कुणाल कपूर भले ही स्‍टार ना कहे जाते हों पर उनका एक्‍टिंग टेलेंट हमेशा उनकी पहचान बना. स्‍टार वो शायद खुद भी नहीं बनना चाहते तभी तो उनकी बातें एक बॉलिवुड स्‍टार से अलग और सरप्राइज करने वाली होती हैं.

फिल्म इंडस्ट्री में ऐसा कोई एक्टर नहीं है जो प्लेन उड़ाना भी जानता हो, कुनाल कपूर को छोडक़र. पर इसके बाद भी उनकी गिनती उन ‘स्टार्स’ में नहीं की जाती जो हमेशा शूटिंग में बिजी रहते हैं. पिछले महीने यह एक्टर दिल्ली में चार महीने बिताने के बाद मुंबई वापस लौटा. इंडस्ट्री में एक डेकेड पूरा कर चुके कुनाल से बातचीत के दौरान हमने जाना कि उनके ब्रेक लेने के पीछे की वजह क्या थी...
क्या गुड लुकिंग होना भी किसी तरह का हर्डल साबित हो सकता है?
एक्टर-फिल्ममेकर रॉबर्ट रेडफोर्ड ने एक बार कहा था कि लोगों के बीच सीरियस एक्टर की इमेज बनाने के लिए उन्हें अपनी शक्ल से मुकाबला करना पड़ा था. मैं रेडफोर्ड तो नहीं हूं पर मैंने कुछ बहुत अच्छे रोल्स जरूर खोए हैं. डायरेक्टर्स को लगता था कि मैं अपने लुक्स और फिजीक के चलते उन रोल्स के लिए ‘फिट’ नहीं था. मैं हमेशा अपनी जिंदगी के इस हिस्से से छिपता रहा हूं पर अब मुझे गुड लुकिंग दिखने से कोई प्रॉब्लम नहीं है मैं इसको पूरी तरह एंज्वॉय करता हूं.
स्क्रिप्ट चूज करते वक्त आप उसमें क्या चीज देखते हैं?
मैं कई बुक्स और कॉमिक्स को घोल कर पी चुका हूं और मुझे वह कैरेक्टर्स फैसिनेट करते हैं जो मुझसे अलग होते हैं, हालांकि मेरी लाइफ बहुत बोरिंग और मुंबई की मिडिल-क्लास लाइफ जैसी है. करियर की शुरुआत में मुझे रघुवीर यादव ने एक बहुत ही इंटरेस्टिंग बात कही थी, उनका कहना था, ‘एक नॉर्मल इंसान सिर्फ अपनी जिंदगी जी सकता है पर एक एक्टर को कई जिंदगियां जीने का मौका मिलता है.’

आपने कब डिसाइड किया कि चेंज के लिए आपको दिल्ली जाना है?
मैं चार महीनों के लिए वहां गया था और एक थिएटर ग्रुप के साथ काम कर रहा था. मैं लकी रहा हूं कि मुझे एनके शर्मा जैसे टीचर और मेंटर से मिलने का मौका मिला है जिन्हें हम ‘पंडितजी’ कहकर बुलाते हैं. मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं कहीं फंस सा गया हूं और मैं अपनी लिमिटेशंस से बाहर निकलने की भरपूर कोशिश कर रहा था. मुझे अपने चारों तरफ ऐसे कई लोग दिख जाते थे जो इस प्रॉब्लम को फेस कर रहे थे, वे सभी एक्टर नहीं थे. जब तक आप मुंबई से बाहर नहीं निकलते, आप सही तरह से ग्रो नहीं कर पाते हैं.
गॉडफादर्स का इंडस्ट्री में क्या रोल होता है?
जाहिर सी बात है कि यह आपकी मदद करता है क्योंकि यहां कोई ना कोई आप पर नजरें बनाने रखता है, आपको गाइड करता है और आपके लिए मूवीज भी प्रोड्यूस करता है. यह ठीक वैसा ही है जैसे कि आपके पास जर्नी के लिए नाव भी हो और एक नौकर भी. मेरे केस में, मुझे हर चीज खुद ही सीखनी थी. अपनी जर्नी के लिए नाव भी मुझे खुद ही बनानी थी.
क्या आप खुद को एक ‘चूजी’ एक्टर कहेंगे?
मुझे नहीं लगता कि यह वर्ड सही है पर यह टैग मुझपर पिछले काफी वक्त से लगा हुआ है. मेरे लिए यह काफी सिंपल है, मुझे सिर्फ एक बात मैटर करती है कि जब मैं किसी मूवी में काम करूं तो सुबह उठते वक्त खुद से यह सवाल ना करूं कि, ‘डूड, तुम यह मूवी क्यों कर रहे हो?’ मैं सेट पर रहते हुए ही खाना, सोना और सांस लेना चाहता हूं. अगर सिर्फ काम करने के लिए काम करना होता तो मैं वही कर रहा होता जो मूवीज में आने से पहले किया करता था यानी हॉन्ग कॉन्ग को आम (मैंगो) एक्सपोर्ट करता रहता.

क्या, सच में?
सीरियसली. मैं 18 साल की एज से यह काम कर रहा था पर शुक्र है कि यह पीरियड काफी छोटा था. मुझे हमेशा से वही करना था जिसके मैं सपने देखना था, यानी मूवीज. हालांकि आज डॉलर के रेट्स देखकर लगता है कि आम एक्सपोर्ट करने में ज्यादा प्रॉफिट रहता (हंसते हुए).
लव शव ते चिकन खुराना को आए लगभग एक साल हो गया है. नेक्स्ट प्रोजेक्ट क्या है?
इस मूवी को जो एप्रीसिएशन मिली है उसके लिए मैं सभी को थैंक्स कहना चाहता हूं, इसने मुझे कॉन्फिडेंस दिया है कि मैं उन प्रोजेक्ट्स पर काम करूं जिनमें मैं खुद भी यकीन करता हूं. लिखना और फिर उसे एक मूवी में डेवलप करने से जुड़ी सबसे ट्रिकी बात यही है कि इसके लिए आपको काफी वक्त देना पड़ता है. पर मुझे लगता है कि यह इतना वक्त तो डिजर्व ही करता है. ऐसा इसलिए भी जरूरी है क्योंकि लोग यहां बहुत जल्दी में रहते हैं और वे आपको एक खास किस्म के कैरेक्टर से जोडक़र देखने लगते हैं. रंग दे बसंती के बाद मेरे साथ ऐसा ही हुआ था, उस वक्त या तो मुझे पोएट के रोल्स मिलते थे या टेररिस्ट के, लव शव के बाद मुझे कम से कम दस ‘पंजाब दा पुत्तर’ वाले रोल्स ऑफर किए गए थे. मैं खुद को इन सब चीजों से काफी आगे देखता हूं (स्माईल करते हुए).

Posted By: Kushal Mishra