बॉलीवुड के मशहूर डायरेक्‍टर वी शांताराम का आज 116वां जन्‍मदिवस है। गूगल ने डूडल बनाकर शांताराम को सम्‍मानित किया है। शांताराम को हिंदी फिल्‍म इतिहास का पितामह कहा जाता है। वो पहले ऐसे निर्देशक थे जिन्‍होंने फिल्‍मों के साथ प्रयोग किया।


फिल्में सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं भारत में एक तरफ जहां अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ी जा रही थी। वहीं दूसरी ओर भारतीय सिनेमा नए-नए दौर से गुजर रहा था। उस वक्त कई ऐसे फिल्मकार थे जिन्होंने बॉलीवुड को पाल-पोसकर चलना सिखाया। ऐसे ही एक निर्देशक, प्रोड्यूसर और एक्टर थे वी. शांताराम। बॉलीवुड में मनोरंजन से इतर प्रयोगवादी फिल्में करने का श्रेय शांताराम को जाता है। चार्ली चैपलिन ने देखी थी इनकी फिल्म


साल 1921 में आई मूक फिल्म 'सुरेख हरण' से शांताराम ने अपने करियर की शुरुआत की। चार साल बाद आई फिल्म 'सवकारी पाश' में उन्होंने किसान की भूमिका निभायी। इन सालों में शांताराम को फिल्म निर्माण की समझ भी आ गई और उन्होंने बतौर निर्देशक नई पारी की शुरुआत की। उन्होंने साल 1927 में पहली फिल्म 'नेताजी पालकर' बनाई बाद में अपने बैनर राजकमल कला मंदिर की स्थापना की। साल 1939 में शांताराम ने एक मराठी फिल्म 'मनूस' का निर्माण किया, यह उन चुनिंदा भारतीय फिल्मों में एक है जिसे चार्ली चैपलिन ने भी देखा। चैपलिन ने यह फिल्म देखने के बाद शांताराम की काफी तारीफ की थी।समाज को संदेश देने वाली फिल्मों पर जोर

शांताराम ने समान को संदेश देने वाली फिल्मों पर जोर दिया। उन्हें पता था कि फिल्में सिर्फ मनोरंजन और मसाला के लिए नहीं बल्िक देश और समाज को सुधारने का काम भी कर सकती हैं। इसीलिए उनकी फिल्में इसी टॉपिक के इर्द-गिर्द घूमती थीं। गीत और संगीत शांताराम की फिल्मों का एक और मजबूत पक्ष होता था। उनकी फिल्मों में जहां कहानी बेहद सधे हुए तरीके से आगे बढ़ती थी, वहीं गीत और संगीत उनमें चार चांद लगाते। मिसाल के रूप में 'झनक झनक पायल बाजे' को देखा जा सकता है।

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari