- कई नेताओं को अपनी मनहूसियत का शिकार बना चुका है यह बंगला

- कइयों ने पद गंवाया तो कइयों सेहत, अमर सिंह ने तो खो दिया करियर

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LUCKNOW: सूबे के मुखिया का पड़ोसी आखिर कौन नहीं बनना चाहता, लेकिन सत्ता के गलियारे में चहलकदमी करने वालों के बीच ये 'ओहदा' इन दिनों एक पहेली बन गया है। अब इसे इत्तेफाक कहें या कुछ और, पर बीते कुछ समय से इस बंगले को लेकर लोगों के बीच एक अनकहा डर सा महसूस किया जाने लगा है। जी हां, हम बात कर रहे हैं बंगला नंबर सिक्स की, कालिदास मार्ग स्थित इस बंगले को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है कि पिछले एक दशक से इसमें जो भी आया उस पर मुसीबतों का पहाड़ टूटा। कोई जेल में है तो कोई कोमा में, किसी ने बेटा गंवाया, तो किसी को अपना पद से हाथ धोना पड़ा। वैसे तो वैज्ञानिकों की तरह हम भी इसे महज को-इसीडेंट ही मानते हैं लेकिन चलिए बीते एक दशक से अधिक समय से इस बंगले में रहने वालों की दास्तां आपको बताते हैं।

घटता गया अमर सिंह का कद

साल, ख्00फ् में मुलायम सिंह की सरकार बनी उस वक्त अमर सिंह का कद पार्टी और सरकार में काफी बड़ा था। उत्तर प्रदेश विकास परिषद के चेयरमैन के रूप में मुलायम सिंह के पड़ोस का बंगला अमर सिंह को एलॉट हुआ था। सरकार में रहते ही एक सीनियर मिनिस्टर के साथ अमर सिंह की खींचतान शुरू हो गई। धीरे-धीरे अमर सिंह का राजनैतिक कद घटने लगा। पिछले क्0 सालों में अमर सिंह का यूपी में रुतबा किस कदर घटा है, वह जगजाहिर है। स्वास्थ्य के मोर्चे पर भी उनको लंबी जद्दोजहद करनी पड़ा, किडनी बदलवाने के लिए सिंगापुर जाना पड़ा। यही नहीं नोट फॉर वोट मामले में सलाखों के पीछे भी रहे।

अर्श से फर्श पर बाबू सिंह कुशवाहा

साल, ख्007 में सत्ता बदली और बसपा सुप्रीमो मायावती ने सूबे की बागडोर संभाली। इस बार मायावती के खास थे बाबू सिंह कुशवाहा। ओहदे के हिसाब से उन्हें ये बंगला एलॉट हुआ। यह वो दौर था जब जब बाबू सिंह कुशवाहा को बसपा का सेकेंड मैन कहा जाने लगा था। उनकी तूती पूरे प्रदेश में बोलती थी, लेकिन सरकार जाते-जाते बाबू सिंह कुशवाहा भ्रष्टाचार के आरोपों में सलाखों के पीछे पहुंच गए, फिलहाल गाजियाबाद की डासना जेल में बंद हैं।

दो साल से कोमा में वकार अहमद शाह

साल, ख्0क्ख् में फिर सत्ता बदली और चीफ मिनिस्टर का पड़ोसी बनने का मौका श्रम मंत्री वकार अहमद शाह को मिला। कुछ दिन बाद शाह की तबियत खराब हुई और वह धीरे-धीरे कोमा में चले गये। पिछले दो साल से वह कोमा में हैं और सिविल हॉस्पिटल में जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं। कोमा में जाने के बाद उन्हें मंत्री पद से हटा दिया गया।

राजेंद्र चौधरी से छिना जेल डिपार्टमेंट

वकार अहमद शाह को मंत्री पद से हटाया गया तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ साये की तरह रहने वाले कैबिनेट मंत्री राजेंद्र चौधरी को यह बंगला एलॉट कर दिया गया। तब तक लोगों ने भी इस बंगले के किस्से गढ़ने शुरू कर दिये थे। यह बात राजेंद्र चौधरी के कानों तक भी पहुंची कि यह बंगला लोगों के लिए अशुभ साबित होता है। लेकिन उसे राजेंद्र चौधरी अंधविश्वास माना। राजेंद्र चौधरी बंगले में शिफ्ट होते उससे पहले ही उनकी कुर्सी हिलने लगी। राजेंद्र चौधरी से जेल विभाग जैसा महत्वपूर्ण प्रभार लेकर राजनीतिक पेंशन का मंत्री बना दिया गया। एक समय ऐसा भी आया जब उनके मंत्री पद पर ही संकट के बादल मंडराने लगे। हाथ से मंत्री पद जाता, इससे पहले उन्होंने उस बंगले में जाने से इंकार कर दिया।

जावेद आब्दी ने सहा बेटे का गम

राजेंद्र चौधरी के बंगला छोड़ने के बाद बंगले के चर्चे हर जुबान पर तैरने लगे। यहां तक की बंगले के अंदर जो नहीं भी हुआ था उसके भी किस्से सुनाये जाने लगे। कई महीनों तक यह बंगला खाली पड़ा रहा। यह बात सीएम के दोस्त और पॉल्यूशन बोर्ड के चेयरमैन बनाए गए जावेद आब्दी तक पहुंची उन्होंने बंगले को एलॉट कराने में दिलचस्पी दिखायी और रंग रोगन के बाद बंगले के बाहर जावेद आब्दी की तख्ती लग गयी। बड़ी मन्नतों और क्ब् साल की दुआओं के बाद उनके घर में औलाद हुई थी। एक हफ्ते पहले आब्दी को अपने बच्चे का गम सहना पड़ा। अब इसे महज इत्तेफाक कहिए या वास्तु का दोष। लेकिन चर्चा तो यह भी है कि यहां कभी एक ऑफिस हुआ करता था जिसके हेड प्रदीप शुक्ला थे। प्रदीप शुक्ला भी एनआरएचएम घोटाले में जेल में हैं।

सिर्फ और सिर्फ को-इंसीडेंट

यह सिर्फ और सिर्फ को इंसीडेंट हो सकता है इसके सिवा कुछ नहीं। लोग चीजों से बहुत जल्दी को-रिलेट कर देते हैं और जब एक बार इस तरह का कोई हादसा हो जाता है तो इंसान का माइंड सेट निगेटिव हो जाता और निगेटिव ही ख्याल आता है। अगर कोई इस बंगले में रहा और वह जेल चला गया तो वह अपने कर्माें की वजह से गया है ना कि बंगले की वजह से। इसी तरह अगर किसी की तबियत बिगड़ी तो वह उसकी हेल्थ प्रॉबलम हो सकती है। उनका कहना है कि दुख दर्द हर फैमिली में चलता रहता है। लेकिन जब इस तरह का निगेटिव ख्याल आता है तो हल्का सिर दर्द का कारण भी आपको बंगला लगने लगता है। इसी बंगले में अभी कोई ऐसी फैमिली आ जाए जिसे पिछली घटनाओं की जानकारी ना हो तो उसके साथ कोई प्रॉब्लम नहीं होगी।

प्रदीप श्रीवास्तव, सीनियर साइंटिस्ट

महज अंधविश्वास

मैं अंधविश्वास पर यकीन नहीं रखता। जहां तक बंगले की बात है, मैं मंत्री होते हुए भी छोटे से मकान में रह रहा हूं। बंगला नम्बर म् मुझे एलॉट किया गया था लेकिन मैं उसमें रहने नहीं गया।

-राजेंद्र चौधरी, मिनिस्टर, राजनैतिक पेंशन। यूपी।

Posted By: Inextlive