Mathura: ऑपरेशन जवाहरबाग की सफलता पर लगे खून के दाग इस बड़ी कार्रवाई की रूपरेखा में थे तो मगर इस तरह से नहीं. रिहर्सल तो छोडि़ए कुछ प्रशासनिक अधिकारी तो रैकी के भी पक्ष में नहीं थे. विगत में सत्याग्रहियों की हरकतों को लेकर उनके शिविर में जाने का मामला हो या फिर बाग के बगल वाले भवन पर कब्जा न होने देने का प्रकरण पुलिस ने जिस तरह से कार्रवाई की. ये अफसर ऐसा कतई नहीं चाहते थे. इनका मानना था कि इन सत्याग्रहियों को अपनी ताकत और तरीके का आभास भी न होने दिया जाए.

मार्च 2015 में जवाहरबाग में दाखिल हुए कथित सत्याग्रही
सत्याग्रही बनकर मार्च 2015 में जवाहरबाग में दाखिल हुए ये असामाजिक तत्व पूरी तरह आतंकी-नक्सली जैसी मानिसकता के थे। धरने की अनुमति लेकर जवाहरबाग पहुंचे और फिर सरकारी आवासों तक पर कब्जे का प्रयास किया। सहारा न्यायालय में याचिका दायर करने का लिया, लेकिन कभी अफसर तो कभी मीडिया को बंधक बनाकर कानून हाथ में लेते रहे। तीन माह पहले भी पुलिस-प्रशासन के साथ इनकी झड़प हुई। इस सारे घटनाक्रम से ऑपरेशन जवाहरबाग की रणनीति बना रहे प्रशासनिक अफसर उनकी मानसिकता भांप गए थे। बारीकी से एक-एक ¨बदु का अध्ययन वह कर चुके थे। प्रशासनिक सूत्रों के मुताबिक, रणनीति में शामिल प्रशासन के अफसरों ने पुलिस को बार-बार इसी बात से आगाह किया था कि दुश्मन को अपनी ताकत का अंदाजा मत कराओ। समय-समय पर कई बार सत्याग्रहियों और पुलिस का आमना-सामना हुआ।
हर बार मुंह की खानी पड़ी पुलिस को
पुलिस को हर बार ही मुंह की खानी पड़ी। तब भी कुछ प्रशासनिक अफसरों ने पुलिस की इस तरह की कार्रवाई से नाइत्तिफाक जाहिर किया था। इनका कहना था कि इससे ये लोग हमारी एक-एक तौर-तरीके से वाकिफ हो जाएंगे और मुकाबला करने के लिए अपनी रणनीति में बदलाव कर लेंगे। मगर, न जाने क्यों, पुलिस के अफसर वही काम करते रहे। बार-बार रेकी करने पहुंचे। कई बार वहां से दौड़ना पड़ा और दहशतगर्दों के हौसले बुलंद होते गए। अफसर ये तो मानते थे कि बगैर खून-खराबा हुए ये ऑपरेशन नामुमिकन है। हो सकता है किआमने-सामने की फाय¨रग से कुछ सत्याग्रही मारे जाएं। ये भी आशंका थी कि सत्याग्रही अपने ही लोगों को मार डालें और तोहमत पुलिस-प्रशासन पर आ जाए। अफसरों का मानना था कि रणनीति इस तरह से बनाई जाए कि उनको उकसाकर सामने लाया जाए। तब सामने से वार किया जाए। लेकिन, ऐसे सुझावों को नजरअंदाज किया जाता रहा। और ऑपरेशन में दो जांबाज अफसरों को शहादत देनी पड़ी।

 

नहीं आया RAF
प्रशासनिक सूत्र बताते हैं कि ऑपरेशन के लिए आठ कंपनी आरएएफ और दो कंपनी महिला आरएएफ की मांगी थीं। मई के पहले सप्ताह में ये फोर्स भेजने का आश्वासन मिलता रहा। मगर ऐनवक्त तक ये फोर्स उपलब्ध नहीं कराया गया।

 

Posted By: Inextlive