ये है अपनी जलेबी. प्यारी जलेबी. घूम-घूमके गोल-गोल बनी मदमस्त जलेबी. कभी गुस्से में घर से भागे प्यारे से बबलू की 'जलेबी'. जी हां वही बबलू जिसे रामू काका स्टेशन पर से बहला-फुसलाकर घर ले गए थे. वो भी जलेबी की मिठास का लालच देकर.

अब, आप कहेंगे कि तब के टीवी पर के विज्ञापन की बात अभी क्यूं? तो, बात साफ है बबलू की प्यारी जलेबी अब जलेबी बाई बन गई है। लोगों की जुबान पर अब सिर्फ मल्लिका-ए-जलेबी के ही किस्से हैं। इसलिए हमने सोचा। इसी बहाने क्यों न, आपको पटना की 'जलेबी' खिला दें।
मानसून की बहार हो। अपनों का साथ हो। कुछ खट्टी, कुछ मीठी बात हो। और दिल कुछ करने को करे। कुछ भी, शायद कुछ हटके खाने की। कुछ ऐसे नाम हैं, जो आपके दिमाग में झट से घंटी बजाते हैं। इनमें से एक है जलेबी। जी हां, वही कड़क जलेबी, जिससे टपकता चाशनी किसी के भी होश उड़ा देता है। अब तो जलेबी का मजा दुगुना-तिगुना करने के मल्लिका शेरावत ने जलेबी बाले ठुमके भी लगाने शुरू कर दिए हैं। इन दिनों सुबह से शाम तक जितनी देर जलेबी बाई के ठुमके दिखते हैं, उससे कहीं अधिक टाइम तक मार्केट में जलेबी बिकती है। हालांकि नेशनल जायके के लिए मशहूर जलेबी को कम ही लोग खाते हैं, पर जो भी खाते हैं ठाठ-बाठ से खाते हैं।
सुबह-सुबह जलेबी की खूशबू
सुबह का नाश्ता और दिन के खाने में इन दिनों जलेबी का जलवा है। कचौड़ी-सब्जी के साथ जलेबी का मजा ही कुछ और है। ऐसे इसे पटनाइट्स की पहचान भी कह सकते हैं। स्टेशन रोड से शुरू करें, तो हनुमान मंदिर के पीछे और वीणा सिनेमा हॉल के करीब तमाम ठेले वाले या होटल वाले यही नाश्ता बनाते हैं। सुबह से ही जलेबी खाने वालों की संख्या बढ़ जाती है, जो दिन के ग्यारह बजे तक रहती है। इस दौरान मॉर्निंग वाकर भी जलेबी खरीदते हैं। लोगों का मानना है कि सेहत पर इसका पॉजिटिव असर पड़ता है। लोगों की भीड़ सिर्फ स्टेशन रोड पर ही नहीं, बल्कि न्यू डाकबंगला स्थित वृंदावन होटल पर भी जमती है। कचौड़ी-सब्जी-जलेबी की सुगंध फ्रेजर रोड होते हुए कुछ देर गांधी मैदान में भी ठहरती है। इसके बाद अशोक राजपथ होते हुए यह पटना सिटी तक जाती है। कहते हैं पटना सिटी इलाके से ही इसका जायका शहरों में आया है।
जलेबी के दीवानों की कमी नहीं
जब जलेबी खाने वालों की तादात बढ़ी, तो इसके जायके भी थोड़े बदल गए। इस टेस्ट ने लोगों को जलेबी के और करीब ला दिया है। कचौड़ी-सब्जी के साथ जलेबी के कंबीनेशन हर खासोआम को पसंद है। इसके अलावा शहर के होटल और रेस्टोरेंट में जलेबी-दही, जलेबी-राबड़ी, नींबू रस जलेबी के चाहने वालों की भी लंबी-चौड़ी फौज है। लोग जलेबी की मिठास को विभिन्न रूपों में भी काफी पसंद करते हैं। वृंदावन के नवीन की मानें, तो कचौड़ी-जलेबी उनके कस्टमर्स की अपनी पसंद है। वहीं, होटल मौर्या के शेफ ब्रजेश कुमार सिंह बताते हैं कि ऑर्डर पर नींबू रस के साथ जलेबी की काफी डिमांड है।

कहानी जलेबी की

स्वीट ऑफ इंडिया के नाम से मशहूर जलेबी को इंडियंस रस और स्वाद के लिए खाते हैं। जलेबी इंडिया, पाकिस्तान, नेपाल और बंगलादेश में काफी मशहूर है। जिलेबिया, जिलेपी, जोलबिया, जलेबी, जेरी आदि नामों से यह मशहूर है। 13वीं शताब्दी में मोहम्मद बिन हसन अल बगदादी की लिखित कुक बुक में जिलेबिया का जिक्र है, जो आज की जलेबी है। जिलेबिया इंडिया में मुस्लिम शासन के दौरान आया था। इंडिया आते-आते जिलेबिया का जेड इंडिया के जे में बदल गया और जिलेबिया अब जलेबी हो गया। यह मेले-ठेले होते हुए होटल-रेस्टोरेंट में पहुंचा और अब घर में भी जलेबी बनती है।

Varieties
चाशनी जलेबी
खोआ की जलेबी
घी की जलेबी
गुड़ की चाशनी की जलेबी
इमरती

Different combos 
कचौड़ी-सब्जी और जलेबी - 15 से 20 रुपए
जलेबी-दही - 25-30
जलेबी-राबड़ी - 100 के आसपास
जलेबी-नींबू रस के साथ - 125 रुपए के आसपास
दूध-जलेबी - 20-25 रुपए

 

Posted By: Inextlive