44 हजार बोगियों में इस्तेमाल के लिए रेलवे खरीदेगा गोबर, मालामाल होंगे गाय पालने वाले
बायो टॉयलेट में पड़ती है गाय के गोबर की जरूरतबायो टॉयलेट में प्रयुक्त होने वाले घोल का नाम इनोकुलुम है। डीआरडीई इसे तैयार कर रेलवे को देता है। घोल को तैयार करने के लिए उसमें गाय का गोबर मिलाया जाता है। गोबर के कारण घोल में बैक्टीरिया जीवित रहते हैं साथ ही और बैक्टीरिया पैदा होते रहते हैं। 400 लीटर के टैंक में 120 लीटर घोल डाला जाता है। घोल से टैंक में जमा मल-मूत्र अलग हो जाता है। मल कार्बन डाइआक्साइड में तब्दील होकर हवा में उड़ जाता है और पानी को रिसाइकिल कर ट्रेनों की धुलाई की जाती है।
भारतीय रेलवे में लगभग 44 हजार कोचों में बायो टॉयलेट लगाने की योजना है। अभी तक 26 हजार कोच में एक लाख बायो टॉयलेट लगाए जा चुके हैं। इसमें उत्तर मध्य रेलवे के लिए 644 कोचों में 2023 बायो टॉयलेट लग चुके हैं। एनसीआर के 1397 कोच में करीब पांच हजार बायो टॉयलेट लगाए जाने हैं। उत्तर मध्य रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी गौरव कृष्ण बंसल का कहना है कि 31 दिसंबर तक सभी कोचों में बायो टॉयलेट लगाने की योजना है। इस दिशा में तेजी से काम चल रहा है।Report by : रमेश यादव, इलाहाबाद