-अमेठी, वाराणसी, भदोही, मिर्जापुर, जौनपुर समेत कई अन्य जिलों में जाती हैं इलाहाबाद की चौकियां

- इलाहाबाद के दशहरा मेला से जुड़ा है लाखों का कारोबार

ALLAHABAD: इलाहाबाद का दशहरा और यहां की चौकियां व‌र्ल्ड फेमस हैं। इन्हें देखने के लिए अलग-अलग शहरों से लोग आते हैं। लेकिन इससे जुड़ा एक अनोखा पहलू भी है। नवरात्र के षष्ठी तिथि से दशहरा तक रामदल में निकलने वाली चौकियां शहर में छटा बिखेरने के बाद दूसरे शहरों के पांडालों में भी सजती हैं। इससे यहां की कला तो दूर-दूर तक पहुंचती ही है साथ ही स्थानीय कलाकारों की कुछ कमाई भी हो जाती है।

50 से 80 हजार में एक चौकी

चौकियों की कीमत उनकी साज-सज्जा के हिसाब से तय होता है। इसके अलावा शहर से दूरी भी एक बड़ा फैक्टर है। आमतौर पर 50 हजार से लेकर 80 हजार रुपए में एक चौकी की बुकिंग हो जाती है। लेकिन ज्यादा अच्छी चौकी है तो एक लाख रुपए तक भी कीमत मिल जाती है।

निकलते ही हो जाती है बुकिंग

पथरचट्टी और पजावा रामलीला कमेटी के रामदल के लिए आने वाली हजारों की भीड़ जुटती है। इसमें बादशाहपुर, जौनपुर, मछली शहर, बांदा, वाराणसी, गोपीगंज, भदोही, मिर्जापुर समेत कई अन्य जिलों के रामलीला व भरत मिलाप कमेटियों के पदाधिकारी और सदस्य भी होते हैं। यह मेले का आनंद तो उठाते ही हैं, अपने यहां होने वाले भरत मिलाप व जुलूस के लिए बेस्ट चौकियों, बैंड बाजों, लाइटिंग व बेहतरीन कलाकारों की बुकिंग भी कर लेते हैं।

छोटे बॉक्सेज में लगाएं

यहां जाती हैं शहर की चौकियां

बांदा, हमीरपुर, अमेठी, फतेहपुर, वाराणसी, गोपीगंज, भदोही, मिर्जापुर, बादशाहपुर, जौनपुर, मछली शहर, प्रतापगढ़, लाल गोपालगंज, नैनी, फाफामऊ

यह है वजह

इलाहाबाद में चौकियों का प्रदर्शन दशहरा के दिन समाप्त हो जाता है। लेकिन कई अन्य शहरों में दीपावली के दिन तक मेला लगता है। इसलिए वहां इनका बेहतर यूटिलाइजेशन हो जाता है।

इतना पड़ता है खर्च

एक चौकी को बनाने में भारी खर्च होता है। आकार और साज-सज्जा के अनुसार, 50 हजार से एक लाख या कभी-कभी कभी दो-तीन लाख में तैयार होती हैं चौकियां। शहर से बाहर चौकी भेजे जाने पर लागत के अनुसार 50 हजार रुपए से लेकर एक लाख रुपया किराया वसूला जाता है।

मैं पिछले 37 वर्ष से चौकी बना रहा हूं। मकसद बिजनेस करना नहीं, बल्कि इलाहाबाद की परंपरा को जीवित रखना और धर्म-संस्कृति का प्रचार इलाहाबाद के अलावा अन्य जिलों में भी करना है।

-राजू जायसवाल

गाजीगंज मंडी, मुट्ठीगंज

पूरे साल दूध-दही, पनीर का कारोबार करता हूं। लेकिन दशहरा से पहले चौकी बनाने में लग जाता हूं। क्योंकि सुंदर चौकियों को बनाना, इलाहाबाद के दशहरा मेला में चार-चांद लगाना मेरा शौक है। पिछले 27 वर्ष से लगातार चौकी बनाने में लगा हूं। मेला संपन्न होने के बाद हमारी चौकियां, बनारस, भदोही, अमेठी, बादशाहपुर तक जाती हैं।

-राकेश कुमार यादव

छोटा चौराहा, मुट्ठीगंज

प्रदर्शन के दौरान ही बेहतरीन चौकियों की बुकिंग हो जाती है। इस बार पुराने शहर के मुट्ठीगंज एरिया में करीब एक दर्जन चौकियां तैयार की जा रही हैं। एक चौकी की लागत 50 हजार रुपए से लेकर दो लाख रुपए तक है।

-बसंत लाल आजाद

पदाधिकारी, पथरचट्टी रामलीला कमेटी

बुधवार की भोर में जो श्रृंगार चौकी निकली उनमें केले के पत्ते, तने के साथ ही अन्य सब्जियों से चौकियों की सजावट की गई थी। इसमें मधु सुगंध सिंह, राजेश सिंह, पूनम सिंह, सुमित सिंह, दिनेश सिंह जैसे कलाकारों को महारत हासिल है।

-सतीश चंद्र केसरवानी

पदाधिकारी, पथरचट्टी रामलीला कमेटी

Posted By: Inextlive