भारी बस्ता : कैसे कम होगा स्कूल बैग का बोझ, जब सिलेबस एक नहीं
'बस्ता' नहीं सिलेबस का 'बोझ'
- देश के सभी बोर्ड में कॉमन सिलेबस न होने साबित होगा एक बड़ी समस्या- सीबीएसई व सीआईएससीई स्कूलों में प्राइवेट पब्लिसर्स की बुक्स की भरमारlucknow@inext.co.inLUCKNOW : केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एचआरडी) की ओर से बीते दिनों सभी स्कूलों के स्टूडेंट्स के बैग का वजन कम करने का निर्णय लागू करना एक बड़ी चुनौती है। इसका सबसे बड़ा कारण विभिन्न बोर्ड के स्कूलों में एक कॉमन सिलेबस का न होना और स्कूलों के ओर से अपने मनमाफिक किताबों और सब्जेक्स का संचालन करना। जिसका खामियाजा हमारे नन्हें-मुन्नों को अभी उठाना पड़ सकता है।
बोर्ड अलग तो बुक्स भी अलग
सेंट्रल बोर्ड और सेकेंडरी एजुकेशन सीबीएसई एनसीईआरटी की बुक्स को अपने स्कूलों में पढ़ाने का दावा करता है, पर बोर्ड से संबद्ध केवल गर्वमेंट स्कूल ही अपने यहां एनसीईआरटी की बुक्स पढ़ाते हैं। शेष सीबीएसई के स्कूलों में एनसीईआरटी के सिलेबस के अनुसार तैयार प्राइवेट पब्लिसर्स की बुक्स ही चलती हैं। वहीं दूसरी ओर सीआईएससीई बोर्ड में एक कॉमन सिलेबस नहीं है। इस बोर्ड से सम्बद्ध स्कूल तो अपने हिसाब से एक कॉमन सिलेबस को आधार मानकर किसी भी प्रकाशक की किताबें अपने स्कूलों में संचालित कराते हैं। साथ ही यह बच्चों पर सिलेबस की किताबों के अलावा मोरल साइंस, इवायरमेंट स्टडीज व दूसरी की अतिरिक्त किताबें बहुत ही छोटी क्लास से पढ़ाना शुरू कर देते हैं।
मौजूदा समय में बड़े स्कूलों में पूरी तरह से एक्टिविटी आधारित प्री। प्राइमरी की पढ़ाई में भी दर्जन भर किताबें मंगवाई जाती हैं। आलम यह है कि पहली क्लास में इंग्लिश में पोयम, स्टोरी, ग्रामर, राइटिंग के नाम पर अलग-अलग बुक्स हैं। बड़ों से देखकर सीखे जाने वाले नैतिक ज्ञान को स्कूल पहली क्लास में ही 6 किताबों से पढ़ा रहे हैं। इनका असर अभिभावक की जेब के साथ ही साथ बच्चे की सीखने की प्रक्रिया और सेहत दोनों पर पड़ रहा है। कंपनियों ने मौका देखकर अब ट्रॉली वाले बैग बाजार में उतार दिए हैं।
स्कूल से घर तक फुर्सत नहीं
सीबीएसई के पूर्व चेयरमैन अशोक गांगुली कहते हैं कि प्री प्राइमरी में तो किताब की जगह ही नहीं है। इसे पूरी तरह से क्रियात्मक होना चाहिए। इसी तरह प्राइमरी स्कूलिंग में भी भाषा और मैथ्स के अलावा अन्य किसी विषय को पढ़ाने की जरूरत नहीं होती, लेकिन शिक्षा का बाजारीकरण इस पर भारी है। क्लासरूम टीचिंग खत्म होती जा रही है और बच्चों को स्कूल से लेकर घर तक प्रोजक्ट व होमवर्क से ही फुर्सत नहीं मिलती। गांगुली बताते हैं कि स्कूलों में पढ़ाया जाने वाला 40 प्रतिशत से ज्यादा कोर्स बिना आधार के ही मौजूदा समय में स्कूलों में पढ़ाया जा रहा है।
26 साल पहले 1992 में प्रो। यशपाल की अध्यक्षता में पर कमेटी बनी थी। जुलाई 1993 में आई रिपोर्ट में प्रो। यशपाल ने कहा था बच्चों के लिए स्कूली बस्तों के बोझ जितना ही भारी उनके न समझ पाने का भी बोझ है। होमवर्क से लेकर स्कूल बैग तक के लिए कई सुधार सुझाए गए, लेकिन वह अमल में आज तक नहीं आ सके। 2006 में केंद्र सरकार ने कानून बनाकर बच्चों के स्कूल का वजन तय किया, लेकिन यह कानून भी भारी मुनाफे के आगे हल्का पड़ा गया। उस समय तय किया गया था बच्चों के स्कूल बैग का वजन उनके वजन के 10 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। उसके उलट हर साल बैग 8 से 10 प्रतिशत भारी होता जा रहा है।यशपाल समिति की सिफारिशें
- किताबों का स्कूल में बैंक बने, वहीं रखी जाएं, हर बार छात्र को किताब खरीदने से मुक्ति मिले- होमवर्क ऐसा हो कि घर के माहौल में कुछ नया खोज सकें
- व्यक्तिगत प्रतियोगिता के बजाय सामूहिक प्रतियोगिताओं को बढ़ावा दिया जाए
- नर्सरी में दाखिले के लिए टेस्ट व इंटरव्यू न होद चिल्ड्रेन स्कूल बैग लिमिटेशन ऑन वेट एक्ट 2006 के प्रावधान- बच्चों के वजन से 10 प्रतिशत ज्यादा स्कूल बैग का वजन नहीं- नर्सरी एवं केजी में स्कूल बैग न रखा जाए- 8वीं तक के बच्चों के लिए स्कूल में लॉकर उपलब्ध करवाए जाएं, जिससे वहीं किताबें रख सकें- नियम तोड़ने पर 3 लाख रुपए की पेनल्टी, दूसरी बार गलती पर मान्यता खत्मसीबीएसई स्कूलों में मौजूदा किताबों की स्थितपहली से पांचवीं तक - 11 से 15 किताबें वर्क बुक छोड़करइंग्लिश - 3 से 4 किताबेंहिंदी - दो किताबसोशल व मोरल साइंस - 2 से 3 किताबआर्ट एंड क्राफ्ट - 2 किताबेंकम्प्यूटर व इंवायरनमेंट सांइस- 2 से 3 किताबें सीआईएससीई के स्कूलों में मौजूदा किताबों की स्थितपहली से पांचवीं तक - 18 से 20 किताबें दो वर्क बुक सहितइंग्लिश - 6 किताबमोरल साइंस - 5 किताबमैथ्स - 2 किताबहिंदी - 3 किताबआर्ट्स - 2 किताबकम्प्यूटर व इन्वाइनरमेंट सांइस - 2 से 3 किताबेंमिशनरी स्कूल में मौजूदा किताबों की स्थिति नर्सरी11 किताबेंअंग्रेजी - 5 किताबें
हिंदी - 3 किताबेंमैथ्स- 1 किताबजीके- 1 किताबआर्ट - 1 किताबस्टेशनरी - 8 कॉपियांकिंडर गार्डन केजी स्कूलों में किताबों की स्थिति 13 किताबेंअंग्रेजी - 5 किताबेंहिंदी - 4 किताबेंमैथ - 2 किताबजीके - 1 किताबआर्ट - 1 किताबजीके - 1 किताबस्टेशनरी - 13 कॉपियां व रजिस्टरबच्चों के स्कूल बैग काफी वजनी होते हैं, इसके चलते कम उम्र में ही पीठ व कंधे का दर्द शुरू हो जाता है। इसलिए एमएचआरडी ने अब साफ तौर पर बैग का वजन तय कर दिया है। स्कूलों को इस सम्बन्ध में साफ गाइडलाइन जारी कर दिया है.- डॉ। जावेद आलम खान, सीबीएसई कोऑर्डिनेटर स्कूल का कोर्स अब मौजूदा समय में आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्थाओं को ध्यान में बच्चों को पढ़ाया जा रहा है। जिसका साफ असर उनके बैग के वजन पर दिखाई देता है।- डॉ। आरपी मिश्रा, पूर्व प्रिंसिपल