सोमवार रात करीब साढ़े ग्‍यारह बजे तमिलनाडु की मुख्‍यमंत्री जयललिता ने दुनिया को अलविदा कह दिया। इसके बाद लाखों लोगों की मौजूदगी में मंगलवार को उनके पार्थिव शरीर को MGR मेमोरियल मरीना बीच पर पंचतत्‍वों में विलीन कर दिया गया। अब यहां पर आप भी सोच रहे होंगे कि हिंदू होने के नाते उनका भी अंतिम संस्‍कार हिंदू रीति-रिवाजों से ही किया गया होगा। आपको बता दें कि ऐसा नहीं है। अंतिम यात्रा के बाद उनको दफना कर समाधि दे दी गई। यहां दूसरा सवाल मन में उठना लाजमी है कि ऐसा आखिर क्‍यों किया गया। आइए आपको बताएं कि इसके पीछे क्‍या रहे कारण।

नेताओं में थी भ्रम की स्थिति
जयललिता के अंतिम संस्कार को लेकर एआईएडीएमके नेताओं में बड़ा भ्रम था। काफी चर्चा के बाद पार्टी के उच्च पदाधिकारियों ने तय किया कि जयललिता के शव को दफनाया जाएगा। ठीक उसी तरह जैसे पूर्व मुख्यमंत्री एमजी रामाचंद्रन को दफनाया गया था। अब जयललिता की समाधि भी ठीक उन्हीं के बगल में बनाई गई। यहां उनको अंतिम विदा देने के लिए हजारों की संख्या में लोगों की भीड़ उमड़ी।
आयंगर नमम लागने वाली थीं जयललिता
जयललिता के बारे में ये भी बताया जाता है कि वह नियमित रूप से प्रार्थना करने वाली और माथे पर अक्सर आयंगर नमम लगाने वाली थीं। ऐसे नियम वाली जयललिता को दफनाने के फैसले पर एक वरिष्ठ सरकारी सचिव ने कहा कि वह उनके लिए आयंगर नहीं थीं। उनके लिए वह किसी भी जाति और धार्मिक पहचान से परे थीं।

इन नेताओं को भी दफनाया गया था
सिर्फ यही नहीं आपको ये भी बता दें कि पेरियार, अन्ना दुरई और एमजीआर जैसे द्रविड़ नेताओं को भी दफनाया गया था। सरकारी सचिव ने कहा कि उनके पास उनके शरीर का दाह संस्कार करने की कोई मिसाल नहीं है। ऐसा होने के कारण उन्हें चंदन और गुलाब जल के साथ दफनाया गया। उनके पार्टी के लोगों का कहना है कि पूर्व नेताओं की तरह दफनाए जाने से समर्थकों को एक स्मारक के तौर पर उन्हें याद रखने में मदद मिलती है।

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Posted By: Ruchi D Sharma