दिल्ली की निर्भया के बाद हैदराबाद की घटना ने एक बार फिर से हमें शर्मसार कर दिया है। इस बार सिर्फ गुस्से और प्रदर्शन से काम नहीं चलेगा अब हमें व्यवस्था को कसना होगा ताकि भविष्य में कोई फोन पर गुहार लगाए तो उस तक तुरंत मदद पहुंचे।


कानपुर। हैदराबाद में हैवानियत भरी घटना के बाद पकड़े गए चारों आरोपियों के खिलाफ लोगों में गुस्सा जायज है। दिल्ली की निर्भया कांड के बाद भी यह सिलसिला नहीं रुका तो इसका जिम्मेदार कौन है? समाज से लेकर सरकार तक हम घूम-फिरकर वहीं खड़े हैं। पीड़िताओं को लेकर न तो समाज की मानसिकता बदली और न ही सरकारें यह सुनिश्चित कर पाईं कि ऐसी घटनाएं दोबारा न हो पाए। आज भी गुस्से से भरे लोग प्रदर्शन करके आरोपियों को भीड़ के हवाले करने, एनकाउंटर कर देने, सिर कलम करने या पत्थर से पीट-पीट कर हत्या करने की बातें कर रह हैं। बदले की भावना में हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि देश में एक शानदार न्याय व्यवस्था है जिसमें साक्ष्यों की परख के बाद सजा का प्रावधान है। यदि हम पुलिस द्वारा पेश आरोपी को ही सजा देने लगे तो याद करिए प्रद्युम्न मामले में क्या होता? लोकतंत्र का तकाजा है कि न्याय होना चाहिए ताकि लोग कानून का आदर करें और उन्हें अहसास हो कि देश में विधि का शासन है।सभी इमर्जेंसी सेवाओं के लिए एक हेल्पलाइन


हैदराबाद में वेटनरी डाॅक्टर के साथ दुष्कर्म और हत्या से पहले उन्होंने मोबाइल से अपनी बहन को काॅल करके अपने डर की बात कही थी। उसके बाद उनका मोबाइल स्विच ऑफ हो गया। इस घटना से हमें एक सीख जरूर मिली कि यदि हमारे देश में एक इंटीग्रेटेड सिंगल प्वाइंट हेल्पलाइन नंबर होता तो शायद इस युवती की जान बच जाती। आज जब तमाम निजी कंपनियों के कस्टमर केयर नंबर हैं और नेशनल लेवल पर काम करते हैं और उनका रिस्पांस भी कमोबेस अच्छा है तो भारत सरकार पूरे देश के लिए एक इंटीग्रेटेड हेल्पलाइन नंबर क्यों नहीं बना सकती? बात तो मोबाइल में पैनिक बटन लगाने की भी थी जो शायद एक इंटीग्रेटेड नंबर न होने की वजह से आज तक अस्तित्व में नहीं आ सकी। घटना के बाद तेलंगाना के गृहमंत्री मोहम्मद महमूद अली ने कहा था कि युवती ने अपनी बहन की बजाए 100 नंबर पर पुलिस को काॅल किया होता तो उसकी जान बच जाती। जबकि अगले ही दिन प्रदर्शन कर रही राज्य की महिला एक्टिविस्टों का कहना था कि 100 नंबर डायल करने पर उन्हें कोई रिस्पांस नहीं मिलता। देश मेें शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जिसे पुलिस, फायर, एंबुलेंस, महिला हेल्पलाइन, चाइल्ड हेल्पलाइन के अलग-अलग नंबर याद हों। विरले ही कोई मिलेगा जिसने जरूरत के वक्त इन नंबरों को डायल करने के बाद इनकी सेवाओं से संतुष्ट हो।

देशव्यापी सिंगल हेल्पलाइन मतलब क्विक रिस्पांस

इसरो ने 27 नवंबर को अपना अब तक का सबसे एडवांस सैटेलाइन कार्टोसैट-3 लांच किया था, जो हाई रिजाॅल्यूशन एडवांस अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट है। क्या हम सैटेलाइट से लिंक देशव्यापी सिंगल हेल्पलाइन सेंटर स्थापित नहीं कर सकते? ऐसे में संभव है कि हम मदद मांगने वाले व्यक्ति की लोकेशन ट्रैक करके आसपास की क्विक रिस्पांस टीम को वहां भेज सकें। शायद ऐसा हमारी सरकारों ने कर लिया होता तो न सिर्फ उस युवती की जान बच जाती बल्कि अपराधियों में खौफ व्याप्त हो जाता और वे इस तरह के दुःसाहस को अंजाम देने से पहले हजार बार सोचते। ऐसा नहीं है कि पूरे देश के लिए सिंगल प्वाइंट इंटीग्रेटेड हेल्पलाइन की यह कपोल कल्पना है। उत्तरी अमेरिका में किसी भी इमर्जेंसी के लिए एक हेल्पलाइन नंबर 911 है, यूरोपी देशों में एक हेल्पलाइन नंबर 112 है। इन नंबरों पर डायल करने वाले लैंडलाइन की लोकेशन से पता ट्रेस कर लिया जाता है जबकि मोबाइल से मिलाने पर डिवाइस या टावर के जीपीएस से लोकेशन पता कर लिया जाता है। इन देशों के दूरसंचार कानून में इसका प्रावधान है। मौके पर पहुंचने वाले क्विक रिस्पांस टीम के सदस्य फर्स्ट एड और सीपीआर में भी दक्ष होते हैं। अपने देश में भी अब सभी इमर्जेंसी सेवाओं के लिए एक हेल्पलाइन नंबर होना चाहिए। सिर्फ नंबर ही नहीं हेल्पलाइन से जुड़ी क्विक रिस्पांस टीम की भी तैनाती होनी चाहिए।(यह लेखक के निजी विचार हैं)

Posted By: Satyendra Kumar Singh