आईसीसी की क्रिकेट कमेटी ने अंपायर को लेकर जो नए नियम की सिफारिश की है। वह भारत में कैसे लागू हो पाएगा इसको लेकर चर्चा शुरु हो गई। नए नियम के मुताबिक कोरोना संकट के बाद मैच में होस्ट टीम के ही अंपायर रखने की बात की गई। भारत में इतने विश्व स्तरीय अंपायर नहीं हैं।

नई दिल्ली (पीटीआई)। आईसीसी क्रिकेट कमेटी ने अंपायर के नियमों में बदलाव को लेकर जो सिफारिश की है, उसके मुताबिक भारत में होने वाले मैचों में संकट के बादल छा सकते हैं। समिति ने सभी अंतरराष्ट्रीय मैचों के लिए दो गैर-तटस्थ अंपायरों (दोनों मेजबान राष्ट्र से) को वापस लाने पर भी जोर दिया। भारत में इंटरनेशनल लेवल के अंपायरों की कमी है। खासतौर से टेस्ट में, भारतीय अंपायरों के लिए एक "बड़ी चुनौती" होगी जब वे कोविड ​​-19 महामारी के बाद मैदान में उतरेंगे।

आईसीसी ने इस नियम की सिफारिश की

ICC क्रिकेट समिति ने सोमवार को COVID-19 महामारी के मद्देनजर अंतर्राष्ट्रीय यात्रा से बचने के लिए अल्पावधि में स्थानीय मैच अधिकारियों (अंपायरों और मैच रेफरी) की नियुक्ति की सिफारिश की। पिछले साल अंपायरों के आईसीसी के एलीट पैनल से एस रवि के बाहर होने के बाद, प्रीमियर श्रेणी में कोई भारतीय नहीं है जहां से मैच अधिकारियों को आमतौर पर टेस्ट के लिए चुना जाता है। निचले पायदान पर - अंपायरों के आईसीसी अंतर्राष्ट्रीय पैनल में चार भारतीय हैं लेकिन उनमें से केवल एक, नितिन मेनन (3 टेस्ट, 24 एकदिवसीय, 16 टी 20), के पास सबसे लंबे प्रारूप का अनुभव है और वह भी किसी बड़े मैच में अंपायरिंग नहीं किए हैं।

ये हैं भारत के अंपायर

अन्य तीन - सी शमशुद्दीन (43 एकदिवसीय, 21 टी 20), अनिल चौधरी (20 एकदिवसीय, 20 टी 20) और वीरेंद्र शर्मा (2 एकदिवसीय और 1 टी 20) - कोई टेस्ट अनुभव नहीं है। पूर्व अंतर्राष्ट्रीय अंपायर हरिहरन, जो 34 वनडे और दो टेस्ट में अंपायर रहे हैं उन्होंने पीटीआई को बताया, "यह एक बड़ी चुनौती है, लेकिन एक ही समय में एक बड़ा अवसर है। अलग-अलग प्रारूप अलग-अलग तरह के दबाव लाते हैं। टेस्ट में, पास के क्षेत्ररक्षकों द्वारा दबाव बनाया जाता है, जबकि सीमित ओवरों के क्रिकेट में, शोरगुल भीड़ अंपायरों को थोड़ा परेशान करती है।' उन्होंने कहा, 'सिर्फ अंपायरिंग के फैसले ही नहीं, आक्रामक अपील और खराब रोशनी जैसे कारक भी अक्सर सामने आते हैं और तटस्थ अंपायर स्थानीय अंपायरों की तुलना में जानबूझकर एक निष्पक्ष कॉल लेने की अधिक संभावना रखते हैं।'

2002 के बाद से टेस्ट में अंपायरिंग नहीं की

स्थानीय अंपायरों ने 2002 के बाद से टेस्ट में अंपायरिंग नहीं की है, जबकि आईसीसी और स्थानीय अंपायर का संयोजन एकदिवसीय मैचों में है। T20s में, स्थानीय अंपायर प्रभारी होते हैं। मैच रेफरी को तीनों प्रारूपों में तटस्थ रहने की जरूरत है, लेकिन महामारी से उत्पन्न मौजूदा स्थिति के लिए, भारत में जवागल श्रीनाथ में केवल एक स्थानीय विकल्प है। स्थानीय अधिकारियों ने आईसीसी क्रिकेट समिति की सिफारिश के बाद अधिक मैचों को अंजाम देने के लिए मेनन, शमशुद्दीन, चौधरी और शर्मा की पसंद को हाई-प्रोफाइल टेस्ट में खड़ा किया।

होम टीम के सामने खेलने में आती है दिक्कत

आईसीसी ने एक बयान में कहा, "जहां देश में कोई एलीट पैनल मैच अधिकारी नहीं हैं, वहां सर्वश्रेष्ठ स्थानीय इंटरनेशनल पैनल मैच अधिकारी नियुक्त किए जाएंगे।" एक मौजूदा अंतरराष्ट्रीय अंपायर ने कहा कि केवल घरेलू खेलों में कार्य करने से उनका काम काफी कठिन हो जाता है, एक चुनौती जो उन्हें पसंद नहीं है। "यदि आप होम अंपायर हैं और होम टीम खराब रोशनी के लिए कह रही है, तो आप तटस्थ अंपायर की तुलना में उस मांग को देने की अधिक संभावना रखते हैं।'

तटस्थ रहना होता है मुश्किल

एक अफिशल ने नाम ने छापने की शर्त पर पीटीआई को बताया कि स्थानीय अंपायर के कुछ फैसले चर्चा में रहे है। उन्होंने यह भी उदाहरण दिया कि कैसे वेस्ट इंडीज के अंपायर जोएल विल्सन ने पिछले साल तीसरे एशेज टेस्ट में बेन स्टोक्स को नॉट आउट दिया था, हालांकि रीप्ले से पता चला कि गेंद स्टंप्स पर जा रही थी। उस समय ऑस्ट्रेलिया के पास डीआरएस नहीं था, अन्यथा वे लीड्स में मैच जीत लेते। यह इतना महत्वपूर्ण खेल था। कल्पना कीजिए, अगर वह अंपायर विल्सन नहीं था और वह इंग्लैंड से होता तो यह बहुत बड़ा विवाद बन जाता और वह पक्षपाती कहलाता।'

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari