भारी बस्ता : 25 साल पहले उठी थी समस्या, केंद्रीय विद्यालय में तय हैं नियम
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KANPUR : बस्ते के वजन की समस्या को सबसे पहले 1993 में यशपाल कमेटी ने उठाया था। कमेटी का प्रस्ताव था कि बुक्स को स्कूल प्रॉपर्टी समझा जाए। वहीं पर बुक रखने के लिए लॉकर्स अलॉट हों। इसमें होमवर्क व क्लासवर्क के लिए भी अलग टाइम-टेबल की मांग रखी गई थी। तर्क दिया गया कि इससे बच्चों को किताबों को कंधे पर उठाकर घर तक नहीं ले जाना पड़ेगा।
केंद्रीय विद्यालय में तय हैं नियम
* क्लास-1 और 2 के बच्चों के बस्ते का वजन 2 किलो से ज्यादा नहीं होने के आदेश हैं।
* क्लास-5 से 8 वीं तक के स्टूडेंट्स के बस्ते का वजन 4 किलोग्राम से ज्यादा नहीं होता है।
* क्लास-3 व 4 के बच्चों के बस्ते का वजन 3 किलो से ज्यादा नहीं होता है
* क्लास-9 से 12वीं तक के ऊपरी क्लास के लिए अधिकतम वजन 6 किलो तय है।
स्टूडेंट पर दबाव बर्दाश्त नहीं
एचआरडी मिनिस्ट्री ने शिक्षा अधिकारियों को सख्त आदेश देते हुए कहा है कि कोई भी स्कूल प्रबंधन बच्चों पर ज्यादा बुक्स लाने के लिए दबाव नहीं डालेगा। कोई स्कूल ऐसा करता हुआ पाया गया तो शिक्षा विभाग की ओर से सख्त कार्रवाई की जाएगी।
अंतर्राष्ट्रीय नियम भी जान लीजिए
अंतर्राष्ट्रीय नियमों के मुताबिक, बच्चों के कंधे पर उनके कुल वजन का 10 परसेंट से ज्यादा वजन नहीं होना चाहिए। मगर, हकीकत यह है कि 8वीं क्लास तक के बच्चों को 5 किलोग्राम से ज्यादा वजन ढोना पड़ता है।
बच्चों को आती हैं ये समस्याएं
* स्कूली बच्चों की हड्डियां 18 साल की उम्र तक नरम होती हैं। बैग में वजन ज्यादा होने से कमर, गर्दन व कंधों में दर्द होता है।
* हाथों में झुनझुनी आना, सुन्न हो जाना और कमजोरी आ जाना। लंबे समय बाद बच्चों में थकान के साथ बॉडी पास्चर भी बिगड़ जाता है।
* गर्दन और कंधों में तनाव के कारण सिरदर्द होना, बैग टांगे रहने से वन साइडेड पेन शुरू हो जाता है।
आई नेक्स्ट ने चलाया था अभियान
स्कूली बच्चों के कंधों पर भारी बस्ते का बोझ व उससे होने वाली हेल्थ प्रॉब्लम्स से जुड़े मुद्दे को आपका अखबार दैनिक जागरण आई नेक्स्ट पहले भी उठा चुका है। खुशी की बात यह है कि मंडे को हमारी यह मुहिम रंग लाई।
अंजाम तक पहुंचे यह पहल
स्कूली बच्चों के बैग का मैक्सिमम वेट निर्धारित करने की सरकार की पहल निश्चित रूप से एक स्वागत योग्य फैसला है, लेकिन क्या आपको लगता है कि नए दिशा-निर्देश स्कूलों द्वारा फॉलो किए जाएंगे? मॉनिटरिंग कौन करेगा? सवाल कई हैं, लेकिन न तो स्कूल के पास जवाब है और न पैरेंट्स के पास। हां, अगर ऐसा संभव हो सका तो देश में एजुकेशन सिस्टम के लिए यह मील का पत्थर साबित होगा? कैसे संभव हो सकता है यह और हम अपनी भूमिका कैसे अदा कर सकते हैं, सोचिएगा जरूर, क्योंकि इस पहल को अंजाम तक पहुंचाने में हम सबकी भागीदारी होनी चाहिए। अपनी राय हमें वाट्सएप नंबर 9125050669 पर या हमारे ई-मेल manoj.khare@inext.co.in आईडी पर जरूर भेजें।