- नियमों को ताख पर रखकर बिक रहा है तिरंगा

- प्लास्टिक के साथ दूसरे कलर में धड़ल्ले से बेच रहे हैं तिरंगा

- इसके साथ ही कहीं नहीं है प्रॉपर डिस्पोजल की व्यवस्था

GORAKHPUR: जश्ने आजादी की धूम मची हुई है। हर ओर सिर्फ तिरंगा ही लहराता नजर आ रहा है। मार्केट भी राष्ट्रीय ध्वज के साथ केसरिया, सफेद और हरे रंगों के मेल से बने सामानों की धूम मची हुई है। होलसेल से लेकर फुटकर मार्केट तक लोगों के बीच इसे खरीदने की होड़ है। इन सबके बीच अगर कुछ बिल्कुल नजर अंदाज है, तो वह है राष्ट्रीय ध्वज की असल मूरत। किस चीज का बना हो? उसका साइज क्या हो? कैसा न हो? इन सभी सवालों के जवाब कोई नहीं जानना चाहता या जानकर भी उस ओर ध्यान नहीं देना चाहता। इन दिनों मार्केट में सिर्फ प्लास्टिक से बने तिरंगे ही नजर आ रहे हैं और वह भी चाइनीज प्लास्टिक, जोकि न सिर्फ देश का दुश्मन है, बल्कि लगातार राष्ट्रीय ध्वज का अपमान भी कर रहा है। मगर आजादी की धुन में सबकुछ भूल कर लोग चाइना की इस चाल में फंस जा रहे हैं और जाने-अंजाने में राष्ट्रीय ध्वज का अपमान कर रहे हैं।

चाइनीज प्लास्टिक का ध्वज

चाइनीज प्लास्टिक 80 माइक्रान की होती है, यह कभी नष्ट नहीं होती। जीएमसी ने प्लास्टिक पर पूरी तरह बैन लगा रखा है, लेकिन इन दिनों धड़ल्ले से झंडे बिक रहे हैं। झंडों का एक दिन के बाद यूज खत्म हो जाता है, जिसके बाद ऐसे प्लास्टिक से बने झंडे नाली या कूड़ादान में नजर आने लगते हैं। इस प्लास्टिक से बने झंडे कहीं न कहीं राष्ट्रध्वज को अपमान ही है। मगर लोग इसे समझते नहीं हैं और झंडा खरीदने के बाद उसकी हिफाजत नहीं करते और जाने अंजाने में इसका अपमान कर बैठते हैं। सिटी में पचास रुपए में मार्केट में झंडे बिक रहे हैं। अब्दुल का कहना है कि सबसे अधिक 20 रुपए वाले मजबूत क्वालिटी वाले प्लास्टिक का झंडा है, वह बिक रहा है। इसके अलावा बच्चे बैज भी पसंद कर रहे हैं। सबसे महंगा 50 रुपए का ध्वज है।

कई जगह सजती है दुकान

15 अगस्त आने से पहले ही इसकी धूम शुरू हो जाती है। मार्केट भी आजादी के रंग में रमने लगती हैं। स्कूल, कॉलेज और इवेंट्स में बड़ी तादाद में तिरंगा इस्तेमाल होने की वजह से काफी पहले ही इसकी दुकानें सज जाती हैं। सिटी में करीब 300 से ज्यादा दुकानें सजती है, इन दुकानों में कपड़े, कागज के साथ बड़े-छोटे बैज की भरमार रहती है, वहीं प्लास्टिक के भी झंडे भी अपनी धमक जमाए हुए हैं। थोक व्यापारी मोहन वर्मा का कहना है कि प्लास्टिक के झंडे सबसे अधिक बिकते हैं। यहां से गोलघर, बक्शीपुर, अलीनगर के दुकानदार झंडा लेकर जाते हैं।

इस तरह कर रहे हैं अपमान

- मार्केट में प्लास्टिक और सिथेंटिक के बने फ्लैग धड़ल्ले से बिक रहे हैं

- कोई माप नहीं होता है

- कई ऐसे झंडे हैं जिनमें चक्र तो बना है लेकिन 24 तीलियां नहीं है

- मानक के अनुसार न तो रंग है न ही आकार

- कई झंडे का रंग हल्का या गाढ़ा कर देते हैं

सही तिरंगा झंडा यह होता है

- तिरंगा झंडा खादी का बना होना चाहिए

- चक्र हमेशा नीले रंग का बना होना चाहिए

- तिरंगा वर्गाकार नहीं होना चाहिए

- सही तिरंगे की लंबाई और चौड़ाई (उंचाई) में 2:3 अनुपात का होना चाहिए।

- ऊपर का रंग केसरिया, बीच में सफेद और नीचे हरी रंग की पट्टी होनी चाहिए

प्लास्टिक के झंडे नष्ट नहीं होते हैं। वह कूड़ेदान या नाली में फेंक दिए जाते हैं। 40 माइक्रान से अधिक के जो झंडे हैं वह जमीन के लिए भी नुकसानदायक हैं। आजादी के जश्न के बाद यह जमीन या इधर-उधर फेके हुए मिलते हैं। इससे न सिर्फ धरती को नुकसान होता है, बल्कि यह कहीं न कहीं राष्ट्रध्वज का अपमान भी है।

- डॉ। गोविंद पांडेय, एनवायर्नमेंटलिस्ट

Posted By: Inextlive