नरेंद्र मोदी सरकार का यह बड़ा एडवेंचर है। संविधान की जिस धारा को समाप्ति को लेकर पिछले साठ सालों से बाद-विवाद हो रहा था उसे नरेंद्र मोदी सरकार ने समाप्त कर दिया। हालांकि धारा 370 और 35 ए को हटाए जाने का परिणाम क्या होंगे इसके लिए इंतजार करना होगा। लेकिन 370 और 35 ए को लेकर चल रहे तमाम कयासों को एनडीए सरकार ने खत्म कर दिया।


(संजीव पांडेय)। गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में आर्टिकल 370 ख़तम करने का संकल्प पत्र पेश किया तो विपक्ष आग बबूला था। लेकिन कुछ विपक्षी दलों ने भी इसे समर्थन देकर मोदी सरकार के राजनीतिक मनोबल को बढ़ा दिया। इससे पहले राष्ट्रपति ने 1954 के संविधान संसोधन आदेश को खत्म करने से संबंधित अध्यादेश जारी कर दिया। अमित शाह ने धारा 370 समाप्त करने के संकल्प पत्र के साथ-साथ लद्दाख को बिना विधानसभा के अलग केंद्रशासित राज्य बनाने की घोषणा कर दी। वहीं जम्मू कश्मीर को विधानसभा सहित केंद्रशासित राज्य बनाने की घोषणा की गई।  लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अनुच्छेद 370 को बनाया मुद्दा


पूरे देश के अंदर 370 और 35 ए लंबे समय से राजनीतिक मुद्दा था। 1990 के बाद भी भाजपा ने हर बार चुनावी मुद्दा इस बनाया। भाजपा इसके लिए पंडित जवाहरलाल  नेहरू और कांग्रेस को जिम्मेवार ठहराती रही। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने इसे मुद्दा बनाया था। लेकिन बाद में जम्मू कश्मीर में हुए विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा जम्मू-कश्मीर की क्षेत्रीए पार्टी पीडीपी के साथ सत्ता में भागीदार बन गई। क्योंकि भाजपा को राज्य विधानसभा में जम्मू क्षेत्र से अच्छई सीटे मिली थी। पीडीपी के साथ सरकार बनाने का बाद बीजेपी ने 370 और 35 ए के मसले को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। इससे बीजेपी की राजनीति पर सवाल उठा था। लोग कहने लगे थे कि सिर्फ चुनावों में फायदे के लिए भाजपा इन मुद्दों को उठाती है। लेकिन राष्ट्रपति दवारा आदेश जारी होने के बाद भाजपा ने अपनी राजनीतिक विश्वशनीयता बनाए रख़ने और वादा पूरा करने का संदेश दिया है।नहीं रहेगी परमानेंट रेजिडेंट सर्टिफिकेट की जरूरत

निश्चित तौर पर धारा 370 के हटने के बाद जम्मू कश्मीर में जरूरी परमानेंट रेजिडेंट सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं रहेगी। अब शेष भारत के लोग भी यहां जमीन खरीद सकेंगे, नौकरी पा सकेंगे, बिजनेस में निवेश कर सकेंगे। लेकिन घाटी के लोग केंद्र सरकार के इस फैसले पर कैसी प्रतिक्रिया देंगे यह समय बताएगा। धारा 370 और 35 ए को खत्म किए जाने को लेकर अभी तक तमाम विवाद रहे। 370 और 35 ए के पक्षधर और विरोधी इस मामले पर लंबे समय से आमने सामने थे। यह डिबेट आगे भी चलेगा। 35 ए का मामला सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही ही लंबित है। इसे हटाए जाने के पक्षधऱ सुप्रीम कोर्ट गए थे। अब इसे हटाए जाने के विरोधी सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। वैसे 370 और 35 ए को लेकर लंबे समय से विवाद है। न्यूट्रल विचारकों का बीच का रास्ता अपनाए जाने का तर्क रहा। उनका कहना था कि सरकार इसे समाप्त करने से पहले जम्मू कश्मीर की जनता को विश्वास में लेती। क्योंकि 35 ए के तहत अभी तक जम्मू कश्मीर के निवासियों को परमानेंट रेजिडेंट सर्टिफिकेट (पीआरसी) मिलता था। इसी पीआरसी के आधार पर ही जम्मू कश्मीर में नौकरी हासिल की जा सकती थी, जमीन खरीदा जा सकता था। यही पीआरसी शेष भारत के लोगों को जम्मू कश्मीर में नौकरी पाने और जमीन खरीदने से प्रतिबंधित करता रहा।इसके पीछे राजा के नजदीकी हिंदू डोगरे और कश्मीरी ब्राहमणों का दिमाग

दरअसल 35 ए की जड़ आजादी से पहले ही डल चुकी थी। 35 ए की जड़ में जम्मू कश्मीर रियासत के राजा के 1927 और 1932 के दो नोटिफिकेशन थे। इस नोटिफिकेशन के पीछे का दिमाग राजा के नजदीकी हिंदू डोगरे और कश्मीरी ब्राहमण थे। दरअसल बीसवीं शताब्दी की शुरूआत में रियासत के अंदर अंग्रेजों ने जमीन खरीदनी शुरू कर दी थी। वे नौकरियों में भी घुसपैठ कर रहे थे। इससे स्थानीय डोगरे और कश्मीरी ब्राहमण खासे घबरा गए। ज्यादातर जमीन के मालिक हिंदू डोगरे और कश्मीरी ब्राहमण थे। जबकि सरकारी नौकरियो में भी कश्मीरी ब्राहमणों का दबदबा था। डोगरों और कश्मीरी ब्राहमणों ने राजा को नोटिफिकेशन जारी करने के लिए राजी किया।क्षेत्रीय दलों ने कश्मीर के लोगों को भावनाओं को भड़काया
कश्मीर का विकास नहीं हुआ, इससे यहां गरीबी और बेरोजगारी खासी है, यह एक सच्चाई रही। यहां के क्षेत्रीय दलों ने कश्मीर के लोगों को भावनाओं को भड़काया, लेकिन उनकी गरीबी दूर नहीं की। उनके घरों के बच्चे विदेशों में पढ़ते है, आमजन के बच्चे आतंकी बनते है। एक तबके का तर्क यही था कि धारा 370 और 35 ए जम्मू कश्मीर के पिछड़ेपन का कारण रही है। इन दो धाराओं के कारण यहां कारपोरेट का निवेश नहीं आया। क्योंकि 35 ए के कारण कारपोरेट सेक्टर यहां जमीन खरीद नहीं सकता था। कोई बिजनेस खड़ा नहीं कर सकता था। निजी निवेश से  स्थानीय लोगों को रोजगार मिलता, लेकिन धारा 370 और 35 ए बीच में बाधा थे। निजी निवेश नहीं होने के कारण कश्मीरी पूरी तरह से सरकारी नौकरियों पर निर्भर रहे। जबकि 370 और 35 ए के समर्थकों का हमेशा तर्क रहा कि 35 ए और 370 के तर्ज पर भारतीय संविधान नागालैंड, सिक्किम, मणिपुर, आंध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और आसाम को भी विशेषाधिकार देता है। हालांकि बीच में एक बात यह भी होती रही कि धारा 370 और 35 ए को पूरी तरह से हटाए जाने के बजाए 35 में आंशिक संशोधन किया जाए। ये संशोधन हिमाचल प्रदेश के तर्ज पर किए जाने की मांग होती रही। हिमाचल प्रदेश लैंड टेनेंसी एंड लैंड रिफार्म एक्ट 1972 के तहत गैर हिमाचली हिमाचल प्रदेश में खेती के लिए जमीन नहीं ले सकता है। लेकिन हिमाचल प्रदेश टेनेंसी एंड लैंड रिफार्म रूल्स 38 ए के तहत गैर हिमाचली औधोगिक प्रोजेक्ट, दुकान और मकान के लिए जमीन ले सकता है। इसी तर्ज पर 35 ए में संशोधन की बात भी एक तबका कर रहा है।अलगाववादियों से सख्ती, पश्चिमी चीन में अल्पसंख्यक बन गए उइगुर मुस्लिमदक्षिण एशिया के कई मुल्कों में अलगाववादी आंदोलन चल रहा है। जम्मू कश्मीर में भी उन्हीं में से एक है। चीन भी अलगाववादी आंदोलन का शिकार है, पाकिस्तान भी अलगाववादी आंदोलन का शिकार है। लेकिन चीन ने तिब्बत के अलगाववादी और पश्चिम चीन के मुस्लिम अलगाववादी आंदोलन को सख्ती से निपटा। इसके लिए कई तरह के खेल चीन ने किया। चीन ने इस इलाके के डेमोग्राफी ही बदल दिया। पश्चिमी चीन में उइगुर मुस्लिमों को अल्पसंख्यक बना दिया गया। यहां हान चीनी लोग बसा दिए गए। आज हान चीनी पश्चिमी चीन में बहुसंख्यक है। वहीं तिब्बत में बड़े पैमाने पर हान चीनी और तिब्बती लोगों की आपस में शादी करवा दी गई। इससे तिब्बत का अलगाववादी आंदोलन खासा कमजोर पड़ा। अब एक अहम सवाल यही है कि क्या भारत भी चीन की तरफ जम्मू कश्मीर के अलगाववादी आंदोलन को सख्ती से निपटेगा। घाटी मुस्लिम बहुल है। एक बड़े जमात का तर्क है कि घाटी के आंदोलन को कमजोर करने के लिए शेष भारत की आबादी को वहां बसाना जरूरी है। लेकिन यह तभी संभव है जब बाहरी लोगों को जम्मू कश्मीर में संपति खरीदने का अधिकार हो। धारा 370 समाप्त करने के बाद शेष भारत के लोगों को यह मौका भविष्य में मिलेगा। लेकिन यह भी तभी संभव होगा जब घाटी में शांति होगी। सीमावर्ती इलाकों में शांति होगी। बहुत कुछ पाकिस्तान के रूख फर निर्भर करेगा। क्योंकि अगर राज्य में हिंसा जारी रहेगी तो निवेश में अभी भी मुश्किलें आएगी। शेष भारत के लोग जाने से कतराएंगे।editor@inext.co.in

Posted By: Satyendra Kumar Singh