इंडिया को लगातार वार्ता रद्द करने के लिए उकसा रहा पाकिस्तान भी उस समय स्त ब्धन रह गया जब हिंदुस्तान में अचानक सारे कश्मीरी अलगाववादी नेता नजर बंद कर दिए गए थे। हालाकि सभी को दो घंटे बाद छोड़ दिया गया पर इस ताजा ट्विस्ट ने पाकिस्तान के सामने स्पष्ट तो कर दिया कि वो इन नेताओं से बैठक के बाद मिलें तो भारत को एतराज नहीं पर साथ ही कई अंदरूनी सियासी सवाल भी खड़े कर दिए हैं।


सभी हुए हैरान केंद्र भी अनजान हालाकि ये स्पष्ट है कि भारत एनएसए की बैठक के बाद सरताज अजीज के अलगाववादी नेताओं से मुलाकात के खिलाफ नहीं है। पर उसे दोनों देशों की आधिकारिक बातचीत संपन्न होने से पहले हुर्रियत के नेताओं से पाकिस्तान का मुलाकात करना मंजूर नहीं है। इस संदर्भ में हुर्रियत नेताओं की गुरूवार को नजरबंदी और रिहाई का ड्रामा बेशक दो घंटे में ही निपट गया। लेकिन इसने कश्मीर से लेकर दिल्ली तक की सियासत में हलचल पैदा कर दी है। कुछ लोग इस सियासी ड्रामे को गठबंधन सरकार में जारी विरोधाभास और अलगाववादी खेमे के प्रति किसी स्पष्ट नीति के अभाव, राजनीतिक हस्तक्षेप को उजागर करने के साथ कश्मीर में केंद्र की विश्वसनीयता को ठेस पहुंचाने के नजरिए से भी देख रहे हैं। क्या हुआ था
बृहस्पतिवार की सुबह पुलिस ने मीरवाइज मौलवी उमर फारूक और गिलानी समेत सभी प्रमुख हुर्रियत नेताओं को अचानक ही नजरबंद कर दिया। इसी दौरान जेकेएलएफ के चेयरमैन मुहम्मद यासीन मलिक को हिरासत में लेकर पुलिस हवालात में बंद कर दिया गया। लेकिन दो घंटे में ही मलिक अपने घर पहुंच गए और अन्य नेताओं की नजरबंदी हटा ली गई। राज्य सरकार से लेकर पुलिस के आलाधिकारी इस पूरे प्रकरण पर चुप बैठे हैं। कोई भी दो घंटे चले इस नाटक पर बात करने को तैयार नहीं हैं। हालांकि, कहा जा रहा है कि हुर्रियत नेताओं की नजरबंदी का आदेश केंद्र सरकार की तरफ से जारी हुआ था। लेकिन संबंधित सूत्र दावा कर रहे हैं नई दिल्ली से पुलिस को कोई सीधा निर्देश नहीं मिला और न ऐसा कोई लिखित अथवा मौखिक आदेश आया। उनके मुताबिक, इस प्रकरण की रचना स्थानीय स्तर पर ही हुई ताकि पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी जो भाजपा के साथ गठबंधन के बाद वादी की सियासत में खुद को बैकफुट पर महसूस कर रही है, फोरफ्रंट पर आ सके।ये पीडीपी की छवि सुधारने की कोशिश भी हो सकती है


सच क्या है, यह सिर्फ मुख्यमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद और उनकी बेटी महबूबा ही जानते हैं। लेकिन इसने राज्य सरकार और केंद्र में जारी विरोधाभास को उजागर किया है। कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ अहमद अली फैयाज ने कहा कि नई दिल्ली इस तरह से अलगाववादियों की नजरबंदी के लिए आदेश जारी नहीं कर सकती। यह पूरी तरह स्थानीय सियासत को देखकर बुना गया एक सियासी ड्रामा हो सकता है, जिसमें पीडीपी ही फायदे में नजर आती है। कहा जा रहा है कि अलगाववादियों को नजरबंद बनाए जाने पर कश्मीर में भाजपा की स्थिति कमजोर होती है और जिस तरह से उनकी रिहाई में महबूबा को हीरो बनाया गया है, उससे पीडीपी फायदे में होती है।  क्या वार्ता से पहले के माहौल पर पड़ेगा असरसंबंधित अधिकारियों ने बताया कि केंद्र को अच्छी तरह से मालूम है कि अलगाववादियों की मौजूदा हालात में नजरबंदी से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के समक्ष उसकी स्थिति कमजोर हो सकती है। अगर उसे इस मुलाकात से एतराज होता तो वह बीते वर्ष की तरह यह प्रस्तावित वार्ता को भी रद कर देता। एलओसी पर अत्यंत तनावपूर्ण हालात में होने जा रही इस बैठक को कामयाब बनाने के लिए केंद्र पर जबरदस्त दबाव है। अहमद अली फैयाज ने कहा कि इस ड्रामे ने कश्मीर में अलगाववादी खेमे के प्रति किसी स्पष्ट नीति के अभाव के साथ साथ प्रशासनिक मामलों में राजनीतिक हस्तक्षेप को उजागर किया है। अगर पुलिस ने एहतियातन उन्हें नजरबंद किया था तो फिर एक सांसद के आग्रह पर मुख्यमंत्री द्वारा नजरबंदी को समाप्त करना राजनीतिक हस्तक्षेप के अलावा क्या हो सकता है।

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Posted By: Molly Seth