भारत में एक ऐसी जगह भी हां जहां के लोग सांपों से डर कर उन्‍हें मारते नहीं हैं। यहां के लोग सांपों को अपने बेटे की तरह पालते हैं। यहां तक कि अगर किसी सांप की उसके पिटारे में मौत हो जाए तो सांप पालने वाला पूरे सम्‍मान के साथ मृत सांप का अंतिम संस्‍कार करता है। वह अपने मूंछ और दाढ़ी मुड़वाता है। सांप की मौत के चलते पूरे कुनबे को भोज भी कराया जाता है। यहां की सबसे खास बात यहां दहेज में धन दौलत नहीं बल्कि सांप चलते हैं। शादी होने पर लड़की के परिजनों को दहेज के रूप में 21 सांप लड़के के परिजनों को सौंपने होते हैं।


छत्तीसगढ़ के जोगीनगर में पाले जाते हैं सांपहम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में स्थित जोगीनगर की जहां के हर घर में अत्यंत जहरीला सांप पाले जाते हैं। नगर पंचायत तुमगांव की सीमा में आबाद यह बस्ती लगभग ढाई दशक पूर्व अमात्य गौड़ समुदाय में घुमंतू खानाबदोश सपेरों द्वारा बसाई गई है। यहां के लोगों का मुख्य पेशा सांप पकड़ना है। लोगों के बीच उसकी नुमाइश कर दर्शन कराकर अपनी आजीविका चलाना है। किसी भी सांप को सपेरा केवल दो माह तक ही अपने पास रखता है। फिर उसे कहीं दूर उचित जगह पर खुला छोड़ दिया जाता है। दिव्य औषधीय जड़ी-बूटी के जानकर जनजातीय सपेरे समय-समय पर सांप-बिच्छू से पीड़ित लोगों को लाभप्रद उपचार सुविधा भी उपलब्ध कराते रहते हैं।वधू पक्ष को दहेज में देने होते हैं 21 सांप
सपेरों के सामने अपने पुश्तैनी कार्य को जारी रखने में अब दिक्कतें पेश आने लगी हैं। वन विभाग सांप पालने पर आपत्ति के साथ लगातार दबाव बना रहा है कि सांप को पकड़कर रखना बंद करें। सात पुत्री और तीन पुत्रों सहित 10 बच्चों का बाप कृष्णा नेताम बताता है कि उनके सामाजिक ताने-बाने में खास दस्तूर यह है कि विवाह संस्कार के दौरान वधू पक्ष की ओर से वर पक्ष को दहेज स्वरूप इक्कीस सांपों का उपहार देना अनिवार्य है। इसके बिना विवाह नहीं होता। अगर वधू पक्ष के यहां इक्कीस सांप न हुए तो वह बस्ती के अन्य सपेरों से उनके पालतू सांप लेता है और उपहार दहेज की रस्म पूरी करता है। कृष्णा के अनुसार, उन्हें अपनी संस्कृति और परंपरा को बचाए रखने की छूट मिलनी चाहिए।किसी भी सरकारी योजना का नहीं मिला लाभयहां के सपेरों का कहना है कि वे लोग सांप पकड़ने के लिए कभी जंगलों में नहीं जाते है। वे उन्हीं सांपों को पकड़ते हैं जो रिहाइशी क्षेत्रों में घुस आते हैं। जिनसे अनिष्ट की आशंका होती है। जोगीनगर के सपेरों का कहना है कि पीढ़ियों से चली आ रही परपंरा के विपरीत सांपों का सहारा लेकर दर-दर भटकना उन्हें भी नहीं भाता। वे भी कृषि और रोजगार से जुड़कर स्थिर जिंदगी जीना चाहते हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। सपेरों की बसाहट को ढाई दशक हो गए पर आज तक न ही किसी को इंदिरा आवास योजना का लाभ मिल सका है। एकल बत्ती विद्युत कनेक्शन योजना के अंतर्गत आज तक ना कोई झोपड़ी ही रोशन हो सका है।

Posted By: Prabha Punj Mishra