-कैटल कॉलोनी के लिए एमडीए के पास नहीं कामर्शियल जमीन

-शहर को नरक बना रहीं 1705 पशु डेयरियां, गोबर निकासी मुख्य समस्या

Meerut। नगर निगम और प्रशासनिक अमला सालों से जिस कैटल कॉलोनी को बसाने की जद्दोजहद में लगा है। वास्तव में उसके लिए एमडीए के पास कोई लैंड ही नहीं है। यही कारण है कि एक पीआईएल के जवाब में एमडीए ने डीएम को पत्र लिखकर जमीन मुहैया कराने की मदद मांगी है। दरअसल, शहर से डेयरियों के विस्थापन के लिए बड़ी मात्रा में कमर्शियल लैंड की जरूरत है, जबकि प्राधिकरण के पास किसी भी योजना में इतना बड़ा कमर्शियल जमीन नहीं है।

क्या है मामला

दरअसल, 20 नवंबर 1998 में शासन ने मेरठ समेत प्रदेश के 13 नगर निगमों को डेयरियों को शहर से बाहर शिफ्ट कर उनके लिए कैटल कॉलोनी बसाने के निर्देश दिए थे। इस दौरान शासन ने विकास प्राधिकरणों व आवास-विकास को अपनी योजनाओं में कैटल कॉलोनी डेवलप करने का आदेश दिया था। अब जबकि कानपुर, बरेली, लखनऊ, इलाहाबाद व फैजाबाद आदि शहरों में कैटल कॉलोनी डेवलप भी हो चुकी है। वहीं मेरठ में कैटल कॉलोनी के लिए जगह का चयन भी नहीं किया गया है।

एमडीए के पास नहीं लैंड बैंक

एमडीए की मानें तो शहर में डेयरियां एक बड़ा व्यवसाय है। ऐसे में डेयरियों के लिए कॉलोनी विकसित करने के लिए बड़ी मात्रा में कमर्शियल लैंड बैंक की जरूरत है। एमडीए अपर सचिव बैजनाथ ने बताया कि एमडीए के पास किसी भी योजना में इतनी जमीन नहीं है। ऐसे में किसी नई जमीन का अधिग्रहण भी नहीं किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि जिला प्रशासन को पत्र लिखकर सरकारी जमीन मुहैया कराए जाने की अपील की गई है।

कैटल कॉलोनी में खड़े आवास

शासनादेश के अनुपाल में 2006 में एमडीए ने अपनी लोहियानगर योजना में कैटल कॉलोनी बसाई थी। इसमें डेयरी संचालकों के लिए 6500 रुपए प्रति वर्ग मीटर जमीन दिए जाने के लिए आमंत्रित किया गया था। एमडीए ने इसके लिए नगर निगम को पत्र लिख निगम को डेयरी शिफ्ट कराने की बात कही थी। नगर निगम द्वारा कोई कार्रवाई न किए जाने पर दो साल बाद एमडीए ने कैटल कॉलोनी के प्लॉट्स को आवासीय प्लॉट्स में तब्दील कर दिया। जिसके बाद इस जगह पर काशीराम आवास बना दिए गए।

फैक्ट्स फिगर

1705 नगर निगम में रजिस्टर्ड हैं डेयरियां

2000 अवैध रूप से चल रही हैं डेयरियां

30,000 पशु इन डेयरियों में हैं मौजूद

800 मीट्रिक टन गोबर रोजाना निकलता है डेयरियों से

70 फीसदी शहर की गंदगी इन डेयरी की है देन

एमडीए के पास कैटल कॉलोनी के लिए जमीन नहीं है। डीएम को पत्र लिखा गया है। प्रशासन यदि कोई सरकारी या सीलिंग की जमीन एमडीए को उपलब्ध कराता है तो उसको कैटल कॉलोनी के रूप में विकसित किया जा सकता है।

-बैजनाथ, अपर सचिव एमडीए

कैटल कॉलोनी की मांग को लेकर पांच याचिका और चार अवमानना याचिका दायर की गई हैं। प्राधिकरण और नगर निगम शासनादेश और हाईकोर्ट के आदेशों की अवमानना कर रहे हैं। प्राधिकरण के पास जमीन की कमी नहीं है।

-लोकेश खुराना, आरटीआई एक्टिविस्ट

Posted By: Inextlive