Allahabad : अगर देखा जाए तो हिंदी भाषी राजनेता को हिंदी की एक भी कविता याद नहीं होगी. यही कारण है कि हिंदी का अस्तित्व लगातार कमजोर होता जा रहा है. घरों से साहित्य की किताबें गायब होती जा रही हैं. हिंदी को प्रमोट करने के लिए जो संस्थाएं बनी थीं वह भी बंद होने की कगार में पहुंच गई हैं. यही कारण है कि उत्तर भारतीय समाज में लेखकों का समुचित सम्मान नहीं हो रहा है. संडे को यह बात जाने-माने कवि डॉ. अशोक वाजपेयी ने कही. वह एनसीजेडसीसी में आयोजित मीरा स्मृति सम्मान प्रोग्राम की अध्यक्षता कर रहे थे. मीरा स्मृति सम्मान में साहित्य की दुनिया की पांच विभूतियों को सम्मानित किया गया. प्रोग्राम में डॉ. ममता कालिया रविंद्र कालिया नासिरा शर्मा डॉ. अनीता गोपेश सहित साहित्य जगत की हस्तियां मौजूद रहीं.

 

 

पांच हस्तियों को किया गया सम्मानित 

मीरा स्मृति सम्मान से संडे को साहित्य जगत की पांच हस्तियों को सम्मानित किया गया। इसमें प्रो। वी विजयालक्ष्मी, प्रो। काशीनाथ सिंह, पद्मश्री शम्सुर्ररहमान फारुकी, प्रो। राजेंद्र कुमार व प्रो। रेवा प्रसाद द्विवेदी शामिल रहे। सम्मान ग्रहण करने के दौरान प्रो। वी विजयालक्ष्मी ने कहा कि किसी भी सम्मान के मिलने से साहित्यकार की जिम्मेदारी बढ़ जाती है, आज वह इस बात को महसूस भी कर रही है्र। उन्होंने बताया कि साहित्य समाज को एक दिशा देने का काम करता था, लेकिन वर्तमान में साहित्य के प्रति कम होते लगाव से समाज में कई तरह की बुराइयां फैल रही हैं। सम्मान समारोह में प्रो। रेवा प्रसाद द्विवेदी नहीं आ पाए थे। इस दौरान 9 कृतियों का भी अनावरण किया गया. 

जिंदगी की रफ्तार में कहानी लड़खड़ाते चल रही है 

सम्मान समारोह में हिंदी कहानी में मध्य वर्ग सब्जेक्ट पर एक गोष्ठी भी हुई। इस पर बोलते हुए साहित्यकार रविंद्र कालिया ने कहा कि जिंदगी की रफ्तार के आगे हिंदी कहानी लड़खड़ाते हुए चल रही है। वहीं काशीनाथ सिंह ने कहा कि मध्य वर्ग न होता तो साहित्य कला न होती। उन्होंने कई एग्जाम्पल देते हुए हिंदी कहानी में मध्य वर्ग की बात भी कही। उन्होंनें यह भी कहा कि सारी कथाएं मध्य वर्ग की भी उत्पाद है। वहीं नासिरा शर्मा ने कहा की चूंकि ज्यादातर लेखक मध्य वर्ग से आते थे, इसलिए कहानी में मध्य वर्ग की प्रधानता रही है। डॉ। दामोदर दत्त दीक्षित ने कहा कि 40 फीसदी लोग गरीबी रेखा से नीचे भी आते हैं। ऐसे में रचनाकारों को इन विषयों पर भी सोचना चाहिए. 

इन विभूतियों को मिला मीरा स्मृति सम्मान 

-प्रो। काशीनाथ सिंह-

 प्रेमचंद की परंपरा के कथाकार काशीनाथ सिंह को माना जाता है। वह काशी हिंदी विश्वविद्यालय से प्रोफेसर व अध्यक्ष पद से रिटायर हुए हैं। 1960 से वह सक्रिय लेखन से जुड़े हैं। अबतक 12 कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैें, जिसमें लोग बिस्तरों पर, काशी का अस्सी, नई तारीख प्रमुख रही है। 'काशी का अस्सीÓ पर फिल्म भी तैयार की जा रही है. 

-पदम श्री शम्सुर्ररहमान फारूकी 

फारुकी अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त उर्दू के साहित्यकार है। पोस्टल डिपार्टमेंट से रिटायर होने के बाद इस वक्त स्वंतत्र लेखन से जुड़े हुए है। वह यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिलवानिया में भी अध्यापन किया है। 1996 में सरस्वती सम्मान भी मिल चुका है। उनकी दर्जनों कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। अंग्रेजी में द सीक्रेट मिरर, हाउ टू रीड इकबाल व उर्दू में फारुकी के तब्सिरे, अफसाने की हिमायत सहित दर्जनों चर्चित कृतियां रही हैं. 

-प्रो। रेवा प्रसाद द्विवेदी

- सनातम नाम से संस्कृतभाषा और साहित्य को गौरवान्वित किया है। प्रो। द्विवेदी बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे है। संस्कृत विषय की सेवा के लिए उनको राष्ट्रपति सम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका है। उन्होंने अपने लेखन में साहित्य की विविध विधाओं को संकलित किया है। उनके 25 गीति काव्य प्रकाशित हो चुके हैं. 

-प्रो। वी विजयालक्ष्मी-

 हिंदी, अंग्रेजी, तेलगू व संस्कृत में समान अधिकार रखने वाली प्रो। विजयालक्ष्मी ने दक्षिण में हिंदी का सूर्य उदय किया है। उन्होंने पांडिचेरी में हिंदी का अध्यापन कार्य किया है। अभी तक दर्जनों पुस्तके लिख चुकी हैं। उनकी चर्चित पुस्तक नीली चंदुड़, श्री अरविंद और श्री मां के साथ पृथ्वी सिंह सहित दर्जनों चर्चित पुस्तक रही है. 

-प्रो राजेंद्र कुमार- 

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर व हिंदी विभाग के अध्यक्ष पद से रिटायर हुए। 1978 में पहली कृति ऋण, गुणा और ऋण आई थी। अब तक दर्जनों पुस्तके आ चुकी है। गणेश शंकर विधार्थी से सम्मानित हो चुके है। शब्द घड़ी में समय, हर कोशिश है एक बगावत जैसी कई चर्चित पुस्तके लिखी है. 

Posted By: Inextlive