- एसजीपीजीआई जैसा बनने में पता नहीं कितने साल लग जाएंगे

- फिर लगा मरीज को घर पर बुलाने का आरोप

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PATNA : आईजीआईएमएस में विकास के कई वायदे कर गए सीएम जीतन राम मांझी। वे आईजीआईएमएस की साफ-सफाई देख फूले नहीं समा रहे थे, लेकिन उनके जाने के तीसरे ही दिन हाल ये है कि आई नेक्स्ट ने देखा आईजीआईएमएस के मेडिकल कॉलेज के पास मैनहोल खुला है। इस रास्ते मेडिकल स्टूडेंट्स आ-जा रहे हैं। पता नहीं ये संस्थान कब एसजीपीजीआई लखनऊ की तुलना कर पाएगा। एक डीलक्स ट्वॉयलेट तो आज तक यहां शुरू नहीं हुआ।

जनता का फ्0 लाख बर्बाद हुआ

डीलक्स ट्वॉयलेट बंद है। ये अंदर की ओर जाते वक्त रास्ते में ही दिखता है। लगभग इमरजेंसी के अपोजिट तरफ। फ्0 लाख की लागत से इसका निर्माण हुआ था। पुल निर्माण निगम को दिया था शहरी विकास विभाग ने। इसके बाद पुल निर्माण ने प्राइवेट एजेंसी को दिया। आईजीआईएमएस को हैंडओवर कराना था इसे। इसके लिए संस्थान की ओर से कई लेटर भेजे गए। इस बीच उसमें रखे कई सामान की चोरी हो गई। जब हैंडओवर करने प्राइवेट एजेंसी आई तो संस्थान ने कहा कि इनवर्टी (सामानों की सूची) दें, लेकिन सूची नहीं दी गई और न ही ये हैंडओवर हो सका। सूत्रों की मानें तो पेंच इसलिए भी फंसा कि संस्थान ने इसी शर्त पर जमीन दी थी कि नो प्रॉफिट नो लॉस पर इसे चलाया जाएगा पर ऐसा न हो सका। आखिरकार जनता के फ्0 लाख रुपए बर्बाद हो गए। डीलक्स ट्वॉयलेट पड़ा हुआ है। दूसरी तरफ जो पेड शैचालय है उसमें खूब भीड़ जुटती है।

बेली रोड से अंदर हॉस्पीटल तक जाने का इंतजाम नहीं

एसजीपीजीआई लखनऊ में मेन रोड से अंदर तक आने-जाने के लिए हॉस्पीटल की ओर से बस का इंतजाम रहता है। इससे आप नि:शुल्क कितनी बार भी आ और जा सकते हैं, लेकिन आईजीआईएमएस में हॉस्पीटल की ओर से कोई व्यवस्था नहीं है। नतीजा मरीजों को तो दिक्कत होती ही है परिजनों को भी कुछ लाने के लिए बाहर जाना पड़ता है पैसे खर्च करके। एक ठीक ठाक कैंटीन तक नहीं है यहां।

एसजीपीजीआई की कैंटीन देखा है

जो एक बार एसजीपीजीआई लखनऊ देख आया वह आईजीआईएमएस आकर यही कहता है कि दोनों संस्थान एक साथ शुरू हुए थे पर आईजीआईएमएस इतना गंदा है कि पूछिए मत। दूसरी तरफ एसजीपीजीआई लखनऊ किसी कॉरपोरेट हॉस्पीटल की तरह दिखता है। बिल्कुल साफ सुथरा। वहां की कैंटीन बेजोड़ है। दूसरी तरफ आईजीआईएमएस में कैंटीन के नाम पर होटल खुलवा कर छोड़ दिया गया है जिसके चारों ओर गंदगी का साम्राज्य है। वहां रहने के लिए बढि़या गेस्ट हाउस है यहां एक धर्मशाला तक नहीं। वहां म्0-70 रुपए में डोरमेट्री है और यहां चार रुपए में रैनबसेरा गंदगी से घिरा हुआ। वर्क कल्चर पर तो खैर कोई बहस ही नहीं है।

कृष्णा नगर आकर दिखाइए

आईजीआईएमएस के डॉक्टरों की प्राइवेट प्रैक्टिस की कहानी पुरानी है। कई जांच हुए पर सब टांय-टांय फिस्स। गया के रंजीत कुमार ने तो अपने वकील से नोटिस भिजवायी थी। अब बेलवा, पलानवा, रक्सौल के नवल किशोर प्रसाद ने शिकायती पत्र लिखा है। इसमें कहा गया है कि संस्था में इलाज कराने जब मैं दूसरी बार क्8-09-क्ब् को आया तो मेरी जांच रिपोर्ट देखकर दवा लिखनी थी लेकिन मुझको टाल कर समय बिता कर करीब डेढ़ बजे डॉ.अमरेन्द्र कुमार चले गए और उनके साथ एक व्यक्ति ने मुझसे कहा कि श्री कृष्णापुरी या श्रीकृष्णा नगर पूछ कर आ जाना। वहां हम तीन सौ रुपए देकर दिखाए।

कई तरह से जांच की जरूरत

इस तरह के लेटर की जांच जरूरी है। ये गंभीर आरोप हैं। जिस हॉस्पीटल में डॉक्टरों को नॉन प्रैक्टिस एलाउंस मिलता हो वहां के डॉक्टर पर ऐसे आरोप लगे तो ये शर्म की बात है। ऐसे मामलों पर स्पीडी ट्रायल की तरह फैसला दूध का दूध और पानी का पानी होना चाहिए। इससे संस्थान की बदनामी होती है।

Posted By: Inextlive