रोड किनारे घर, जिंदगी और जेब दोनों पर भारी
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पीएम के साथ ही पीएम-2.5 की मात्रा लगातार बढ़ रही है हवा में 13 से 16 गुना अधिक मिल रहा है अधिक उम्र के लोगों में क्रोमियम और निकिल 1.5 से चार किमी तक पाई जाती है कार्बन की परत 24 घंटे ट्रकों का धुआं झेलते हैं रोड किनारे बने घरों में रहने वाले आईआईटी कानपुर और दिल्ली की रिपोर्ट में खुलासा एनएच और जीटी रोड के किनारे रहने वाले हो रहे बीमारियों के शिकार शहर के अंदर और कॉलोनीवासियों की जिंदगी है काफी बेहतर balaji.kesharwani@inext.co.inALLAHABAD: प्रदूषण का जहर हजारों लाखों लोगों की जिंदगी में घुल रहा है। दिल्ली-लखनऊ-कानपुर के साथ ही देश के अन्य शहरों व महानगरों में प्रदूषण का दायरा लगातार बढ़ रहा है। आईआईटी कानपुर और आईआईटी दिल्ली की स्टडी के मुताबिक देश में जिन लोगों का घर नेशनल हाईवे और स्टेट हाईवे के किनारे स्थित है, उन पर फेफड़ों के कैंसर का खतरा मंडरा रहा है। अन्य बीमारियां भी उन्हें जल्दी शिकार बनाती हैं।
रेट दोगुना से भी होता है अधिकजब प्रॉपर्टी खरीदने और बेचने की बात आती है तो मेन रोड से सटे आशियाने की कीमत सबसे ज्यादा लगती है। सर्किल रेट भी शहर के अन्य इलाकों की अपेक्षा अधिक होता है। लेकिन लोगों को ये पता नहीं कि ये महंगा आशियाना उनकी जिंदगी पर भी भारी पड़ रहा है। क्योंकि हवा में पीएम-10 के साथ ही पीएम-2.5 की मात्रा लगातार बढ़ रही है।
बन चुके हैं हजारों आशियाने इलाहाबाद की बात करें तो लखनऊ हाईवे पर तेलियरगंज, फाफामऊ तक सड़क किनारे सैकड़ो आवास व बंगले बने हैं। कानपुर हाईवे पर भी धूमनगंज, सुलेमसराय से आगे बम्हरौली तक सड़क किनारे सैकड़ो मकान बने हैं। सिविल लाइंस और बालसन चौराहा होकर निकले जीटी रोड के किनारे भी हजारों लोग रहते हैं। इन सड़कों से पर डे हजारों वाहन गुजरते हैं। उनसे निकलने वाला धुआं सबसे अधिक किनारे वालों को ही प्रभावित करता है। शहरी इलाकों से होकर गुजरे एनएच एनएच-02 दिल्ली-हावड़ा- झूंसी, हनुमानगंज एरिया एनएच- 76- मिर्जापुर रोड- नैनी एरिया - मिर्जापुर, झांसी, उदयपुर रोड को जोड़ता है एनएच-24- लखनऊ रीवां रोड -एनएच- 96- प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, फैजाबाद क्या है आईआईटी कानपुर और दिल्ली की रिपोर्ट - जो लोग सड़कों के किनारे रहते हैं, उनकी सांसों में लगातार क्रोमियम और निकिल घुलता रहता है। ये कैंसर का खतरा बढ़ने की वजह है। ये अब बच्चों में सुरक्षित स्तर से ज्यादा पाया जाने लगा है। ज्यादा उम्र के लोगों में 13 से 16 गुणा अधिक मिल रहा है।- कार्बन का कण एक व्यक्ति के सिर के बाल से एक हजार गुणा छोटा होता है।
- पूरे उत्तर भारत में कार्बन की परत है। इसकी परत डेढ़ किमी से चार किमी तक पाई जाती है, जिसकी मौसम के मुताबिक परत की मोटाई घटती-बढ़ती रहती है। - जो रोड किनारे रह रहा है, उसके घर में 24 घंटे ट्रक का धुआं पहुंच रहा है। ऐसे में उसका एक्सपोजर दूर रहने वाले के मुकाबले अधिक मिलना लाजिमी है। खतरनाक है पर्टिकुलेट मैटर पर्टिकुलेट मैटर व्यक्ति के बाल से एक हजार गुणा छोटे होते हैं। ये हमारी सांस के माध्यम से फेफडे़ में जाते हैं और स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालते हैं। इनकी वजह से बच्चों में अस्थमा, सांस की दिक्कत बढ़ रही है। ये कैंसर के भी कारण हो सकते हैं। विश्व कैंसर एसोसिएशन ने पर्टीकुलेट मैटर को इस कैटेगरी में डाला है। डॉ। आशुतोष गुप्ता चेस्ट स्पेशलिस्ट मेन रोड से घर दूर तो सुरक्षित हैं आपप्रदूषण में मौजूद छह प्रकार की सूक्ष्म धातुएं किसी भी व्यक्ति के फेफड़े पर बुरा असर डालती हैं। इन धातुओं में जिंक और निकिल की मात्रा सबसे अधिक है। इनका स्तर बच्चों व बड़ों में 11 गुना अधिक पाया गया है। रोड के किनारे रहने वालों के यहां दिक्कत ज्यादा होती है। जबकि कॉलोनी व गली में रहने वाले कम प्रभावित होते हैं।
प्रो। एआर सिद्दीकी - इलाहाबाद विश्वविद्यालय घर की खिड़कियां खोलते हैं, बालकनी में खड़े होते हैं तो दम घुटने लगता है। हाईवे के बेहद करीब स्थित घर में खिड़की से ठंडी हवा की जगह जहरीली हवाएं घर के अंदर आती हैं। संजय कुमार निवासी-नैनी मिर्जापुर-इलाहाबाद हाईवे एनएच से पर डे हजारों गाडि़यां निकलती हैं, इससे धूल और धुआं बहुत ज्यादा होता है। घर के दरवाजे को बंद रखना पड़ता है। ये बात सही है कि रोड किनारे स्थित घर की जगह थोड़ी दूर स्थित घरों में रहना ज्यादा बेहतर है। शिवसेवक सिंह निवासी- सोहबतियाबाग जल और वायु प्रदूषण की वजह से हमारे देश की जीडीपी का बहुत बड़ा हिस्सा स्वास्थ्य की सेवाओं पर खर्च हो रहा है। गांव से लेकर शहर तक स्वास्थ्य को ठीक करने के लिए जो खर्च हो रहा है, उसे बचा लिया जाए तो उसका उपयोग दूसरे कार्यो में हो सकता है। कमलेश सिंह समाज सेवी एवं वरिष्ठ पार्षद