उनकी जुबान से निकली हुई बात अक्सर चैनलों की सुर्खियां बन जाती हैं। झूठ और स्वार्थ की चाशनी में डूबीं राजनीति के गलियारों में भी वो कटु सत्य बोलने का माद्दा रखते हैं। सच के लिए देश के बड़े से बड़े कद वाले लोगों को भी अदालत की चौखट तक पहुंचाने में जिन्हें खुशी मिलती है वो नाम है सुब्रमनियन स्वामी का। खुद को 'संन्यासी' कहने वाले सुब्रमनियन की इमेज निर्भीक बेबाक और राजनीति के उस 'स्वामी' के रूप में बन गई जो अपने कथन को हकीकत में बदलकर दिखाते हैं। जानते हैं वो दस बातें जो एक प्रोफेसर को राजनीति के सबसे चर्चित शख्सियत का 'स्वामी' बनाती हैं।


निर्भीक और बेबाक


आज मेरी कट्टर, निर्भीक और बेबाक वाली इमेज ऐसे ही नहीं बनी। मैंने इसके लिए बहुत मेहनत की और ये धीरे-धीरे बनी है। लोगों ने इसे बिगाडऩे की भी बहुत कोशिश की। मैं जब हार्वर्ड से लौटकर इंडिया आया तो मैंने कहा कि इस देश में सोशलिस्ट की नहीं चलेगी। देश में आत्मनिर्भरता और स्वदेशी चलेगा। मैंने देश में स्वदेशी प्लान बनाया। इसपर इंदिरा गांधी बिगड़ गईं। मुझे नौकरी से हटा दिया। मैं दुनिया में कहीं भी प्रोफेसर बन सकता था, लेकिन इंडिया में नहीं बन सकता था। इसीलिए मैं इंडिया छोडऩे की जगह राजनीति में आ गया। फिर इमरजेंसी की घोषणा हुई तो मैंने जो बोला वही किया। मैं बीच में जब भागकर अमेरिका गया तो मैंने वहां अप्रवासी भारतीयों को एकत्र किया। मैं इमरजेंसी के खिलाफ लोगों में हिम्मत जगाना चाहता था। मैंने लोगों से कहा कि मैं एक दिन के लिए संसद जाऊंगा और 2 मिनट का भाषण देकर पुन: भूमिगत हो जाऊंगा। मेरे नाम पर वारंट भी जारी हो चुका था। लोगों को मेरी बात पर विश्वास नहीं हो रहा था, लेकिन फिर भी मैं 10 अगस्त 1976 के दिन संसद में गया और देश विदेश के पत्रकारों के सामने यह कहकर निकल गया कि भारत में प्रजातंत्र मर चुका है। उसके बाद अमेरिका भी लौट गया। इसके बाद से मेरी छवि निर्भींक व्यक्ति की बन गई। और उसके बाद मेरी यह इमेज और भी कट्टर और निर्भीकता वाली बनती चली गई।जो कहा वो कियाआपको अपनी कथनी और करनी में अंतर नहीं रखना चाहिए। जो वादा करें सोच समझकर करें और फिर उसे पूरा कर के दिखाएं। मैं हमेशा जो कहता हूं वो करता हूं। मैंने लोगों से कहा था कि मैं रामसेतु को बचाऊंगा, मैंने बचाया। मैं जब भी किसी पर कोई आरोप लगाता हूं तो उसे कोर्ट में सिद्ध भी करता हूं। इसलिए लोग मुझपर विश्वास करते हैं। मैंने राम कृष्ण हेगड़े को गद्दी से उतारा। जीत में ही है खुशीहर इंसान को जीत में खुशी मिलती है। मुझे भी सबसे ज्यादा खुशी तब मिलती है जब मैं जो कहता हूं वह करके निभा देता हूं। अगर मैं किसी शख्सियत पर कोई आरोप लगाता हूं और फिर कोर्ट में उसे साबित कर देता हूं तो खुश होता हूं। इसके लिए मैं पूरा रिसर्च वर्क करता हूं। पूरे प्रमाणों का अध्यन करता हूं। दोषी को सजा दिलाने में अच्छा लगता है। बाकी मुझे कुछ और नहीं चाहिए मैं संन्यासी हूं।जरूरी है लोगों का विश्वास

मैं जिंदगी में लोगों का विश्वास हासिल किया है। मैंने कभी किसी को धोखा नहीं दिया। यही कारण है कि लोग मुझे एक से एक गंभीर मुद्दे की जानकारी देते हैं। वो चाहते हैं कि जो गलत हो रहा है वो लोगों के सामने आए और स्वामी ही उसे सबके सामने निर्भीकता से ला सकते हैं। लोग जानते हैं कि मेरा कुछ भी हो जाए, लेकिन जो लोगों ने मुझे दिया है मैं वह दिखाऊंगा ही। यही कारण है कि मेरा नेटवर्क कई देशों में है। ईष्र्या को मानते हैं सबसे बड़ी बुराईमेरा मानना है कि आज सबसे बड़ी बुराई ईष्या है। लोग जब किसी की योग्यता के बराबर नहीं आ पाते तो उसे जाति, धर्म व अन्य प्रकार से दुष्प्रचारित करते हैं। हम खुद को उससे आगे नहीं ले जा सकते, इसलिए उसकी टांग खींचकर अपने बराबर लाने की कोशिश करते हैं।सच के साथ हमेशा

जब भी कोई व्यक्ति सच बोलता है तो लोग उसकी मंशा पर शक करते हैं। सोचने लगते हैं कि जरूर इसका कोई निहित स्वार्थ होगा। उसकी सच्चाई को नहीं स्वीकार करना चाहते हैं। मैं भी जब पहले कोई बात बोलता था, तो लोग कहते थे कि ये तो ऐसे ही बोलता रहता है। लेकिन अब जब लोग मुझे समझ गए तो यह बोलना बंद हो गया। इंसान को सच पर अडिग रहना चाहिए। पहले लोग शायद बात न मानें, लेकिन एक बार आप पर विश्वास हो गया तो आपके सच की हमेशा ही जीत होगी।मेरे 'अर्थशास्त्र' से डरते हैं नेताहमारे देश के नेताओं में असुरक्षा की भावना बहुत ज्यादा है। जब कभी किसी नेता को लगता है कि दूसरा नेता योग्य है तो लोग उससे असुरक्षित महसूस कर उसकी टांग खीचने की कोशिश करने लगते हैं। अगर किसी को पता चल जाए कि स्वामी फाइनेंस मिनिस्टर बनने वाले हैं तो बाकी नेताओं में डर आ जाएगा, इसे सारा अर्थशास्त्र पता है। यह आ गया तो सब खेल बिगाड़ देगा। तो पहले ही टांग खीचना शुरू कर देंगे। अमेरिका में कोई बोल सकता है कि मैं प्रेसीडेंट बनना चाहता हूं, लेकिन अगर इंडिया में कोई बोले कि मैं पीएम बनूंगा तो लोग पहले ही उसके पीछे पड़ जाएंगे।डंडा चलाकर देश नहीं चला सकते
देश में इकनॉमिक रिफॉर्म लाना बहुत जरूरी है। मैंने खुद इसके लिए काम किया है। जब मैं चंद्रशेखर और नरसिम्हा राव के कार्यकाल में था, तो इसके लिए प्रयास किए। मैं चाहता हूं देश में सरलीकरण आए। इसके लिए लोगों को प्रोत्साहित करना पड़ेगा। लोगों को डंडा दिखाकर आप देश नहीं चला सकते। अमीरों के पास तो चार्टड एकाउंटेंट हैं लेकिन गरीब तो रेखा के नीचे है। हमें मध्यम वर्ग का खास ध्यान रखना होगा, क्योंकि यह मध्यम वर्ग ही है जो देश के लिए वाकई बचत करता है।यह भी पढ़ें : कुछ गलत हो तो आवाज उठाना जरूरी हैबहुत कुछ है करने कोइस देश में बहुत कुछ किया जा सकता है, लेकिन लोग करते नहीं। हमारे देश में 60 परसेंट सोडियम है। अगर हम उसका वाकई उपयोग करेंगे तो पूरे साउथ को पॉवर मिल सकती है। देश में पानी को लेकर लड़ाई होती है। कावेरी विवाद और भी कई। लेकिन इजरायल, सऊदी अरब जैसे कई देशों में समुद्र के पानी से नमक निकालकर उसे पीने योग्य बना लेते हैं। ऐसे ही कई चीजें हैं जो हमे बड़े विवादों के सॉल्यूशंस देती हैं। हमें उनको अपनाना चाहिए।अपनी योजनाओं पर भरोसामुझे अपनी योजनाओं पर पूरा भरोसा है। पीएम का नोटबंदी का फैसला वाकई अच्छा था। इससे उल्फा, नक्सलाइट्स को धक्का लगा। कश्मीर में पैसे लेकर पत्थरबाजी करने वाले खत्म हो गए। हालांकि देश के भीतर का कालाधन बाहर लाने की जो तैयारी होनी थी, उसकी योजना शायद सही से नहीं बनाई गई, जो कि फाइनेंस मिनिस्ट्री को तैयार करना था। छोटी-छोटी कमियां रह गई। जमीनी लेवल पर भी थोड़ी कमी रह गई जिससे एक अच्छी योजना को सुचारू रूप में लागू करने में परेशानी हो रही है। मैने भी इसको लेकर कुछ प्लान्स शेयर किए थे। अगर पूरी तरह इम्प्लीमेंट होते तो कोई परेशानी नहीं होती।प्रोफाइलसुब्रमनियन स्वामी बीजेपी के लीडर और राज्यसभा के सदस्य हैं।महज 24 साल की एज में उन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री हासिल कर ली, 27 साल में वे हार्वर्ड में मैथ पढ़ाने लगे थे। 1968 में अमत्र्य सेन के बुलावे पर वो दिल्ली आए और 1969 में आईआईटी दिल्ली से जुड़ गए। 1974 और 1999 के बीच डॉ सुब्रमनियन स्वामी 5 बार संसद  सदस्य के रूप में चुने गए। डॉ स्वामी जयप्रकाश नारायण के साथ जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। 1990 और 1991 के दौरान स्वामी योजना आयोग के सदस्य और वाणिज्य मंत्री रहे। इस अवधि के दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के कार्यकाल के दौरान भारत में आर्थिक सुधारों के लिए खाका बनाया। जो बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंहा राव के नेतृत्व में वित्त मंत्री मनमोहन सिंह द्वारा 1991 में लागू किया गया।Report by : Vishesh Shuklavishesh.shukla@inext.co.inNational News inextlive from India News Desk

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari