छत्तीसगढ़ में अगवा हुए कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन शुक्रवार की सुबह सुकमा स्थित अपने घर पहुँचे तो उत्सव जैसा माहौल था.

पटाखे फोड़े जा रहे थे और मिठाइयाँ बाँटी जा रही थीं। घर में घुसने से पहले बाकायदा मेनन की आरती उतारी गई। लेकिन उसी घर के आसपास खड़े पुलिस के जवानों के चेहरे उतरे हुए थे। वो बहुत उदास थे।

और वो इसलिए कि इसी घर में रहने वाले उनके दो साथी इन्ही 'कलेक्टर साहब' की रक्षा करते हुए अपनी जान से हाथ धो बैठे थे और ये घर आज उनको भूल गया था।

दुखगत 21 अप्रैल को जब कलेक्टर का माओवादियों ने अपहरण किया था तो उन्होंने एलेक्स पॉल मेनन के एक सुरक्षाकर्मी का गला रेत दिया था और दूसरे को गोली मार दी गई थी।

अमज़द खान और किशन कुजूर की अंत्येष्टि कर दी गई। सरकार की ओर से उनके परिजनों के लिए कुछ सरकारी घोषणाएं कर दी गईं। शुक्रवार की सुबह जब कलेक्टर का परिवार खुशियाँ मना रहा था, तो वहाँ तैनात एक सिपाही ने कहा, "इस घर में दो मौतें भी हुई हैं लेकिन किसी को इस बात की याद भी नहीं."

दुखी सिपाही को थोड़ा और कुरेदा कि क्या इस घर के लोगों को किसी ने ये याद नहीं दिलाया, तो उसने कहा, "हम तो कर्मचारी हैं, हम क्या कहेंगे." इस सिपाही का गम इतना बड़ा था कि उसे अपने अफसर का डर भी नहीं था। शायद इसलिए क्योंकि अफसर भी उतना ही दुखी था।

थानेदार रैंक के इस अधिकारी ने कहा, "कलेक्टर साहब तो हीरो बन गए। मिट्टी पलीत हुई उन दो सिपाहियों के परिवार वालों की जिनकी जान गई."

वो चुप नहीं हुए। उन्होंने कहा, "मिट्टी पलीत रमन सिंह के दावों की भी हुई, जो दावे कर रहे थे कि नक्सलियों से लड़ाई नियंत्रण में है। कलेक्टर तक सुरक्षित नहीं तो क्या कहेंगे अब?"

वैसे सरकार ने घोषणाएँ करके अपना कर्तव्य पूरा कर लिया है। दिल्ली आए रमन सिंह पत्रकारों से चर्चा कर रहे थे तो उन दो सिपाहियों का मामला भी उठा।

जब उनसे पूछा गया कि छत्तीसगढ़ सरकार ने मारे गए दो कॉंस्टेबल के बारे में संवेदनशीलता नहीं दिखाई, तो उन्होंने कहा, "ये स्थायी प्रक्रिया है। हमने 25-30 लाख रूपया परिवार को, पूरे समय जितना सर्विस बाकी है उसकी पूरी तनख्वाह, पेंशन और परिवार के एक व्यक्ति को स्थायी नौकरी देने का वादा किया है."

मुख्यमंत्री ने कहा, "हिंदुस्तान में किसी भी सरकार की ओर से इतनी बढ़िया पैकेज उसी दिन (मौत वाले दिन) नहीं मिलता। हम पच्चीस से तीस लाख तक टोटल रकम उस परिवार को तुरंत देते हैं." लेकिन कलेक्टर के घर के आसपास खड़े सिपाही सरकार से शायद कुछ अधिक संवेदनशीलता की अपेक्षा करते हैं।

पत्रकारों की शिकायतकलेक्टर और उनके परिजनों से शिकायत सिर्फ सिपाहियों को नहीं थी। मीडिया वालों को भी थी। पिछले 12 दिनों से सुकमा, चिंतलनार और ताड़मेटला के बीच चक्कर लगा रहे मीडियाकर्मियों को उस समय बहुत निराशा हुई जब अपने घर सुकमा पहुँचे कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन ने अपनी कार के शीशे तक नीचे नहीं किए।

एक पत्रकार ने शिकायत करते हुए कहा, "इनके लिए हमने माओवादियों की धमकियाँ झेलीं, बंदूक को अनदेखा करके भी डटे रहे लेकिन धन्यवाद करना तो दूर उन्हें बात करने तक की फुरसत नहीं."

उल्लेखनीय है कि दो दिन पहले ताड़मेटला गए पत्रकारों को माओवादियों ने धमकाया था कि वे लौट जाएँ वरना गोली मार दी जाएगी। हालांकि माओवादियों ने बाद में बीबीसी हिंदी के माध्यम से माफ़ी मांग ली लेकिन डर तो हर पत्रकार और मीडियाकर्मी के मन में था ही।

Posted By: Inextlive