- सात साल पहले हुआ था बैकलॉग भर्ती घोटाला

- शासन ने कमिश्नर को दी थी जांच, तीन कमिश्नर का हो चुका ट्रांसफर

- बसपा मंत्रियों-विधायकों के रिश्तेदारों की कर दी गई थी नियुक्ति

KANPUR

यूपीएसआईडीसी में सात साल पहले हुए भर्ती घोटाले की जांच फाइल पर धूल की पर्त जमा हो रही है। इस घोटाले की जांच तत्कालीन कमिश्नर को दी गई थी, लेकिन तीन कमिश्नर आकर चले गए और वर्तमान मण्डलायुक्त भी इस जांच को पूरा कर फाइल अभी तक वापस नहीं कर पाए हैं। जबकि शासन ने इस जांच के लिए छह महीने का समय दिया था।

पदों से ज्यादा भर्ती हुई थी

वर्ष 2007-08-09 में यूपीएसआईडीसी बैकलॉग भर्ती में निर्धारित पदों से ज्यादा कर्मचारियों व अधिकारियों की भर्ती कर ली गई थी। इस कार्य को तत्कालीन बसपा सरकार के मंत्री व यूपीएसआईडीसी के चेयरमैन बाबू सिंह कुशवाहा, तत्कालीन प्रबंध निदेशक एसके वर्मा, प्रभारी अधिकारी (कार्मिक) अजीत सिंह आदि ने अंजाम तक पहुंचाया था। विज्ञापित पदों से ज्यादा पदों पर की गई भर्ती पर कुछ दिन बाद जब हल्ला मचने लगा तो 9 मई 2012 को यूपीएसआईडीसी के तत्कालीन एमडी मोहम्मद इफ्तखारुद्दीन ने अवस्थापना एवं औद्योगिक आयुक्त को पत्र भेजकर इस मामले की जांच कराने के लिए कहा था।

छह महीने में देनी थी रिपोर्ट

आयुक्त को मिले इस पत्र के बाद शासन ने संदर्भ संख्या 506-यूपीएसआईडीसी-स्थापना विभाग के जरिए भर्ती घोटाले की जांच तत्कालीन कमिश्नर को देकर छह महीने के अंदर रिपोर्ट देने का आदेश दिया था। तबसे लेकर तीन कमिश्नरों के पास यह जांच फाइल पहुंच चुकी है, लेकिन उन तीनों का तबादला हो चुका है। चौथे कमिश्नर के रूप में अब यह जांच खुद इफ्तखारुद्दीन के पास आई है। हालांकि इस मामले की पूरी जानकारी उनके पास है, इसके बावजूद जांच रिपोर्ट आगे क्यों नहीं बढ़ी। यह एक बड़ा सवाल है।

कई प्रमाणपत्र जांच में फर्जी

बैकलॉग भर्ती के मामले में जब भर्ती हुए अधिकारी-कर्मचारियों के शैक्षिक व अनुभव प्रमाण पत्रों का सत्यापन कराया गया तो सहायक अभियंता नागेन्द्र सिंह, सहायक प्रबंधक प्रमिला पटेल, टेलीफोन ऑपरेटर कम स्वागती रेनू सिंह गौर समेत आधा दर्जन लोगों के प्रमाणपत्र फर्जी पाए गए। बात ज्यादा आगे न बढ़े, इसके लिए प्रमिला पटेल व रेनू सिंह गौर को बर्खास्त कर दिया गया और फाइल अलमारी में बंद कर दी गई। गौर करने वाली बात यह रही कि अन्य अफसर-कर्मचारी जिनके भी प्रमाणपत्र फर्जी पाए गए थे, उन पर कोई कार्यवाही नहीं की गई। और तो और इस घोटाले के भूमिका तैयार करने वालों में एक तत्कालीन प्रभारी अधिकारी अजीत सिंह को पदोन्नति देकर प्रबंधक बना दिया गया। इतना ही नहीं मामले की जांच भी कमिश्नर के यहां दबा दी गई।

महालेखाकार की टीम ने भी

महालेखाकार की टीम द्वारा जब ऑडिट किया गया तो इस भर्ती घोटाले की कई पर्ते उधड़ कर सामने आईं। टीम ने इस पर आब्जेक्शन किया, लेकिन उसका भी ध्यान नहीं रखा गया और भर्ती की फाइलें यूपीएसआईडीसी में दबी रहीं। इस घोटाले के सूत्रधारों में तत्कालीन एमडी एसके वर्मा व संयुक्त महाप्रबंधक रिटायर हो चुके हैं और शेष अभी भी महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत हैं।

मंत्री-विधायकों के रिश्तेदारों की भर्ती

बैकलॉग भर्ती में तत्कालीन यूपीएसआईडीसी के अध्यक्ष बाबू सिंह कुशवाहा, राजस्व मंत्री फागू चौहान समेत कई मंत्रियों व विधायकों के रिश्तेदारों को नियुक्ति दे दी गई थी। जब मामले की जांच शुरू हुई तो बसपा सरकार के राजस्व मंत्री फागू चौहान के पुत्र उमेश चौहान त्यागपत्र देकर यूपीएसआईडीसी से बाहर हो गए।

पद - विज्ञापित पद - भरे गए पद

प्रबंधक (सामान्य) - 2 - 3

सहायक श्रेणी (द्वितीय) - 20- 22

लेखा लिपिक - 5 - 7

भूलेख लिपिक - 1- 2

चपरासी-चौकीदार- 6- 11

उप प्रबंधक (सामान्य) - 4 -7

उप प्रबंधक (लेखा) - 3- 5

सहायक प्रबंधक (सामान्य) - 3- 5

सहायक प्रबंधक (लेखा) - 3- 4

Posted By: Inextlive