में उनके स्कूल के स्पोर्ट्स टीचर ने जब हिमा को बताया कि फुटबॉल उतना आसान नहीं है जितना वे समझती हैं। तब टीचर ने हिमा को किसी इंडिविजुअल स्पोर्ट्स खेलने की सलाह दी और हिमा ने एथलेटिक्स की ओर रुख किया। उस वक्त गांव में ट्रैक फील्ड नहीं हुआ करती थी, ऐसे में हिमा दलदले फुटबॉल मैदान पर ही दौड़ने की प्रैक्टिस करती थी। इसके बाद हिमा की पहली परीक्षा गुवाहाटी में आयोजित स्टेट चैंपियनशिप में हुई। तब हिमा ने 100 मी की दौड़ में हिस्सा लिया और ब्रांज मेडल जीता।बिना ट्रेनिंग लिए दौड़ गईं ट्रैक परअसम एक ऐसा राज्य है जो अपनी खेल प्रतिभाओं के लिए नहीं जाना जाता है। ऐसे में जब हिमा ने एथलेटिक्स में थोड़ा बेहतर करना शुरु किया तो कुछ लोगों को हिमा से ज्यादा उम्मीदें हो गईं। पिछले साल कोयंबटूर में आयोजित जूनियन नेशनल चैंपियनशिप में हिमा ने 100 मी कर दौड़ में फाइनल में जगह बनाई। इस प्रतियोगिता में असम टीम के साथ जुड़े रहे नभजीत मलाकर कहते हैं, 'यह काफी अविश्वसनीय सा लग रहा था कि एक लड़की जिसे सही से ट्रेनिंग भी नहीं मिली उसने फाइनल में जगह बना ली।' खैर हिमा तब फाइनल तो नहीं जीत सकी मगर उन्होंने जता दिया कि वह बहुत आगे जाएंगी।

ऐसे बढ़ा करियर

हिमा को कोचिंग दे रहे निपुण दास कहते हैं, हिमा साल 2017 में गुवाहाटी में स्थानीय कैंप में हिस्सा लेने आईं थी। वह जिस जरह से ट्रैक पर वह जिस तरह से ट्रैक पर दौड़ रही थीं, मुझे लगा कि इस लड़की में आगे तक जाने की काबिलियत है। इसके बाद निपुण हिमा के गांव में उनके माता पिता से मिलने गए और उनसे कहा कि वे हिमा को बेहतर कोचिंग के लिए गुवाहाटी भेज दें। हिमा के माता-पिता गुवाहाटी में उनके रहने का खर्च नहीं उठा सकते थे लेकिन बेटी को आगे बढ़ते हुए भी देखना चाहते थे। निपुण ने उनसे कहा कि मैं हिमा का खर्च उठाऊंगा। बस आप उसे बाहर आने की मंजूरी दें। शुरुआत में 200 मीटर की तैयारी करवाई, लेकिन बाद में उन्हें अहसास हुआ कि वह 400 मीटर में अधिक कामयाब रहेंगी। हिमा ने अप्रैल में गोल्ड कोस्ट कॉमनवेल्थ खेलों की 400 मीटर की स्पर्धा में छठा स्थान हासिल किया था। निपुण बताते हैं कि नौगांव में अक्सर बाढ़ के हालात बन जाते हैं, वह जगह बहुत अधिक विकसित नहीं है। जब हिमा गांव में रहती थी तो बाढ़ की वजह से कई-कई दिन तक अभ्यास नहीं कर पाती थी, क्योंकि जिस खेत या मैदान में वह दौड़ की तैयारी करती, बाढ़ में वह पानी से लबालब हो जाता।अब रच दिया इतिहासहिमा ने राटिना स्टेडियम में खेले गए फाइनल में सिर्फ 51.46 सेकेंड का समय निकालते हुए जीत हासिल की। इसी के साथ वह इस चैंपियनशिप में सभी आयु वर्गों में स्वर्ण जीतने वाली भारत की पहली महिला बन गई हैं। वह हालांकि इस प्रतियोगिता के इतिहास में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली ट्रैक खिलाड़ी हैं। विश्व जूनियर चैंपियनशिप में भारत के लिए इससे पहले सीमा पूनिया 2002 में चक्का फेंक में कांस्य और नवजीत कौर ढिल्लों 2014 में चक्का फेंक में कांस्य पदक जीत चुके हैं।अब साड़ी में नहीं इस ड्रेस में नजर आएंगी भारतीय महिला एथलीट

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari