Allahabad: वही चेहरा वही आवाज और वही खास अंदाज. सब कुछ वही था. हम बात कर रहे हैं मोस्ट पॉपुलर सीरियल प्रतिज्ञा में अहम किरदार निभाने वाले ठाकुर सज्जन सिंह की यानी अनुपम श्याम ओझा की. ट्यजडे को अनुपम श्याम ओझा सिटी में थे. एक प्रेस मीट के दौरान डायस पर उनके आगे लगे नेम प्लेट पर न तो अनुपम श्याम ओझा लिखा था व न ही सज्जन सिंह बल्कि लिखा था ठाकुर सत-जन सिंह. उन्होंने इस मौके पर कहा कि वो अब सज्जन सिंह नहीं बल्कि सत जन सिंह बनकर इलाहाबादियों के बीच रहना चाहते हैं. उन्होंने अपनी जिंदगी से जुड़ी कई छुए-अनछुए पहलुओं को भी सामने रखा.

इलाहाबाद से ही सब कुछ सीखा
1977 से मैं लगातार कुंभ स्नान करने प्रयाग आता रहा हूं। प्रयाग ही क्यों हरिद्वार, उज्जैन और नासिक कुंभ में स्नान करने भी मैं जाता हूं। मैंने इलाहाबाद से ही सब कुछ सीखा है। 1973 से 1982 तक नाटक संघ से जुड़ा रहा। नाटककार शरणबली से मिला, उनसे प्रेरणा ली। उस समय प्रयाग के रत्न धर्मवीर भारतीया, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा, रामकुमार वर्मा के संपर्क में रहा। उनसे काफी कुछ सीखने को मिला। फिर राष्ट्रीय नाटक मंडल में काम करते-करते मुम्बई जा पहुंचा। वहां संघर्ष करता रहा। मुम्बई में सब कुछ ठीक था। वहां की आबोहवा की बात ही निराली है, कुछ खटकता था तो वहां की लैंग्वेज। जाइला, आएला और खायला। इस तरह की बातें मन को ठेस पहुंचाती थी जबकि हमारे इलाहाबाद की मीठी बोली सबके दिलों को छू जाती है।

Fame बढ़ाने का मौका मिला
अनुपम श्याम ओझा कहते हैं कि मैं शुरू से चाहता था कि इलाहाबाद की लैंग्वेज को लाइम लाइट में लाया जाए ताकि सभी को हमारी मिठास के बारे में जानकारी हो सके। प्रतिज्ञा सीरियल में मुझे यह मौका मिल गया। मैंने इलाहाबाद के बारे में इलाहाबादी लैंग्वेज में सबको बताना शुरू किया। सीरियल के माध्यम से इलाहाबाद यूनिवर्सिटी, कटरा, पुराना कटरा, मनमोहन पार्क, ममफोर्डगंज, संगम पर बड़े हनुमान जी, सुलाकी की मिठाई आदि के बारे में अपनी स्क्रिप्ट में लिखता रहा। प्रतिज्ञा सीरियल में भले ही सज्जन अनपढ़ है लेकिन उसने अपनी बुलंद आवाज से सबको अपनी ओर अट्रैक्ट किया है। इलाहाबाद के बारे में लोगों को जानने के लिए उत्सुकता पैदा किया।

ठाकुर साहब बोलबो
अनुपम बताते हैं कि आज भारत के कोने-कोने से ही नहीं बल्कि लंदन, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ब्रिटेन, अमेरिका आदि देशों से जब भी कोई फोन करता है तो यही कहता है कि ठाकुर साहब बोलबो कि न बोलबो। ये तो कुछ भी नहीं है। मैं दावे के साथ कह सकता है कि हमारी लैंग्वेज लोगों की इतनी पंसद आई है कि आज बड़ी बड़ी हस्तियां भी अपने घरों में इसी तरह बोलती हैं। सीरियल की कॉपी करते हैं। इसमें राज साहब का परिवार हो या गुजरात के सीएम नरेन्द्र मोदी का या फिर बिहार के फेमस लीडर लालू यादव हो, सभी लोग अपने घरों में इलाहाबादी लैंग्वेज ही बोलते हैं। सबसे फेमस खाना दे बो कि नाई, हम बता दे रहे हैंआदि बोलना अब उनके रूटीन में शामिल हो चुका है।

प्रणाम वालेकुम वालेकुम प्रणाम
प्रतिज्ञा सीरियल के बाद हम एक फिल्म में काम कर रहे हैं जो होली के समय तक पूरा हो जाएगा। उम्मीद है कि होली में फिल्म रिलीज भी हो जाएगी। इस फिल्म का नाम प्रणाम वालेकुम-वालेकुम प्रणाम। जैसा कि नाम से ही क्लीयर है कि हिन्दी और मुस्लिम दो धर्मों का मिलन है। इस फिल्म में पालमपुर और आलमपुर दो गांव हैं। दोनों गांव में इतनी मित्रता है कि एक गांव में गेहूं की खेती होती है तो दूसरे गांव में चक्की लगी है जहां गेहूं पीसा जाता है। लेकिन गांव में एक सरदार जी के आने के बाद कहानी में ट्वीस्ट आ जाता है। दोनों गांव में लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं। दोनों गांव को मिलने के लिए एक नौटंकी वाले आते हैं जो अपनी नौटकी से गांव वालों का मतभेद दूर करते हैं। बाकी स्टोरी आप फिल्म में ही देखना।

मैं तो अब यहीं रहना चाहता हूं
अनुपम श्याम कहते हैं मुम्बई मैं रोजगार की तलाश में गया था। आज मैं जो भी कमाता हूं उसे चार लड़कियों की पढ़ाई में खर्च कर देता हूं। एक लड़की बीएससी तो दूसरी एमएससी की पढ़ाई कर रही हैं। दोनों के परिवार में कुछ ऐसी परिस्थितियां आ गई थीं कि उसकी मां उनकी पढ़ाई का खर्चा नहीं उठा पा रही हैं। मैंने दोनों बच्चियों को आज तक देखा भी नहीं है लेकिन उनकी इच्छा पूरी कर रहा हूं। अब मैं इलाहाबाद में ही रहना चाहता हूं। आप सबका सहयोग चाहिए। अगर आप सहयोग करें तो 2014 का लोकसभा का चुनाव लड़कर आपकी सेवा करूं।

Posted By: Inextlive