क्या भारत का सुहाना आर्थिक सफ़र ख़त्म हुआ?
थाइलैंड दुबारा से मंदी के दौर में है, मेक्सिको की अर्थव्यवस्था फिर से सिकुड़ रही है, रूस में विकास दर महज़ 1.2 फ़ीसद है - ये दर वही है जो मंदी से धीरे-धीरे उबर रहे पश्चिमी मुल्कों में देखी जा सकती है.ब्राज़ील में विकास की दर पिछले साल से एक फ़ीसद कम थी. वो मुल्क यानी क्लिक करें भारत जिसपर सभी की नज़र है, उसे आर्थिक विकास की उस दर को हासिल करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है जो वहां 1980 के दशक के पहले हुआ करती थी.पतली हालतये पिछले सालों की वो कहानी नहीं जहां विकास दर ने ऊचाईयों को छूआ था.हालांकि ऐसा नहीं है कि सभी विकासशील देशों में अर्थव्यवस्था की स्थिति इतनी ही पतली है.उदाहरण के तौर पर फ़िलीपिंस में दूसरी तिमाही में विकास की दर पिछले साल के मुक़ाबले साढ़े पांच फ़ीसद ज़्यादा थी.
लेकिन बहुत सारे ऐसे विकासशील मुल्क हैं, जिनकी अर्थव्यवस्था ख़ासी बड़ी है, जिसमें धीमापन देखने में आ रहा है.इससे ये सवाल उठता है कि क्या विकासशील देशों में अर्थव्यवस्था के विकास की कहानी का अंत हो चुका है.क़र्ज पर टिकी मांगनिवेशक इन मुल्कों से पैसा निकालकर दूसरी जगहों पर ले जा रहे हैं.
"आपको इस बात का कि कौन नंगा तैर रहा है तभी पता चलता है जबकि लहरें वापस चली जाती हैं."-वारेट बफेट, मशहूर कारोबारीपिछले दशक में आर्थिक विकास ज़रूरत की वस्तुओं की तेज़ मांग और अमरीका में उपभोगी चीज़ों के अधिक इस्तेमाल की वजह से थी.लेकिन ये मांग सस्ते क़र्ज़ की उपलब्धि की वजह से पैदा हुई थी जो बहुत दिनों तक जारी नहीं रह सकती थी.जबकि ज़रूरत की चीज़ों की मांग का शानदार चक्र मंद पड़ रहा है और अमरीकी उपभोक्ता पहले से कम ख़रीदारी कर रहा है, दुनिया भर में विकास की रफ़्तार धीमी पड़ेगी.लेकिन ये विकासशील मुल्कों में आर्थिक विकास में आई तेज़ी के ख़ात्मे की कहानी नहीं है.पांच फ़ीसद विकासउन एशियाई मुल्कों में, जहां हाल के दिनों में आर्थिक विकास का बेहतर दौर जारी रहा, एक बड़ा मध्य वर्ग उभरा है जो मांग को जारी रख सकता है.अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष या आईएमएफ़ ने भविष्यवाणी की है कि इन मुल्कों में विकास की दर पांच प्रतिशत से अधिक होगी. ये भविष्यवाणी उस सूरत में होगी जब किसी किस्म का आर्थिक संकट पैदा न हो.इन मुल्कों में विकास की दर भले ही धीमी हो गई है लेकिन वो अभी भी ख़ासी अच्छी है.
हाल के दिनों तक इन देशों में सात फ़ीसद से अधिक विकास दर दर्ज की गई थी. ये दर अमरीका में 1990 और 2000 के दशकों में दर्ज दरों से दो गुना से भी ज़्यादा थी.विकासशील देशों के आर्थिक विकास में आई कमी की एक वजह तो ये है कि उनके और पश्चिमी देशों के बीच विकास के क्षेत्र में तरक्की के लिए बहुत कम फ़ासला बचा है.आधा सकल घरेलू उत्पाद
इस साल वैश्विक अर्थव्यवस्था में 2008 की मंदी के बाद से सबसे कम बढ़ोतरी होगी. हालांकि इस बार किसी मंदी का ख़तरा नहीं है लेकिन भारत जैसी अर्थव्यवस्था में अगर धीमापन जारी रहता है तो उसके लिए दिक्कतें पैदा हो सकती हैं.लेकिन जैसा कि वॉरेन बफ़ेट ने साल 2008 की मंदी के समय बैंको की स्थिति लेकर कहा था, “आपको इस बात का कि कौन नंगा तैर रहा है तभी पता चलता है जबकि लहरें वापस चली जाती हैं.”