अफ्रीका से बाहर अफ्रीकी देशों का आज से दिल्ली में सबसे बड़ा जमघट लग रहा है जिसमें 40 देशों के राष्ट्राध्यक्ष सहित 54 देशों प्रतिनिधि लेंगे हिस्सा लेंगे।

अफ्रीकी देशों का सबसे बड़ा सम्मेलन
आपसी गुटबाजी और सीमा विवाद को लेकर आपसी झगड़े में उलझे रहने वाले अफ्रीका के देशों को भारत एक मंच पर एकजुट होने का मौका दे रहा है। इन देशों को यह मौका सोमवार से शुरू होने वाले भारत-अफ्रीका सम्मेलन में मिलेगा। सम्मेलन 29 अक्टूबर तक चलेगा जिसमें 40 अफ्रीकी देशों के राष्ट्राध्यक्षों समेत 54 देशों के प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे। अफ्रीका के बाहर अफ्रीकी देशों का यह सबसे बड़ा सम्मेलन है।
मंगलवार को होगी द्विपक्षीय वार्ता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सितंबर, 2015 में अपने अमेरिका दौरे के दौरान संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता हासिल करने के लिए जो मुहिम शुरू की थी उसकी बानगी इस सम्मेलन में भी देखने को मिलेगी। प्रधानमंत्री मोदी और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज अफ्रीकी देशों के राष्ट्राध्यक्षों व विदेश मंत्रियों से द्विपक्षीय बातचीत शुरू करेंगे। इसमें संयुक्त राष्ट्र के मौजूदा स्वरूप में बदलाव के लिए समर्थन हासिल करना सबसे अहम होगा। यह महत्वपूर्ण बातचीत मंगलवार को होगी।
सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए अफ्रीकी देश दें समर्थन
रविवार को अफ्रीका-भारत संपादक सम्मेलन को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री स्वराज ने कहा कि भारत और अफ्रीका महादेश को संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद में प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है। इस बड़ी असंगति को जल्दी ही दूर किया जाना चाहिए। विदेश मंत्री की संयुक्त राष्ट्र में सुधार के मुद्दे को केंद्र में लाने की कोशिश से जाहिर है कि इस सम्मेलन में भारत ज्यादा से ज्यादा अफ्रीकी देशों का समर्थन जुटाने की कोशिश करेगा। जानकारों का कहना है कि यह एक उपयुक्त फोरम होगा। अफ्रीका के कई देश न सिर्फ मौजूदा व्यवस्था में बदलाव चाहते हैं, बल्कि वह भारत जैसे अपने करीबी राष्ट्र को सुरक्षा परिषद में  स्थायी सदस्य के तौर पर देखना भी  चाहते हैं। इससे उनके हितों की भी रक्षा होगी।

पर्यावरण हितों और डब्लूटीओ के मुद्दों पर सभी विकासशील देशों की मदद
विदेश मंत्री ने अफ्रीकी देशों के साथ पर्यावरण मुद्दे पर पेरिस (फ्रांस) में होने वाली आगामी शीर्षस्तरीय बैठक और केन्या में विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) के अहम मुद्दों पर भी अफ्रीकी देशों के साथ एक रणनीति बनाने पर जोर दिया। ताकि इन दोनों सम्मेलनों में विकासशील देशों के हितों को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर एकस्वर में बात की जा सके।  भारतीय कूटनीति के लिहाज से ये तीनों मुद्दे आने वाले दिनों में सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण साबित होने वाले हैं। भारत को पर्यावरण हितों और डब्लूटीओ के मुद्दों पर सभी विकासशील देशों की मदद चाहिए। भारत जो मुद्दे इन क्षेत्रों को लेकर उठा रहा है, उनसे अफ्रीकी देश भी सहमत हैं। पेरिस सम्मेलन और केन्या सम्मेलन में अफ्रीकी देशों का समर्थन मिलता है तो भारत विकासशील देशों की तरफ से मजबूती से आवाज उठा सकेगा।
भारती की ऊर्जा सुरक्षा के लिए अहम
अफ्रीका के कई देशों के  हाइड्रोकार्बन क्षेत्र में भारत निवेश करना चाहता है। ऐसे में यह सम्मेलन भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए भी  अहम साबित हो सकता है। एक दर्जन देशों के पास हाइड्रोकार्बन का बहुत बड़ा भंडार है। उत्तरी अफ्रीका के नाइजीरिया में हाइड्रोकार्बन का बड़ा भंडार हाल ही में मिला है। भारत इन्हें निकालने में नाइजरिया की आर्थिक मदद करना चाहता है। इसी तरह मोजाम्बिक के पास गैस का बहुत बड़ा भंडार है। यहां भी भारतीय कंपनियां निवेश करना चाहती हैं। इन देशों में पहले से ही भारत निवेश कर रहा है लेकिन अब इसका आकार बढ़ाना चाहता है।

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Posted By: Molly Seth