- यूनिवर्सिटी में होने वाले हर एक मामले में बना दी जाती है जांच कमेटी

- जांच कमेटी की रिपोर्ट कभी पूरी नहीं होती और न ही रिजल्ट निकलता

- पेपर आउट, छेड़खानी, कंपनी के खिलाफ बनाई गई थी जांच कमेटियां

- ऐसे कई और मामलों में आजतक जांच कमेटी का कोई निर्णय नहीं आया

रूद्गद्गह्मह्वह्ल: वीसी साहब यूनिवर्सिटी में कुछ भी गलत होता है, उस पर जांच कमेटी बनाकर बैठा देते हैं। जांच कमेटी की जांच आने से पहले ही वह डंप हो जाती है। जांच कमेटी की न तो रिपोर्ट आती है और न ही कभी अपने निर्णय पर पहुंच पाती। पेपर आउट हुआ और जांच कमेटी की रिपोर्ट का पता नहीं चला। छेड़खानी और अब बार कोड कंपनी द्वारा गड़बड़ी के मामले में जांच कमेटी बना दी गई। ऐसे तो आप जांच कमेटियां ही बनाते रहेंगे और रिजल्ट कुछ नहीं निकलेगा तो फिर ऐसी जांच कमेटियों का फायदा क्या है?

पेपर आउट मामला

दो जून को बीए व बीएससी मैथ का पेपर आउट हुआ। यह पेपर फ‌र्स्ट मीटिंग में बीएससी और बीए मैथ फ‌र्स्ट ईयर का था। जिसका पेपर रात में ही आउट हो गया और बंट भी गया। जैसे ही इसकी भनक यूनिवर्सिटी ने मेरठ और सहारनपुर मंडल का यह पेपर निरस्त कर दिया। इस मामले में कुलपति वीसी गोयल ने जांच कमेटी बनाकर जांच शुरू कर दी है। इसमें तीन प्रोफेसर्स को लगाया गया। इसके बाद एक और पेपर आउट हुआ और उसमें तीन युवकों को पकड़ लिया गया। जांच चली और उसका रिजल्ट आज तक नहीं निकला।

छेड़खानी मामला

सीसीएस यूनिवर्सिटी कैंपस में मौजूद लॉ डिपार्टमेंट में दिल्ली की रहने वाली एक ग‌र्ल्स स्टूडेंट एलएलएम कर रही है, जिसने 16 जून को डिपार्टमेंट में ट्यूटर मनोज मलिक पर अपने साथ अश्लीलता करने और विरोध करने पर पति व मां के साथ मारपीट करने का आरोप लगाया था। इस मामले में भी यूनिवर्सिटी ने जांच कमेटी बनाई थी। इसका आखिरी रिजल्ट किसी को आजतक पता नहीं चला। कमेटी बनी और खानापूर्ति करके काम निपट गया। किसी का कुछ नहीं बिगड़ा।

मूल्यांकन गड़बड़ी

करीब डेढ़ महीने पहले बार कोड कंपनी के एक कर्मचारी द्वारा कॉपी बदलने का मामला सामने आया था। उसमें वीसी साहब ने जांच कमेटी बनाई और आरोपी के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज करा दी। इसके बाद मामला धीरे-धीरे शांत हो गया और आरोपी के खिलाफ दी गई शिकायत वापस ले ली गई। इसके बाद उसी कर्मचारी व उसके अन्य दोस्तों पर फिर कॉपी बदलने का मामला सामने आया। साथ ही मामले में सुबूत भी सामने हैं। रिकॉर्डिंग तक हैं। इसमें फिर जांच कमेटी बनाई और रिपोर्ट कॉपी चोरी होने की दर्ज करा दी।

यहां जांच के नाम पर खेल होता है

बार कोड के बाद कॉपी में गड़बड़ी का खेल एकदम साफ है। इसके बाद भी वीसी का विश्वास कंपनी के कर्मचारियों पर कायम है। जबकि ये लोग ढाई हजार रुपए से लेकर पांच हजार रुपए तक कॉपी को बदलने और उसका बार-कोड दिखाने के लेते हैं। जांच कमेटी में तीन मेंबर रखे गए, जिनमें एक मेंबर ने जांच कमेटी में शामिल होने से साफ मना कर दिया। इसके बाद जांच जिस तरह हो रही है यह सबको मालूम है। वीसी भी इसको जांच तक सीमित करके बैठ जाते हैं।

कमेटी पर सवाल

- कमेटी पर किसका दबाव होता है जो अपने रिजल्ट तक नहीं पहुंच पाती।

- मामला कोई भी हो जांच कुछ दिन दिखाई देती है, बाद में डंप हो जाती है।

- पेपर आउट मामले से लेकर यूनिवर्सिटी में होने वाले बवाल तक में जांच का रिजल्ट नहीं निकलता।

- मामला यूनिवर्सिटी से थाने तक पहुंचता है और वहां जाकर खत्म हो जाता है।

- किसी भी आरोपी पर कार्रवाई करने के लिए जांच कमेटी रिपोर्ट नहीं देती।

- यूनिवर्सिटी में बड़े-बड़े कांड हुए लेकिन जांच कभी पूरी नहीं हो पाई।

जांच करने का काम बेसिकली पुलिस का है। पेपर आउट मामले में भी मैंने चार को पकड़कर पुलिस को दिया था। उसमें पुलिस ने आजतक कुछ नहीं किया। जांच कमेटी भी कहां तक काम करेगी। कमी तो है, अब उसको कैसे दूर किया जाए। यह ऊपर की बात है।

- प्रोफेसर एचएस सिंह, प्रो वीसी, सीसीएस यूनिवर्सिटी

जांच कमेटी में वही लोग रखे जाते हैं, जिनका उन मामलों से लिंक होता है। यूनिवर्सिटी में सड़क घोटाला हुआ, क्वेश्चन पेपर लीक, बार कोड कंपनी के कर्मचारियों का मामला हुआ, छेड़खानी का मामला हुआ, इनमें से किसी में भी इनकी जांच का रिजल्ट नहीं आ पाया। बस जांच कमेटी बना देते हैं और काम खत्म हो जाता है।

- अंकित चौधरी, छात्र संघ अध्यक्ष, डीएन कॉलेज

यूनिवर्सिटी पर वर्क लोड अधिक है, इसलिए गड़बडि़यां भी अधिक होती हैं। जांच कमेटियां बनती हैं, लेकिन वे किसी न किसी बैरियर के कारण अटक जाती हैं। अब इन जांच कमेटियों का रिजल्ट क्यों नहीं आ पाता इसको तो ऊपर बैठे लोग ही बता सकते हैं या फिर जो जांच करता है वही बता पाएगा।

- स्नेहवीर पुंडीर, सहायक प्रशासनिक अधिकारी, सर छोटूराम इंजीनियरिंग कॉलेज

Posted By: Inextlive