Mathura: जवाहरबाग के दहशतगर्देां के खिलाफ नफरत इस कदर है कि पावन श्रीधाम में उनका अंतिम संस्कार तक संतों ने नहीं करने दिया. वृंदावन के मोक्षधाम पहुंचे संतों ने दो टूक कह दिया कि वृंदावन की रज मिलने का सौभाग्य पुण्य आत्माओं को मिलता है इन पापियों के शव का स्पर्श भी इस रज से नहीं होने देंगे. करीब दो घंटे तक मनुहार करने के बाद भी संतों के तेवर देख पुलिस बैकफुट पर आ गई. और मथुरा में ही रामवृक्ष यादव सहित 19 आतताइयों को खाक में मिला दिया गया.

वृंदावन में कथित सत्याग्रहियों के अंतिम संस्कार का विरोध
ऑपरेशन जवाहरबाग में मारे गए 19 कथित सत्याग्रहियों के शव पुलिस को मिले थे। सोमवार को इनका पोस्टमार्टम करने के बाद अंतिम संस्कार की तैयारी की गई। पुलिस की तैयारी थी कि 13 शव मथुरा के मोक्षधाम और छह का अंतिम संस्कार वृंदावन में किया जाएगा। पुलिस मथुरा से शव लेकर रवाना भी न हो पाई थी कि दोपहर 1.30 बजे महामंडलेश्वर नवल गिरि महाराज और महंत फूलडोल बिहारी दास अन्य संतों के साथ यमुना के वंशीवट घाट के पास स्थित श्मशान घाट पहुंच गए और विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। कोतवाली पुलिस को विरोध की जानकारी मिली तो एसएसआइ नरेंद्र सिंह उन्हें समझाने पहुंचे। मगर, संत नहीं माने। कह दिया कि वृंदावन की भूमि बहुत पावन है। ये प्रेम की धरती है। दुनिया भर के लोग चाहते हैं कि मृत्यु के बाद उनकी देह को ये रज नसीब हो। ऐसे में इन पापियों का अंतिम संस्कार वृंदावन में नहीं होने दिया जाएगा। यहां प्रदर्शन होते देख पुलिस ने पानीगांव के पास यमुना किनारे अंतिम संस्कार की तैयारी कर ली। वहां पुलिस पहुंची तो पीछे-पीछे यही संत भी पहुंच गए। कह दिया कि वृंदावन में किसी भी स्थान पर उनका अंतिम संस्कार कर दिया तो जनता के साथ मिलकर आंदोलन किया जाएगा। इस पर पुलिस को अपना निर्णय बदलना पड़ा।


दहशतगर्दों का हाल तो आतंकियों से भी बुरा
राधा-कृष्ण की पावन धरती में जहर घोलने आए दहशतगर्दों का हाल तो आतंकियों से भी बुरा हुआ। न जाने किसके लिए लड़े, किसके लिए मरे। खुद के बनाए नफरत के जंगल में जान गंवा दी। समाज और देश के लिए सत्याग्रह का झूठा ¨ढढोरा पीटने वालों के जीवन की कड़वी हकीकत तो ये सामने आई है कि उनके परिवार भी उनके साथ नहीं थे। पुलिस इंतजार करती रही, लेकिन कोई उनका चेहरा भी आखिरी बार देखने कोई नहीं आया। आखिर सोमवार को खाक होकर इसी मिटटी में मिल गए। जवाहरबाग में दो साल से काबिज हजारों विद्रोहियों ने मथुरा के न सिर्फ प्रशासनिक अधिकारी, बल्कि आम जनता के दिलों में भी दहशत के बीज बो दिए थे। शांतिपूर्वक उन्हें हटाने के तमाम प्रयासों के बाद बुधवार रात को पुलिस फोर्स उन्हें बलपूर्वक, लेकिन बिना ¨हसा के खदेड़ने पहुंची। मगर, पूरी तरह खूनी खेल पर आमादा रामवृक्ष यादव और उसके साथियों ने फाय¨रग खोल दी, जिसमें एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी और एसओ संतोष यादव शहीद हो गए। खुद को घिरा देखकर उन लोगों ने जवाहरबाग में आग लगा दी। इसके बाद पुलिस-प्रशासन और मथुरा की जनता के दिलों में इन दहशतगर्दों के खिलाफ नफरत भड़कना तो लाजिमी था। मगर, हकीकत ये है कि समाज के इन विद्रोहियों का विरोध उनके घर और गांवों तक में था। यही वजह है कि बरामद 19 शवों को अब तक पुलिस रखे रही। इंतजार था कि उनका कोई परिजन आ जाए तो उसे शव सौंप दिया जाए। मगर, कोई परिजन तो क्या, किसी को फोन तक पूछताछ के लिए नहीं आया। अंतत: प्रशासन ने सोमवार सुबह 19 दहशतगर्दों का पोस्टमार्टम कराया, फिर मथुरा के ध्रुव घाट पर लावारिस में उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया।

 

वकील आया रामवृक्ष का शव लेने
मृतकों में किसी का परिजन तो नहीं आया, लेकिन एक व्यक्ति सुबह पुलिस के पास पहुंचा। सूत्रों के मुताबिक, वह खुद को रामवृक्ष की बेटी का वकील बता रहा था। उसके पास कोई अधिकारिक पत्र भी नहीं था और न ही शव पर दावा करने वाला उसके साथ था। पुलिस ने यह कह कर इन्कार कर दिया कि शव सिर्फ परिजन के सुपुर्द किया जा सकता है। पुलिस ने रामवृक्ष के गांव मरदह गाजीपुर सूचना भेजी थी, लेकिन उसके गांव के लोगों ने भी शव को अपनी सुपुर्दगी में लेने से इंकार दिया था। इसकी लिखित सूचना भी एसएसपी कार्यालय भेजी गई थी। रामवृक्ष की बेटी दिल्ली में रहती है और उसका नाम गुडिया बताया गया है।

Posted By: Inextlive