Q.अगर मेरे फ्रेंड की मां मुझे एक कप चाय देती हैं और चाय बहुत टेस्टी नहीं है तो मैं यह सच कैसे बोल सकता हूं कि चाय टेस्टी नहीं है. क्या मुझे यहां झूठ नहीं बोलना चाहिए कि चाय बहुत टेस्टी है?


Ans: By Brahmakumar Nikunj ji-Spiritual Educatorहम सभी ने सुना है, ‘ट्रूथ इज स्ट्रैंजर दैन फिक्शन’. फिक्शन किसी क्रिएटिव थिंकर का इनोवेशन होता है. हो सकता है कि यह रियलिटी के बेहद करीब हो लेकिन फिर भी यह रियलिटी नहीं होता है. हो सकता है कि आज के दौर में सच बोलना कई लोगों के लिए बहुत मायने नहीं रखता है फिर भी बहुत से लोगों के लिए यह वे ऑफ लाइफ है. तो एग्जैक्टली ट्रुथ है क्या, इसे एक एग्जाम्पल से समझने की कोशिश करते हैं.ऐसे समझिए


पांच साल का एक बच्चा अपनी मां से पूछता है कि ट्रेन कैसे चलती है. मां अपने हाथ को मुंह के पास ले जाती है और एक जेस्चर बनाते हुए ‘कू छुक छुक छुक’ की आवाज लगाती है. बच्चा मां के आंसर से सेटिस्फाई हो जाता हैै. बाद में जब बच्चा हाई स्कूल में पढऩे लगता है तो उसके टीचर उसे बताते हैं कि ट्रेन इंजन इलेक्ट्रिसिटी से रन करती है और पूरी ट्रेन एक मैग्नेटिक सिस्टम से चलती है. यही लडक़ा जब इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाई करता है तो टीचर उसे इस्टीम इंजन, डीजल इंजन, इलेक्ट्रिकल इंजन और उनके वर्किंग सिस्टम के बारे में डीटेल में बताते हैं. सेम लडक़ा लोकोमोटिव इंजीनियरिंग में जब पीएचडी कर रहा होता है तो वह ट्रेन की एक नई डिजाइन ‘हाईब्रीड सिस्टम’ के बारे में जानता है.तो क्या है रियल ट्रुथ अब आइए खुद से पूछते हैं कि इसमें रियल ट्रुथ क्या है? मेरे हिसाब से सभी आंसर वैलिड और ट्रु हैं. रेलेवेंट आंसर एक-दूसरे से अलग होते हुए भी सही हो सकते हैं, ये सिचुएशन पर डिपेेंड करता है. इसमें एब्सोल्यूट ट्रुथ सेम रहता है, बस सिचुएशन के मुताबिक कहने का तरीका बदल जाता है.Is lying really necessary?

बिल्कुल नहीं. हमें चाहिए कि हम लोगों की अच्छी चीजों को अप्रीशिएट करें न कि उनकी बुरी चीजों को लेकर दूसरों से झूठ बोलें. हालांकि लोग ऐसे एप्रिशिएशन की उम्मीद करते हैं जो सच नहीं होती लेकिन आपको चाहिए कि आप उनकी सच्ची लेकिन अच्छी चीजों को ही अप्रीशिएट करें. जहां आप किसी की सच्ची तारीफ करके उनका रेस्पेक्ट पाते हैं वहीं झूठी तारीफ करके आप उनके इगो को बूस्ट करते हैं. ज्यादातर समय लोग जान रहे होते हैं कि आप उनकी झूठी तारीफ कर रहे हैं ऐसे में आप उनके रिस्पेक्ट की उम्मीद नहीं कर सकते हैं. यहां हम सच बोलकर टैक्टफुल और ज्यादा डिप्लोमैटिक हो सकते हैं. हमारा रियल एग्जिटेंस सोल है ना कि बॉडी. हमें चाहिए कि हम हर किसी में पॉजिटिव चीजें देखें. कहीं ना कहीं हम रियलाइज करते हैं कि हमें झूठ बोलने की जरूरत नहीं है.Truth v/s Lies

कहा जाता है ‘अब्सेंस ऑफ ट्रुथ इज लाइज’, फिर भी हम झूठ क्यों बोलते हैं. दरअसल कोई भी झूठ इसलिए बोलता है क्योंकि उसे सच से डर लगता है और वह नहीं जानता किइसका इस्तेमाल कैसे करें. हमें सच को जरूरत के मुताबिक डिप्लोमैटिक, पॉजिटिव और एप्रिसिएटिव तरीके से बोलना चाहिए. याद रखिए अननेससरी स्ट्रेट फारवर्ड होना न सिर्फ हार्मफुल होता है बल्कि इसे इंमेच्योर बिहेवियर से भी जोडक़र देखा जाता है. अगर आप अपने दोस्त के घर गए हैं और उसकी मां आपको चाय पीने को देती हैं और आप बैड टेस्ट की वजह से चाय की तारीफ नहीं कर पा रहे हैं तो आप चाय बनाने की उनकी एफर्ट के लिए तो कॉम्प्लीमेंट दे ही सकते हैं. यह सच भी है.  हमें यह जरूर रियलाइज करना चाहिए कि इस दुनिया में हमारे आसपास बहुत सी अच्छी चीजें हैं और इन गुडनेस के लिए हमें अप्रीशिएट करने की प्रैक्टिस भी होनी चािहए. हमें उन चीजों के बारे में बोलने से बचना चाहिए जो बहुत अच्छी नहीं हैं या उन सच से भी मुंह मोड़ लेना बेहतर होगा जो अनप्लीजेंट हैं.No one can lie, no one can hide anything, when he looks directly into someone's eyes.Paulo CoelhoBrazilian lyricist and novelist

Posted By: Surabhi Yadav