>RANCHI: आम लोगों का सबसे बड़े हथियार आरटीआइ एक्ट झारखंड में फेल हो गया है। लोगों को न्याय और हक दिलाने के उद्देश्य से जिस झारखंड राज्य सूचना आयोग का गठन किया गया, वह आज खुद दम तोड़ता नजर आ रहा है। कभी मुख्य सुचना आयुक्त समेत सात सूचना आयुक्तों के साथ चलने वाला यह आयोग आज इकलौते सूचना आयुक्त के भरोसे है। स्टाफ की भी भारी कमी है। आलम यह है कि राज्य सूचना आयोग में मामलों का अंबार लगा हुआ है, लेकिन उनकी सुनवाई करने वाला कोई आयुक्त ही नजर नहीं आ रहा है। स्थिति इतनी भयावह हो गई है कि लगभग क्भ् हजार मामले पेंडिंग पड़े हैं, जिनकी रोज सुनवाई हो तब भी ख्फ् साल लग जाएंगे। ये हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि झारखंड के एक आरटीआइ एटिविस्ट का ही कहना है। इन्होंने समय-समय पर राज्य सूचना आयोग में जो अपील दायर की है, उसके हिसाब से इनकी बात सटीक भी बैठती है।

एक आयुक्त के भरोसे चल रहा आयोग

राज्य सूचना आयोग में काम की गति क्या है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक प्रभारी आयुक्त के भरोसे काम चलाया जा रहा है। इसकारण आयोग में डेली मामलों की सुनवाई भी नहीं हो पा रही है। नियम के अनुसार राज्य सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त समेत कुल 7 आयुक्त सुनवाई के लिए होने चाहिए, लेकिन यहां पर सिर्फ एक आयुक्त हैं, जो प्रभारी मुख्य सूचना आयुक्त का काम भी कर रहे हैं। इस कारण यहां पर पेडिंग केस का मामला बढ़ता ही जा रहा है।

भ्रष्टाचार को छूट दे रही सरकार

झारखंड सरकार भी राज्य सूचना आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त सहित खाली पदों को भरने के लिए गंभीर नहीं दिख रही है। जबकि सूचना अधिकार रक्षा मंच के बैनर तले पिछले दिनों विधानसभा के सामने धरना भी दिया गया। इस धरने का नेतृत्व करने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट गणेश कुमार वर्मा सीटू ने बताया कि सभी विधानसभा सदस्यों से भी इस मामले को लेकर आवाज उठाने की अपील की गई थी। लेकिन, किसी विधायक ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने कहा कि सरकार भी भ्रष्टाचार को छूट दे रही है। ऐसा लगता है कि आरटीआइ के तहत सूचना नहीं मिल रही है, तो सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार की खुली छूट मिल गई है।

वेबसाइट तक अपडेट नहीं

झारखंड सूचना आयोग अपने को हाइटेक दिखाने के लिए वेबसाइट भी बनाया है। लेकिन यह वेबसाइट कितनी अपडेट है। यह आप आप खुद जान लीजिए। इस वेबसाइट के मुताबिक अब भी झारखंड राज्य सूचना आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त दिलीप कुमार सिन्हा हैं, जबकि वह रिटायर्ड हो चुके हैं। इसके साथ ही इस वेबसाइट पर आप कोई भी लेटेस्ट जानकारी चाहेंगे, तो निराशा ही मिलेगी।

नहीं है कोई अंडर सेक्रेटरी

आयोग के कामकाज को सुचारू ढंग से चलाने के लिए यहां पर अंडर सेक्रेटरी की जरूरत है। लेकिन यह पद यहां है ही नहीं। इस कारण आयोग का कामकाज बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।

ख्ब् अप्रैल ख्00ब् को हुआ था आयोग का गठन

देश में आरटीआइ एक्ट लागू होने के बाद झारखंड के लोगों को भी यह अधिकार दिलाने के उद्देश्य से झारखंड राज्य सूचना आयोग का गठन राज्य सरकार की अधिसूचना के तहत ख्ब् अप्रैल ख्00ब् को किया गया। इसके प्रथम मुख्य सूचना आयुक्त रिटायर्ड जस्टिस हरि शंकर प्रसाद बने। उनके साथ बाकी म् लोग भी सूचना आयुक्त बने। इनका कार्यकाल जुलाई ख्0क्क् तक रहा। इसके बाद रिटायर्ड जस्टिस दिलीप कुमार सिन्हा भ् अगस्त ख्0क्क् को झारखंड राज्य सूचना आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त बनाए गए। कुछ महीने पहले उनका भी कार्यकाल समाप्त हो गया। लेकिन, फिलहाल नए मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति नहीं हुई है। इस कारण यह विभाग सफेद हाथी बन कर रह गया है।

क्या कहते हैं आरटीआइ कार्यकर्ता

आयोग से उठ गया भरोसा : अमित

अमित झा झारखंड आरटीआई फोरम से जुड़े हुए हैं। ऐसे में समय-समय पर वह विभिन्न विभागों से सूचना प्राप्त करने के लिए आरटीआई भी करते रहे हैं। उनका कहना है कि कम से कम क्भ् विभागों से जब उन्हें सूचना नहीं मिली, तो उन्होंने प्रथम अपील दायर किया। इसके बाद भी जब सूचना नहीं मिली तो वह झारखंड राज्य सूचना आयोग पहुंचे। यहां पर सुनवाई पर सुनवाई के लिए बुलाया जाता रहा, लेकिन अगली पार्टी ही नहीं आती थी। आयोग का रवैया भी आरटीआई मांगने वालों के खिलाफ था। ऐसे में अमित कहते हैं कि आयोग से न्याय की उम्मीद नहीं की जा सकती।

सूचना मिली न हुई सुनवाई: गणेश--फोटो के साथ--

हजारीबाग के रहने वाले गणेश सीटू झारखंड के जानेमाने सूचना का अधिकार कार्यकर्ता हैं। वह विभिन्न विभागों में आरटीआई के तहत सूचना मांगते रहते हैं। उनका कहना है कि सूचना आयोग का गठन इसलिए किया गया कि जब कोई आम आदमी किसी विभाग से सूचना मांगे और उसे विभाग की तरफ से सूचना न मिले, तो वह आयोग का दरवाजा खटखटाकर न्याय मांग सकता है। लेकिन झारखंड राज्य सूचना आयोग तो विभागों से भी ज्यादा देर करता है। यहां पर दिन-महीने नहीं, बल्कि सालों-साल तक सुनवाई करना तो दूर मामलों पर संज्ञान तक नहीं लिया जाता है।

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नौ महीने में मामले पर संज्ञान तक नहीं लिया

गणेश सीटू ने साल ख्0क्फ् में मुख्यमंत्री सचिवालय झारखंड से सूचना मांगी थी। झारखंड में पायलट प्रोजेक्ट के तहत किन-किन जिलों में लाभुकों को कितनी-कितनी राशि उपलब्ध कराई गई है। इसका विस्तृत व्यौरा उन्हें उपलब्ध कराया जाए। लेकिन जब विभाग से सूचना नहीं मिली, तो वह राज्य सूचना आयोग में मामले को लेकर गए लेकिन यहां पर 9 महीने तक मामले पर संज्ञान तक नहीं लिया गया। जबकि नियम है कि आयोग ब्भ् दिन के अंदर मामले पर संज्ञान लेते हुए संबंधित विभाग को नोटिस जारी करे। आयोग में तलब करे। हालत यह है कि इस मामले की अभी तक कोई न तो सुनवाई हुई और न ही सूचना दी गई।

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तीन साल बाद भी सुनवाई का इंतजार

नामकुम ओवरब्रिज निर्माण के समय रांची टाटा मार्ग पर बड़ी संख्या में हरे पेड़ों को काटा गया। उस समय हाईकोर्ट ने झारखंड सरकार के वन विभाग को आदेश दिया था कि जितने पेड़ काटे गए हैं, उसी अनुपात में पौधे लगाए जाएं। इसी का आधार बनाकर आरटीआई रांची के आरटीआई एक्टिविस्ट अमित ने वन विभागा से रिपोर्ट मांगी थी कि इस आवेरब्रिज के बनाने के समय यहां पर रोड किनारे कितने पेड़ काटे गए और कितने लगाए गए। लेकिन, इसका जवाब वन विभाग ने नहीं दिया। तब उन्होंने राज्य सूचना आयोग में अपील की। लेकिन, तीन साल में इस मामले पर सुनवाई तक नहीं हुई। थक-हार कर उन्होंने आरटीआइ के तहत सूचना मांगना ही छोड़ दिया।

फोटो--

आयोग में खाली पद भरे सरकार

सरकार में बैठे लोग नहीं चाहते कि आम लोगों को सूचना मिले। इसलिए आम लोग जब आरटीआई के जरिए सूचना के लिए आवेदन देते हैं, तो उन्हें सूचना तय समय से नहीं देते हैं अधिकारी और कर्मचारी, बल्कि उल्टे उन्हें परेशान करते हैं। जहां तक बात झारखंड राज्य सूचना आयोग की है तो सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए। वहां पर केस की सुनवाई और डिस्पोजल बहुत कम है। जब तक सूचना आयुक्त के सभी पद भरे नहीं जाते, तब तक मामलों की सुनवाई कैसे होगी।

-बलराम, आरटीआई एक्टिविस्ट

आयोग के पास न तो स्टाफ हैं और न ही जितने सूचना आयुक्त होने चाहिए वे हैं। जबकि नियमानुसार एक मुख्य सूचना आयुक्त और क्0 सूचना आयुक्त होने चाहिए। लेकिन राज्य सूचना आयोग सिर्फ क् सूचना आयुक्त के भरोसे चल रहा है। मुख्य सूचना आयुक्त का पद अगस्त से ही खाली है। ऐसे में जो मामले यहां पर सुनवाई के लिए आते हैँ, उनका निष्पादन होने में परेशानी होती ही है। डेली ब्0 से लेकर भ्0 मामले की सुनवाई एक आयुक्त कैसे कर सकता है।

-प्रबोध रंजन दास, प्रभारी मुख्य सूचना आयुक्त, राज्य सूचना आयोग

Posted By: Inextlive