पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के संबंध बिगड़ते ही जा रहे हैं. पाकिस्तान पर ये आरोप लगते रहे हैं कि वो अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान को एक सामरिक पूंजी मानता है.


पेशावर आर्मी स्कूल हमले में जिस तरह बच्चों को मारा गया, उसके बाद तो पाकिस्तानी तालिबान के ख़िलाफ़ अफ़ग़ानिस्तान में काफ़ी नफ़रत है.यही नहीं पाकिस्तानी तालिबान गुट के नेता मुल्ला फ़ज़लुल्लाह के अफ़ग़ानिस्तान में छिपे होने की ख़बरें भी आ रही हैं.तो दूसरी ओर अफ़ग़ानिस्तान से विदेशी सेनाओं की वापसी हो चुकी है.ऐसे में नई परिस्थितियां, नई रुकावटें, नई अटकलें और नई चुनौतियां सामने हैं. इनके बारे में बीबीसी ऊर्दू ने अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई से बात की.पाकिस्तान के साथ बिगड़ते संबंधों को संभालने की कोशिश हुई?पाकिस्तान ने यही सोचा कि वो अफ़ग़ानिस्तान पर क़ब्ज़ा करने के लिए तैयार है.क्या आप वाक़ई ये सोचते हैं कि पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान पर क़ब्ज़ा करना चाहता था?यक़ीनन.


बिल्कुल उसने ये किया. पाकिस्तान ने अफ़ग़ान लोगों में फूट के बीज बोए, और हद दर्जे तक चरमपंथ, उग्रवाद और हिंसा को हवा दी ताकि अफ़ग़ानिस्तान कमज़ोर पड़ जाए.आपने 2011 में भारत के साथ सामरिक समझौता किया. आपको नहीं लगता कि उसने आपको पाकिस्तान से काफ़ी दूर कर दिया?पाकिस्तानी का आरोप है कि मुल्ला फजलुल्लाह अफगानिस्तान में छिपा हुआ है. मैं इससे इंकार नहीं करता.

शायद पाकिस्तानी तालिबान के रहनुमा मुल्ला फ़ज़लुल्लाह अफ़ग़ानिस्तान में हो. मैं नहीं जानता इसीलिए मैं इससे इंकार भी नहीं करता.अगर अफ़ग़ानिस्तान के पास ये क्षमता है कि वो अपने यहां छिपे हुए पाकिस्तानी लड़ाकों को पकड़कर उसके हवाले करे तो इससे अफ़ग़ानिस्तान को ताक़त मिलेगी.मगर मुझे मालूम है कि अफ़ग़ानिस्तान के पास ये क्षमता नहीं है.अब मैं उम्मीद करता हूं कि स्कूल पर हुआ हमला शायद ये तब्दीली ले आए जिसमें कई बच्चे और बड़े मारे गए.बुनियादी तौर पर पाकिस्तान को चरमपंथ को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना बंद करना होगा.जब ये रुक जाएगा तो सबकुछ ठीक हो जाएगा.

Posted By: Satyendra Kumar Singh