- ऑल इंडिया कांग्रेस ऑफ ऑब्सट्रीक्स एंड गाइनाकोलॉजी में बोलीं डेलीगेट और इनफर्टिलिटी एक्सपर्ट

- क्रोमोसोमल अबनॉरमेलिटी आगे ट्यूमर के रूप में होती है डेवलप

PATNA : इनफर्टिलिटी या बांझपन एक बड़ी प्रॉब्लम के रूप में सामने आया है। कंट्री की टोटल पॉपूलेशन का 15 पर्सेट इनफर्टिलिटी की प्रॉब्लम से जूझ रहा है.अर्बन और रूरल दोनों एरिया में इसके केसेज हैं पर कारण अलग-अलग हैं। जहां रूरल एरिया में न्यूट्रिशन एक चैलेंज है तो वहीं अर्बन एरिया में लेट मैरेज। रूरल एरिया के प्रॉब्लम इस्टर्न स्टेट्स में अधिक है। बिहार भी इसी जोन में है। ऑल इंडिया कांग्रेस ऑफ ऑब्सट्रीक्स एंड गाइनाकोलॉजी में डेलीगेट और इनफर्टिलिटी एक्सपर्ट डॉ बीएन चक्रवर्ती ने बताया कि बिहार में कम से कम 10 पर्सेट पॉपूलेशन इनफर्टिलिटी की प्रॉब्लम से जूझ रहा है। लेकिन ऐसे केसेज अर्बन एरिया में ज्यादा है। अर्बन लाइफस्टाइल में लेट मैरेज एक कॉमन ट्रेड हो गया है। इनफर्टिलिटी के केसेज भी बढ़े है। इसमें बड़े शहर शामिल हैं। करियर, फैमली प्रॉब्लम या किसी और वजह से लेट मैरेज इनफर्टिलिटी की एक बड़ी वजह बन गई है। मेल में 35 और फीमेल में 30 साल के बाद का समय लेट मैरेज कहा जाता है। लेकिन इसका ज्यादा असर फीमेल पर पड़ा है।

ट्यूमर बनती है प्रॉब्लम

जैसे जैसे उम्र बढ़ती है वैसे वैसे जीन्स की ताकत घटने लगती है। इसे क्रोमोसोमल अबनॉरमेलिटी कहा जाता है। फीमेल में बर्थ के टाइम दो मिलियन एग होता है। पिरियड स्टार्ट होने के बाद एग घटने लगता है। एक महीने में कम से कम 50 से 60 हजार एग नष्ट हो जाते है। और अगर 30 साल तक प्रेगनेंसी नहीं होती है तो उसको ट्यूमर हो सकते है। जिसे फाइब्रॉएड एनडोमरिएसिस कहा जाता है। यह यूटरस और ओवरी को डैमेज कर देता है जिस की वजह से बच्चे होने की संभावना कम जाती है।

केमिकल और स्ट्रेस भी वजह

वेजिटेबल्स में पेस्टीसाइड और केमिकल के यूज से हारमोन पर असर पड़ता है। इसके कारण रिप्रोडक्टीव हेल्थ पर बुरा असर पड़ा है। साथ ही बॉडी में टाक्सिक एलीमेंट भी आ जाता है। इसमें वेजीटेबल कलर करने के केमिकल खास तौर पर हैं। जैसे भिंडी और लौकी को ग्रीन कलर करने के लिए कॉपर सल्फेट यूज होता है। वहीं स्ट्रेस या तनाव के कारण बॉडी के हॉरमोन्स में एबनॉरमिलिटी आ जाती है। साथ ही बॉडी का ब्लड सर्कुलेशन भी कम हो जाता है। पहले जहां फीमेल में इनफर्टिलिटी की समस्या अधिक थी। लेकिन मेल में भी यह प्रॉब्लम तेजी से बढ़ रहा है। डॉ बीएन चक्रवर्ती के मुताबिक इन दिनों पॉल्ट्री चिकन का वेट बढ़ाने के लिए फीमेल हॉरमोन का यूज होता है। ऐसे चिकन के यूज से मेल्स में इनफर्टिलिटी की प्रॉब्लम आई है।

इंडिया में हर साल 12 लाख कैंसर पेशेंट के नए केसेज जुड़ रहे

डेवलपिंग कंट्री में कैंसर एक बड़ी चुनौती के रूप में उभरा है। इंडिया में हर साल 12 लाख कैंसर पेशेंट के नए केसेज जुड़ रहें हैं, जिसमें एक बड़ी संख्या महिलाओं की है। ये बातें महावीर कैंसर संस्थान के डायरेक्टर डॉ जितेन्द्र कुमार सिंह ने शनिवार को ऑल इंडिया कांग्रेस ऑफ ऑब्सट्रैक्टिव एंड गाइनोकोलॉजी के नेशनल कांफ्रेंस के वर्कशॉप में कही। वेटनरी कॉलेज कैंपस में ऑर्गनाइज इस पांच दिनों के कांफ्रेंस में कई वर्कशॉप होंगे। इसका उद्देश्य गाइनोकोलॉजी के क्षेत्र में रिसर्च प्रमोशन और अवेयरनेस फैलाना है। वर्कशॉप की हेड व गाइनोकोलॉजिस्ट डॉ प्रज्ञा मिश्रा ने कहा कि वीमेन में ओवेरियन कैंसर हर साल एक लाख वीमेन को अपनी चपेट में ले रहा है। वर्कशाप के दौरान कई लेक्चर हुए। इनफर्टिलिटी पर डॉ हिमांशु राय, हेपारिन वैक्सिन पर डॉ सारिका राय व अन्य ओरेटर्स ने लेक्चर दिए। इस अवसर पर कई स्टेट्स से डेलीगेट एंड डॉक्टर आए हुए थे। मुम्बई से डॉ निरंजन चौहान, डॉ परमिला देवी, डॉ ज्योतिका देसाई, बेंगलुरु से डॉ शोभा, डॉ पार्थो वासु कोलकाता से डॉ बीएन चक्रवर्ती, डॉ राहुल राय चौधरी और डॉ इंद्रानी गांगुली दिल्ली से आई थी।

Mis-arrangement troubled doctors

ऑल इंडिया कांग्रेस ऑफ ऑब्सट्रक्टिव एंड गाइनोकोलॉजी के कांफ्रेंस में बदइंतजामी भी दिखी। कई ऐसे लोग भी कांफ्रेंस के बाहर परेशान रहे जिन्होंने पहले से यहां रजिस्ट्रेशन कराया हुआ था। लेकिन फिर भी वो टाइम पर कांफ्रेंस अटेंड नहीं कर पाए। पहली बार पटना आए डॉ वीपी सिंह ने बताया कि उन्हें घंटो रजिस्ट्रेशन काउंटर के पास खड़ा रहना पड़ा। उन्हें कैंसर के एक वर्कशाप में जाना था। लेकिन रजिस्ट्रेशन लिस्ट में नाम नहीं होने की वजह से अंदर नहीं जा पाए। हद तो तब हो गई जब किसी ने सही से को-आर्डिनेट तक नहीं किया। उन्होंने बताया कि मैं यहां गॉलब्लाडर की सर्जरी ,ओवेरियन कैंसर से संबंधित वर्कशॉप अटेंड करने आया था लेकिन नाम नहीं होने की वजह से अभी तक बाहर खड़ा हुं। वहीं दिल्ली से आए डॉ सुधा अग्रवाल और अनिल अग्रवाल को भी ऐसी ही प्रॉब्लम फेस करनी पड़ी। इन दोनों ने बताया कि रजिस्ट्रेशन कराने के बाद भी उनका नाम लिस्ट में नहीं होने की वजह से वो टाइम पर कांफ्रेंस अटेंड नहीं कर पाए। काउंटर पर भी कोई हेल्प नहीं मिली। सुधा अग्रवाल ने बताया कि मुझे लेप्रोस्कोपिक वर्कशॉप में जाना था।

यहां की सोसाइटी में शुरू से ही फीमेल के हेल्थ और न्यूट्रिशन को कम महत्व दिया गया है, जिससे क्ख्-क्ब् साल के अर्ली एज में टीबी के केसेज सामने आते हैं। जो पेट में दर्द, गले में सूजन आदि के रूप में शुरूआत में होते हैं। न्यूट्रिशन नहीं मिलने के कारण उनका फिजिकल ग्रोथ पूरी तरह से नहीं हो पाता है। पीरिएड इरेग्यूलर , कम या बंद भी हो जाता है। जिस के कारण फेलोपियन ट्यूब पर असर पड़ता है। यूटरस वॉल सिकुड़ने लगता है। यह आगे चलकर इनफर्टिलिटी की प्रॉब्लम डेवलप करता है।

डॉ बीएन चक्रवर्ती

> Posted By: Inextlive