जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में समझौते के अंतिम मसौदे को भारत चीन और अमेरिका समेत 196 देशों ने मंजूरी दे दी गई है। इसी के साथ यह सभी देश वैश्विक तापमान दो डिग्री सेल्सियस से काफी कम रखने में अपना अहम योगदान देने पर राजी हो गए हैं। भारतीय प्रस्ताव के तहत इस समझौते का सबसे अहम पहलू यह है कि वर्ष 2020 से विकासशील देशों को इस पर्यावरण संकट से निपटने के लिए आर्थिक सहायता मिलेगी। फिलहाल पांच साल बाद प्रतिवर्ष यह रकम 100 अरब डॉलर लगभग 670000 करोड़ रुपये होगी।

ऐसी है जानकारी
पेरिस में शनिवार को हुए ऐतिहासिक समझौते के तहत ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्यिस तक सीमित रखने की चुनौती और भी कड़ी हो सकती है, क्योंकि यह महत्वाकांक्षी लक्ष्य आवश्यकतानुसार 1.5 डिग्री सेल्सियस भी हो सकता है। हालांकि इतना कठिन लक्ष्य विकासशील देशों जैसे भारत और चीन को मंजूर नहीं होगा। यह दोनों देश चाहते हैं कि लक्ष्य को 2 डिग्री सेल्सियस से कम का ही रखा जाए ताकि वह अपने प्राकृतिक संसाधनों जैसे कोयले का लंबे समय तक उपयोग कर सकें।
करतल ध्वनि के साथ किया स्वागत
हालांकि इस ऐतिहासिक मसौदे को पेश करने के दौरान फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद और विदेश मंत्री लारेल फैबियस का सभी 195 देशों के प्रतिनिधियों ने करतल ध्वनि के साथ स्वागत किया। इस मौके पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव बॉन की मून भी मौजूद थे। फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने सभी देशों से इस समझौते को लागू करने की अपील की। बॉन की मून ने कहा कि प्रकृति खतरे के सिग्नल दे रही है। लोगों और देशों को इतना बड़ा खतरा पहले कभी महसूस नहीं हुआ था। हमें वैसा ही करना होगा जैसा वैज्ञानिक आधार पर करने की जरूरत है, जिस ग्रह पर हम रह रहे हैं, हमें उसे बचाना ही होगा।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया कि जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में समझौते पर मंजूरी से पहले मौजूद प्रतिनिधियों को मसौदे को पढ़ने के लिए तीन घंटे का अतिरिक्त समय दिया गया था। इस बीच, फ्रांस के राष्ट्रपति ओलांद ने फोन करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नवीनतम घटनाक्रम पर बातचीत की। पीएम मोदी ने फ्रांस्वा के इस कदम को सराहा।
विदेश मंत्री ने कहा
फ्रांस के विदेश मंत्री फैबियस ने कहा कि 13 दिन की कड़ी मशक्कत के बाद इस अंतिम मसौदे को उचित, टिकाऊ और कानून सम्मत पाया गया। उन्होंने कहा कि समझौता वैश्विक तापमान 2 डिग्री से काफी कम रखने पर हुआ है। कोशिश ये की जाएगी कि महत्वाकांक्षी लक्ष्य 1.5 डिग्री सेल्यिस को भी छुआ जा सके।
हर पांच साल बाद करना होगा ये
इस जलवायु समझौते के तहत पांच साल बाद यानी 2020 से हर साल विकासशील देशों को कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने के लिए 100 अरब डॉलर (करीब 6,70,000 करोड़ रुपये) हर साल मुहैया कराना होगा। इसका भी अहम पहलू यह है कि वर्ष 2025 तक यानी दस साल बाद विकासशील देशों के लिए इस सालाना मदद को 100 अरब डॉलर से अधिक करने पर भी विचार होगा।
100 अरब डॉलर है न्यूनतम रकम
चूंकि सीमित कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए 100 अरब डॉलर न्यूनतम रकम है। फैबियस ने कहा कि अगर सभी देशों ने इस समझौते को अमल में लाकर इसका पालन करके ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाई तभी इस समझौते की सफलता अन्यथा यह समझौता विफल हो जाएगा।

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Posted By: Ruchi D Sharma