प्रसून जोशी. सिर्फ नाम ही काफी है. देश के यंग क्रिएटिव राइटर पोएट स्क्रिप्ट एंड डायलॉग्स राइटर के रूप प्रसून के आज लाखों फैंस हैं. वो खुद भी अपनी जिंदगी को ही अपना आदर्श मानते हैं. पिछले दिनों आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने जब उन्हें टटोला तो काफी कुछ अनकहा भी सामने आया...


आपके पिता गनर्वमेंट सर्विस में थे और मां टीचर। शायद क्रिएटिव राइटर को कोई बैकग्राउंड नहीं था। फिर आपको ये चस्का कहां से लगा? मुस्कुराते हुए बोले तब तो ये भी जानते होंगे कि मेरी फैमिली में म्यूजिक का गहरा प्रभाव था। मेरे पैरेंट्स म्यूजिक में विशारद थे। बस कहीं न कहीं कविता लिखने का बीज वहीं से जन्मा। म्यूजिक और पोएट्री के इस कॉम्बिनेशन को जरा समझाएंगे? म्यूजिक प्याला है और शराब हम बनाते हैं। शब्द ही किसी संगीत को यादगार बनाते हैं। आज भी पुराने सॉन्ग्स सिर्फ इसलिए जिंदा हैं क्योंकि उनमें शब्द हैं, कविता है। नये भूल जाते हैं क्योंकि उनमें सिर्फ संगीत होता है।17 साल की उम्र में खुद की किताब पब्लिश कराने की प्रेरणा कहां से मिली?


प्रेरणा नहीं। वो तो मैं लिखता था तो कलेक्शन बनता गया। किसी ने कहा कि पब्लिश करा लो। बस एक किताब सामने आई। आप जब कुछ लिखते हैं तो उससे ज्यादा मजा तब आता है जब आप उसे छपे हुए कागज में सूंघते हैं। शायद वहीं मुझे और ज्यादा लिखने की प्रेरणा मिली।

क्रिएटिव राइटिंग के कई फॉर्मेट में आप काम कर रहे हैं। कविता के अलावा फिल्मों के लिए सॉन्ग, ऐड फिल्मों के लिए स्लोगन, फिल्म स्क्रिप्ट और डायलॉग्स लिख रहे हैं। इनमें सबसे ज्यादा क्या पसंद है? सब कुछ पसंद है। जो लोगों को उसी फॉर्मेट में पसंद आए जिसके लिए मैंने उसकी रचना की है। जैसे मैंने हंसाने के लिए लिखा और लोग हंस पड़ें, रुलाने के लिए लिखा और पढ़ कर लोग रो पड़ें। राइटिंग में सबसे चैलेंजिंग क्या लगता है? डिमांड पर लिखना। अब डायरेक्टर ये कहे कि हीरोइन को दु:ख भरा गाना गाना है तो इसके लिए पोएट को खुद में छद्म दु:ख वाला वातावरण बनाकर जीना पड़ता है तब शब्द फूटते हैं। तारे जमीं पर फिल्म पर जब मुझे बच्चे के मां से बिछडऩे पर लिखने को कहा गया तो काफी चैलेंजिंग रहा। मुझे बचपन की एक घटना याद आई और तब शायद मैं ‘मां’ गीत लिख सका। आप की कलम के लाखों लोग दीवाने हैं मगर पर्सनली आप किससे इंस्पॉयर हैं?सच कहूं तो मैं सबसे इंस्पॉयर हूं क्योंकि मैं सबसे सीखता हूं। मगर अपनी जिंदगी को मैं अपना सबसे बड़ा आदर्श मानता हूं क्योंकि ज्यादातर चीजें मैं इसी से लिखता हूं।

‘गुलजार साहब से मेरी तुलना की जाती है तो मुझे फख्र होता है’


गुलजार साहब से मेरी तुलना की जाती हैं तो मुझे फख्र होता है। मैं उसके आगे कुछ नहीं। हां, उनकी लेखनी में उनके बीते हुए कल की झलक है तो मेरी जिंदगी में मेरे जिंदगी की। और दोनों की जिंदगी में काफी अंतर है। गुलजार साहब एक ऐसी शख्सियत है जिनके जैसा बनना हर एक शायर का ख्वाब होता है। मेरी तुलना जब भी उनसे होती है, फख्र होता है।

Posted By: Inextlive