क्रिकेट दिमाग का खेल है. तभी इसमें कप्तान की भूमिका इतनी अहम है. विश्व कप में कई बार कप्तानों ने मास्टर स्ट्रोक चल कर बड़ी-बड़ी टीमों को चित कर दिया है. पेश है विश्व कप की तीन बेहद खास रणनीति जिसने खेल की दिशा ही बदल दी. इनमें से दो ऑस्ट्रेलिया और न्‍यूजीलैंड में खेले गए 1992 के विश्व कप में ही अपनाई गई थीं.

गूच और गेटिंग ने स्वीप कर दिया हर सपना
1987 के विश्व कप सेमीफाइनल में भारत और इंग्लैंड मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में आमने-सामने थे. इंग्लैंड के लिए सबसे बड़ा खतरा भारतीय फिरकी गेंदबाज थे. लेकिन इंग्लैंड ने ऐसा मास्टर स्ट्रोक चला कि भारतीय टीम हैरान रह गई. इंग्लैंड के दो बल्लेबाज स्पिन खेलने में माहिर थे. ग्राहम गूच और माइक गेटिंग. ग्राहम गूच ने मैच से पहले चार घंटे लेफ्ट ऑर्म स्पिनर पर स्वीप की प्रैक्टिस की. मैच में इंग्लैंड के दो विकेट जल्दी गिर गए थे लेकिन फिर गूच ने भारतीय स्पिन गेंदबाजों मनिंदर सिंह और रवि शास्त्री की लगभग हर गेंद को स्वीप करना शुरू कर दिया. भारतीय गेंदबाज इसके लिए तैयार नहीं थे और उनकी लय बिगड़ गई. जब गेटिंग मैदान पर उतरे तो उन्होंने भी गूच की तरह स्पिनर्स की हर गेंद को स्वीप करना शुरू कर दिया. न तो भारतीय कप्तान के पास इसके लिए कोई प्लान बी था और न बॉलर्स के बाद. भारतीय आक्रमण के मुख्य हथियार को स्वीप से भोथरा कर दिया गूच और गेटिंग ने. गूच ने 115 और गेटिंग ने 56 रन बनाए  और इंग्लैंड 6 विकेट पर 254 रन बनाने में सफल रहा. गूच और गेटिंग के स्वीप ने भारतीय खिलाडिय़ों में फ्रस्ट्रेशन भर दी और इंग्लैंड भारत को हराकर फाइनल में पहुंच गया.
मार्टिन क्रोव के लाजवाब प्रयोग
ऑस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड में खेला गया 1992 का विश्व कप न्यूजीलैंड के कप्तान मार्टिन क्रो की अद्भुत कप्तानी के लिए भी याद किया जाता है. मार्टिन क्रो ने उस विश्व कप में 114 के औसत से 456 रन बनाए थे जो टूर्नामेंट में अधिकतम थे लेकिन इससे ज्यादा बड़ा काम उन्होंने एक कप्तान के तौर पर सामान्य खिलाडिय़ों की टीम को सेमीफाइनल तक पहुंचा किया था. इसके पीछे उनके दो प्रयोग थे जिसका अंदाजा किसी को नहीं था.
पहला प्रयोग...
ऑफ स्पिनर से पहला ओवर फेंकवाया
उस समय तक क्रिकेट में स्पिनर्स को 15 ओवर से पहले नहीं गेंद दी जाती थी. जब गेंद थोड़ी पुरानी हो जाती थी और फील्डिंग रेस्ट्रिक्शंस खत्म हो जाते थे तब फिरकी गेंदबाजों को आक्रमण पर लगाया जाता था. पर मार्टिन क्रो ने खेल पलट दिया. विश्व कप के पहले ही मैच में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पहला ओवर फेंकने के लिए मार्टिन क्रो ने दीपक पटेल को लगा दिया. ये क्रो का मास्टर स्ट्रोक था. दीपक पटेल ऐसे गेंदबाज थे जो एक स्पिनर के तौर पर सामान्य थे पर लाइन लेंथ के मास्टर थे. क्रो ने दीपक पटेल की इसी ताकत कता फायदा उठाया और मशीन की तरह सेट लाइन और लेंथ पर गेंद डलवाई और उसी के हिसाब से फील्ड सजा दी. बल्लेबाज इसके लिए तैयार नहीं थे और डेविड बून और मार्श हड़बड़ा कर पटेल को खेलते रहे. न्यूजीलैंड ने पहले ही मैच में कंगारुओं को हरा कर उलटफेर कर दिया.  पूरे विश्व कप में मार्टिन क्रो ने दीपक पटेल को पहला ओवर दिया और कोई भी टीम शुरुआती ओवर्स में पटेल को हिट नहीं कर पाई. दीपक पटेल न्यूजीलैंड का ऐसा तुरुप का पत्ता बन गए जिसका जवाब किसी के पास नहीं था.

दूसरा प्रयोग..

शुरुआती ओवर्स की हिटिंग और मार्क ग्रेटबैच का 'पुर्नजन्म'
1992 के विश्व कप तक बल्लेबाज शुरुआती ओवर्स में संभल कर खेलते थे और लास्ट के दस ओवर्स में धुआंधार हिटिंग करते थे. ये माना जाता था कि नई गेंद स्विंग करती है इसलिए उस समय ज्यादा हिट करने पर आउट होने का खतरा ज्यादा है. मार्टिन क्रो ने इसे दूसरे ढंग से लिया. नई गेंद स्विंग करती है लेकिन वो हार्ड भी ज्यादा होती है जिस पर स्ट्रोक्स अच्छे लग सकते हैं. लास्ट के ओवर्स में बाउंड्री पर फील्डर्स ज्यादा होते हैं. क्रो ने नई गेंद से फील्ड रेस्ट्रिक्शन के दौरान हवा में शाट खेलने के लिए मार्क ग्रेटबैच को तैयार किया. ग्रेटबैच उस समय तक निहायत डिफेंसिव मध्य क्रम के बल्लेबाज माने जाते थे लेकिन 1992 के विश्व कप में क्रो ने उनका पुर्नजन्म करा दिया. क्रो ने ग्रेटबैच को ओपनिंग में भेज दिया. ग्रेटबैच ने पारी की पहली गेंद से हवा में शॉट खेलना शुरु कर दिया. इस मास्टर स्ट्रोक के लिए भी विपक्षी टीमों के पास कोई तैयारी नहीं थी. बाद में 1996 के विश्व कप में श्रीलंका ने जयसूर्या और कालूवितरना के जरिए मार्टिन क्रो के इसी प्रयोग को अपनाया था. पहला ओवर ऑफ स्पिनर को देना और शुरुआती ओवर्स की हिटिंग आज फटाफट क्रिकेट में अपना लिए गए हैं. पर इसके जनक मार्टिन क्रो हैं. अभूतपूर्व योजना, उसके लिए सही मोहरा चुनना और फिर सटीक इमप्लीमेंटेशन ने न्यूजीलैंड जैसी कमजोर टीम को विश्व कप के सेमीफाइनल तक पहुंचा दिया था. अगर सेमीफाइनल में बल्लेबाजी के दौरान मार्टिन क्रो चोटिल न होते पूरी संभावना थी कि न्यूजीलैंड का सफर आगे बढ़ जाता. क्रो के मैदान से हटते ही न्यूजीलैंड की टीम एक सामान्य टीम बन गई और सेमीफाइनल में पाकिस्तान से हार गई. अपने दिमाग के बल पर वो मार्टिन क्रो ही थे जिन्होंने 1992 विश्व कप में चिडिय़ों से बाज लड़ा दिया था.

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Posted By: Abhishek Kumar Tiwari