Basant Panchami 2020 Saraswati Puja Katha: बसंत पंचमी को हमारे यहां अबूझ मुहूर्त कहा गया है ऐसा दिन जब कोई भी शुभ कार्य बिना मुहूर्त विचार के किया जा सकता है। ज्ञान की देवी सरस्‍वती के प्राकट्य की कथा सृष्टि की रचना के साथ शुरू होती है। इस दिन कामदेव-रति का भी पूजन किया जाता है।

Basant Panchami 2020: माघ शुक्ल पंचमी का दिन ऋतुराज बसंत के आगमन का प्रथम दिवस माना जाता है। इस दिन माता सरस्वती का प्राक्ट्य हुआ था, अतः इसे वागीश्वरी जयन्ती एवं सरस्वती पूजन दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु एवं श्री कृष्ण की पूजा होती है।

बसंत पंचमी के दिन पीले वस्त्र पहनने चाहिए एवं पीले रंग की खाद्य सामग्री के अधिकाधिक सेवन की भी परम्परा है। यह दिन किसानों के लिए नवान्न की खुशी को मनाने के रूप में भी है।

बसंत का रंग है पीला, विद्यार्थियों पर विशेष प्रभाव

बसंत ऋतु का स्वामी शुक्र है, बसंत ऋतु का मुख्य रंग पीला माना गया है। इस रंग का स्वामी ग्रह बृहस्पति है। इस बार विशेष बात यह है कि इस बार चन्द्र राशि मीन है, इसका स्वामी ग्रह भी बृहस्पति है, इसका रंग भी पीला है। अतः ज्ञान का कारक बृहस्पति का विशेष प्रभाव विद्यार्थी जातकों पर पड़ेगा।

राधा-कृष्ण की पूजा

इस उत्सव के अधिदेवता श्रीकृष्ण हैं। इसी कारण इस दिन राधा-कृष्ण की पूजा की जाती है, इस दिन सरस्वती और विष्णु का पंचोपचार पूजन कर पितृ तर्पण करना शुभ माना जाता है।

कामदेव—रति की पूजा से जल्द होगा विवाह

बसंत ऋतु कामोद्दीपक होती है। इसके प्रमुख देवता काम और रति हैं, इसलिए इनकी पूजा करना भी शुभ रहता है। विशेषतः ऐसे जातक जिनके विवाह में विलम्ब चल रहा हो, दाम्पत्य जीवन अच्छा नहीं हो, उन्हें इस दिन का लाभ अवश्य उठाना चाहिए।

शुभ कार्यों के लिए विशेष दिन

माघ शुक्ल पंचमी तिथि को अबूझ मुहुर्त माना जाता है। देवकार्य, मंगलकार्य आदि के लिए यह तिथि विशेष शुभ मानी जाती है। सरस्वती पूजन से पूर्व विधिपूर्वक कलश की स्थापना करके गणेश, सूर्य विष्णु तथा महादेव की पूजा करनी चाहिए।

आज के दिन किसान नये अन्य में गुड़-घृत मिश्रित कर अग्नि एवं पितृ तर्पण करते हैं, इस बार नक्षत्र योगों का विशेष सहयोग होने के कारण यह दिन मंगल कार्य के लिए अति विशेष है। अतः अभिजित मुहुर्त में मां सरस्वती के साथ गणेश जी का पूजन विशेष शुभ रहेगा।

माता सरस्वती के अवतरण की कथा

भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की। जब ब्रह्माजी ने सृष्टि की ओर देखा तो आश्चर्य हुआ कि चारों ओर एक सन्नाटा तथा खामोशी छाई हुई थी, इस पर ब्रह्माजी ने कमंडल से थोड़ा जल छिड़का, उन जल कणों के छिड़कने से एक दैवीय शक्ति उत्पन्न हुई, जिसके हाथ में एक वीणा और हाथ वरद मुद्रा में था। अन्य दो हाथों में से एक में पुस्तक, एक में माला थी।

ब्रह्माजी ने तब देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया, इस पर देवी ने जैसे ही वीणा बजाना आरम्भ किया, वैसे ही संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। तब ब्रह्माजी ने उसे वाणी की देवी सरस्वती कहा। इस दिन बसंत पंचमी अर्थात माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि थी, तभी से इसे सरस्वती जयन्ती के रूप में मनाया जाने लगा। बसंत ऋतु का प्रारम्भ इस दिन से माना जाता है।

— ज्योतिषाचार्य पं राजीव शर्मा

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Posted By: Kartikeya Tiwari