'आज जैसे हालात में ही पैदा हुए थे हिटलर'
प्रजातंत्र में राजनीतिक दल ही सबसे महत्वपूर्ण होते हैं और उन्हीं के बीच में राजनीतिक शक्ति के लिए प्रतिस्पर्धा होती है.लेकिन हम अब भी किसी ऐसे व्यक्तित्व की तलाश में रहते हैं जो राजनीतिक क्षेत्र में मार्गदर्शन प्रदान कर सके.राजनीतिक दलों के लीडर भी धीरे-धीरे निरंकुश प्रजातंत्रवादी हो गए हैं और वे अपने दल में किसी भी लीडर का क़द ऊपर नहीं उठने देते ताकि वह कभी भी उनके लिए एक चुनौती बनकर न उभरे.राजनीतिक दलों के पास भी आम तौर पर कोई ठोस राजनीतिक एजेंडा नहीं होता है और उसके अभाव में उनके पास किसी करिश्माई राजनेता को बढ़ावा देने के अलावा कोई चारा नहीं होता है.मीडिया का किरदार
कभी-कभी किसी नेता में कुछ करिश्माई तत्व होते हैं और कभी-कभी उनके अभाव में उसके व्यक्तित्व में ज़बरदस्ती वो तत्व पैदा करने या दिखाने की कोशिश की जाती है. मुद्दों के अभाव में राजनेता ख़ुद ब ख़ुद महत्वपूर्ण हो जाते हैं.
आज के दौर में इसका उदाहरण राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी हैं. कांग्रेस में भले ही कितने बड़े और ऊंचे क़दम वाले राजनेता हों लेकिन राहुल गांधी के सामने किसी और का क़द ऊंचा नहीं होने दिया जा सकता. किसी चुनावी जीत में उनकी कोई भूमिका हो या न हो लेकिन पार्टी के सभी लोग उसका श्रेय कांग्रेस उपाध्यक्ष को देते हैं.आज कांग्रेस जो भी करती है उसका श्रेय राहुल गांधी को मिलता है और बीजेपी जो भी करती है उसका श्रेय नरेंद्र मोदी को दिया जाता है.साफ है कि आज राजनीतिक दलों के नेताओं का क़द अपने दल से ऊँचा हो गया है. इसका अर्थ यह नहीं है कि उन्होंने इतना अच्छा काम किया है कि परन्तु उन्होंने अपने दल की अपेक्षा अपने क़द को इस प्रकार प्रचारित किया है कि उनके दल को उनके व्यक्तित्व से पहचाना जाता है.उनकी पार्टी जो कुछ भी करती है वह हर कार्य का श्रेय खुद ही ले लेते हैं और इस प्रकार पार्टी को या उसके किसी सदस्य को किसी कार्य का श्रेय नहीं मिलता. अतः उनकी पहचान पार्टी या उसके किसी भी नेता से अधिक उजागर हो जाती है.हानिकारक सोचइस प्रकार का अवतारवाद किसी भी प्रजातंत्र के लिए अच्छा नहीं है. आने वाले समय में यह क्या रूप ले सकता है, उसकी मिसाल नरेन्द्र मोदी के व्यक्तित्व की जिस प्रकार से बेचा गया है, उसमें मिलती है.
जर्मनी और इटली का इतिहास बताता है कि इस प्रकार की सोच हमारे लिए कितनी हानिकारक हो सकती है.