Allahabad : मॉडर्न युग में बहुत सी ट्रेडिशनल चीजों को हम काफी पीछे छोड़ आए हैं. जबकि इनके इफेक्ट्स बहुत ज्यादा पॉजिटिव होते थे. आज भी ये साइंटिफिक तौर-तरीकों से कहीं ज्यादा आगे हैं लेकिन हम इन्हें फॉलो नहीं करते. ये नोबल साइंटिस्ट का कहना है. मंडे को साइंस कॉन्क्लेव के दूसरे दिन फिजियोलॉजी में नोबल प्राइज विनर प्रो. रिचर्ड जे रॉबट्र्स ने जब डायस ये बातें कहीं तो सभी सरप्राइज हो गए. उन्होंने खुले तौर पर मां के आंचल को वाटर फिल्टर से बेहतर बताया तो बच्चों को धूल में खेलने की खुली आजादी दे डाली. उनके पास अपनी बातों के लिए बेहतरीन तर्क भी मौजूद थे.


आंचल को धोखा नहीं दे सकते बैक्टीरियावर्ष 1993 में नोबल प्राइज पा चुके प्रो। राबट्र्स ने कहा कि कई रिसर्च में ये पता चला है कि भारतीय महिलाओं का साड़ी पहनना हेल्थ प्वाइंट ऑफ व्यू से उनकी फैमिली के लिए बेहतर होता है। उन्होंने कहा कि ऐसे कई बैक्टीरियाज होते हैं जो आधुनिक वाटर फिल्टर के मैकेनिज्म को धोखा दे जाते हैं। पुराने समय में महिलाएं अपनी साड़ी के टुकड़े से पानी छानकर देती थी तो यह बैक्टीरिया छनकर निकल जाते थे। इसके पीछे थी साड़ी की बनावट। उसके फैब्रिक इतने महीन होते हैं बारीक से बारीक बैक्टीरिया उसे धोखा नहीं दे पाते थे। दीजिए धूल में खेलने की आजादी
उन्होंने कहा कि प्रजेंट सिनेरियो में बच्चे बहुत ज्यादा बीमार होते हैं। जरा सी प्रॉब्लम होने पर उन्हें इंफेक्शन हो जाता है। इसके पीछे कई हॉर्मफुल बैक्टीरिया होते हैं। पुराने समय में जो बच्चे धूल में खेलते थे वह ज्यादा स्वस्थ होते थे। उन्होंने कहा कि बच्चों के धूल में खेलने से उनकी हॉर्मफुल बैक्टीरियाज के मुकाबले का इम्युनिटी पॉवर स्ट्रांग हो जाता था। इसलिए पैरेंट्स को चाहिए कि बच्चों को बहुत ज्यादा धूल से बचाने की कोशिश न करें। कई बार विषम परिस्थितियां भी उनके लिए लाभदायक साबित हो सकती हैं।


मंडेला को सलाम करने आया साउथ अफ्रीकी दलसाइंस कान्क्लेव में पार्टिसिपेट करने आए साउथ अफ्रीकी मॅटेरियल साइंस इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स का दल वास्तव में अपने राष्ट्रपिता नेल्सन मंडेला को ट्रिब्यूट देने आया है। छह स्टूडेंट्स के इस दल में शामिल यूनिवर्सिटी ऑफ द विट वाटर्स रैंड की डिन्यू लिओमा ने बताया कि मंडेला की मौत से हमारे देश का माहौल बहुत गमगीन है। उन्हें हमारे यहां फादर ऑफ नेशन का दर्जा प्राप्त है, बावजूद इसके अगर हम यहां मौजूद हैं तो कान्क्लेव में अधिक से अधिक नॉलेज एचीव करना ही हमारा लक्ष्य होगा। ऐसा करके हम राष्ट्रपिता को सच्ची श्रद्धांजलि देना चाहते हैं। लिओमा ने कहा कि साउथ अफ्रीका में नस्लभेद को खत्म करने का श्रेय नेल्सन मंडेला को ही जाता है। इंडिया को है inquiry based education की जरूरत

आखिर बच्चों को कैसे साइंस के प्रति मोटीवेट किया जा सकता है? इस सवाल के जवाब में नोबल साइंटिस्ट प्रो। क्लाउड कोहीन तनोजी ने कहा कि इंडिया को इन्क्वॉयरी बेस्ड एजूकेशन की जरूरत है। महज रटने से पास हो जाना बेहतर नहीं, बल्कि बच्चों को साइंस की प्रेक्टिकल नॉलेज भी होनी चाहिए। छह साल की एज से ही बच्चों को क्लास में सवाल-जवाब और सीखने की आदत होनी चाहिए। गवर्नमेंट को टीचर्स में इन्वेस्टमेंट करना चाहिए, ताकि वह बेहतर इन्वॉयरमेंट में पढ़ा सकें। कम एज बच्चों को टीवी से दूर रखें, जिससे उनको लक्ष्य से भटकने से रोका जा सके। पैरेंट्स को चाहिए कि वह खिलौनों की जगह सिंपल साइंस डिवाइस बच्चों को अवेलेबल कराएं और उसके मैकेनिज्म के बारे में डिसकसन करें। फ्रांस के प्रो। तनोजी को 1997 में फिजिक्स में नोबल प्राइज दिया गया था।

Posted By: Inextlive