रांची: लॉकडाउन में जो जहां है, वहीं फंसा हुआ है। इसमें सबसे ज्यादा परेशानी बाहर रह कर पढ़ने वाले स्टूडेंट्स को हो रही है। लगभग दो महीने के लॉकडाउन के बाद अब इनके भी सब्र का बांध टूटने लगा है। वैसे तो कुछ हॉस्टल के स्टूडेंट्स को घर भेज दिया गया है। लेकिन जो नहीं जा सके वे यहां फंस कर रह गए हैं। वूमेंस कॉलेज के समीप स्थित एसटी-एससी हॉस्टल में 23 ग‌र्ल्स फंसी हुई हैं। अब इनके पास खाने का अनाज भी खत्म हो रहा है। कहीं से कोई मदद की उम्मीद नहीं है। निजी स्तर पर लोग जो हेल्प कर जाते हैं उन्ही के सहारे ये लड़कियां हॉस्टल में रह रही हैं। इनका कहना है कि शुरू में घर जाने का प्रयास किए लेकिन गाड़ी नहीं मिलने की वजह से जा नहीं सके। इसके बाद पूरी तरह से पैक हो कर रह गए हैं। न कहीं निकल सकते हैं, न घूमने जा सकते हैं और न ही कुछ अच्छा खा सकते हैं। सिर्फ चावल खाकर लॉकडाउन खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं। हॉस्टल की इंचार्ज ने बताया कि यहां लगभग 150 छात्राएं रहकर कॉम्पटीशन की तैयारी कर रही थीं। सभी राज्य के अलग-अलग जिलों से हैं। लॉकडाउन की घोषणा होते ही सौ से अधिक स्टूडेंट्स अपने घर लौटने में सफल रहीं, लेकिन कुछ लड़कियां यहीं फंस कर रह गई हैं। अब इन्हें जाने का साधन भी नहीं है, गांव की सुरक्षा को देखते हुए ये लड़कियां अब यहीं रहना चाहती हैं।

एक टाइम ही खाना

हॉस्टल की लड़कियां कहती हैं। लॉकडाउन के बाद कुछ दिनों तक सब ठीक रहा। लेकिन दो हफ्ता गुजरते ही मुश्किलें शुरू हो गईं। वेलफेयर डिपार्टमेंट से लेकर अन्य स्थानों में मदद के लिए आवेदन लिखे। लेकिन कहीं से कोई मदद नहीं मिली। वेलफेयर डिपार्टमेंट के कुछ अधिकारियों ने निजी रूप से हमारी मदद की, लेकिन वह भी 23 लड़कियों के लिए काफी नहीं था। कुछ दिनों बाद सभी सामान खत्म होने लगे। हमलोग एक टाइम चावल खाते और एक टाइम भूखे ही रहते हैं। चावल बचाना है, ताकि लंबे समय तक इसे चला सकें। हमने लोगों से मदद की गुहार भी लगाई थी। समाजसेवी नीरज भोक्ता की ओर से हमलोगों को चावल, दाल, आलू, साबुन, नमक समेत अन्य चीजों की मदद की गई, तब हम लोगों को थोड़ी राहत मिली है।

क्या हैं हॉस्टल ग‌र्ल्स की परेशानी

हमलोग यहां रहकर जेपीएससी की तैयारी कर रही हैं। लॉकडाउन की वजह से हॉस्टल में ही फंस कर रह गई हैं। घर जाना तो था लेकिन साधन नहीं मिलने से नहीं जा सकीं। यहां रहने में कोई परेशानी नहीं है। हमलोग यहां सुरक्षित हैं। सिर्फ समय-समय पर अनाज मिल जाए तो हमलोग सभी आराम से रह लेंगी। घर जाने से फैमिली और गांव वालों को भी परेशानी होगी। इसलिए जिस हाल में हैं, यहीं रहकर अपनी पढ़ाई जारी रखेंगी। बस सरकार और प्रशासन से यही फरियाद है कि हमारी जरूरतों को भी पूरा किया जाए।

नागी टोप्पो

मैं लोहरदगा की रहने वाली हूं। यहां रहकर पीजी कर रही हूं और कॉम्पटीशन की तैयारी भी कर रही हूं। लॉकडाउन में परेशानी बहुत बढ़ गई है। खाना बनाने वाले भी चले गए हैं। अब हमलोग खुद से खाना बनाते हैं और पढ़ाई भी करती हैं। राशन की कमी तो होती है। लेकिन कुछ सामाजिक लोग आकर मदद करते हैं। शुरू में परेशानी हुई थी। नहाने के लिए साबुन तक नहीं था। 23 लड़कियों में सिर्फ दो साबुन मिला था। वहीं, हरी सब्जी खाए कई दिन बीत गए हैं। हमलोग बाहर जाकर मांग भी नहीं सकती हैं। इसलिए जो मिलता है, उसी में गुजारा करना है।

मेनका कुमारी

मैं भी लोहरदगा की ही रहने वाली हूं। यहां रहकर पढ़ाई कर रही हूं। अब तो पैसे भी खत्म हो गए हैं। मां-बाप गांव में रहते हैं उन्हें ऑनलाइन ट्रांसफर करना भी नहीं आता। बहुत मुश्किल हो रही है। लेकिन फिर भी हम लोग सभी लड़किया एक-दूसरे की मदद करते हुए खुशी-खुशी रह रही हैं। अनाज के लिए डीसी को भी आवेदन दिया गया है। लेकिन, अभी तक मदद नहीं मिली है। सामाजिक कार्यकर्ता नीरज भोक्ता की ओर से हमें मदद मिली है।

प्रेमिका कुमारी

फेसबुक से पता चला खाने को अनाज भी नहीं है

फेसबुक के माध्यम से मुझे मालूम हुआ कि कुछ लड़कियां लॉकडाउन में हॉस्टल में फंसी हुई हैं। जब उनसे संपर्क किया गया तो पता चला कि उनके पास खाने के लिए अनाज भी नहीं है। तब मैंने बारह पैकेट चावल समेत जरूरत के सामान हॉस्टल में पहुंचवा दिया। इस मुसीबत की घड़ी में हम सबको दूसरे की मदद करते हुए आगे बढ़ना है। सिर्फ ये लड़कियां ही नहीं, कहीं और भी कोई फंसे हों, जिन्हें अनाज की जरूरत हो तो मैं उनकी मदद के लिए हमेशा वहां खड़ा रहूंगा।

-नीरज भोक्ता, सोशल वर्कर सह कांग्रेस नेता

Posted By: Inextlive