बिहार में एचआईवी संक्रमित एक मरीज़ के साथ डॉक्टरों के कथित तौर पर भेदभाव बरतने और इलाज में बेरुखी दिखाने का मामला पिछले कुछ दिनों से मीडिया की सुर्खियों में है.


इस दौरान सोमवार नौ सितम्बर को मरीज़ की मौत के बाद राज्य सरकार और मानवाधिकार आयोग ने भी इसका संज्ञान ले लिया है.मामला बिहार के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल (पीएमसीएच) से जुड़ा है. एचआईवी संक्रमित मरीज़ विनीता (बदला हुआ नाम) की मौत के बाद अस्पताल प्रबंधन कई सवालों के घेरे में आ गया है.विनीता की मौत के बाद जो सबसे बड़ा सवाल सामने आ रहा है वो यह है कि जब मरीज़ को 'एक्यूट इंस्टेस्टाइन ऑब्सट्रक्शन' था तो तुरंत उसकी सर्जरी क्यों नहीं की गई.साथ ही महिला को महीने भर में अस्पताल में छह-छह बार रजिस्ट्रेशन कराना पड़ा. भर्ती होने के बाद अस्पताल से उनकी बेडसीट टिकट गायब हो गई और इमरजेंसी वार्ड के 'ओपीडी' और इंडोर रजिस्टर में मरीज़ का नाम नहीं होना भी पीएमसीएच को सवालों के घेरे में ला रहा है.जाँच


बबलू की लंबी भागदौड़ के बाद पाँच सितंबर को विनीता को अस्पताल में दाखिला मिल पाया. लेकिन इसके बाद भी बेमन से ही इलाज किया जाता रहा और डॉक्टरों की कोशिश रही है कि मरीज़ को कम-से-कम छूना पड़े.

बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव दीपक कुमार कहते हैं, "मीडिया रिपोर्टों के आधार पर जब मैंने टेलीफोन पर पीएमसीएच प्रबंधन से इस संबंध में जानकारी मांगी थी. मुझे बताया गया था कि बिना किसी भेदभाव के सही इलाज किया जा रहा है. लेकिन अब विनीता की मौत के बाद जांच टीम का गठन कर दिया है और जांच रिपोर्ट के आधार पर आवश्यक कार्रवाई की जाएगी."बिहार में एचआईवी संक्रमित लोगों के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता ज्ञानरंजन कहते हैं, "विनीता की मौत प्रशासनिक लापरपाही का नतीजा है. बिहार में अस्पताल, स्वास्थ्य विभाग, मानवाधिकार आयोग या फिर दूसरे प्रशासनिक महकमे, ये सभी एचआईवी पीड़ित मरीज़ों के प्रति संवेदनशील नहीं हैं और ये ऐसे मरीज़ों के जीवित रहते हरकत में नहीं आते हैं."

Posted By: Satyendra Kumar Singh