-कांग्रेस बुद्धिजीवी प्रकोष्ठ ने 140 वीं जयंती पर याद किया स्वतंत्रता आंदोलन के सूत्रधार को

-विनायक पाण्डेय की पुस्तक 'इंदिरा गांधी शहादत के 30 वर्ष' का हुआ लोकार्पण

PATNA: यदि पं राज कुमार शुक्ल न होते, तो गांधी जी चंपारण नही आए होते, और ऐसा नहीं होता तो स्वतंत्रता आंदोलन की स्थिति क्या होती कहा नहीं जा सकता। नीलहे किसानों की व्यथा कैसी थी, उसे आज के लोग नहीं समझ सकते। शुक्ल जी इसके प्रत्यक्ष साक्षी और भुक्तभोगी थे। उन्हें विश्वास था कि गांधी जी के चंपारण आ जाने से किसानों का शोषण बंद होगा। कांग्रेस बुद्धिजीवी प्रकोष्ठ की ओर से महान किसान नेता और महात्मा-गांधी को चंपारण लानेवाले, और ऐतिहासिक चंपारण आंदोलन के सूत्रधार पं राज कुमार शुक्ल की 140वीं जयंती पर आयोजित समारोह का उद्घाटन त्रिपुरा के एक्स गवर्नर और सीनियर कांग्रेसी नेता प्रो सिद्धेश्वर प्रसाद ने किया।

ये शुक्ल की तैयारी थी

समारोह के चीफ गेस्ट पटना यूनिविर्सिटी के इतिहास डिपार्टमेंट कि प्राध्यापिका प्रो पद्मलता ठाकुर ने पं शुक्ल को 'बिहार के गांधी' के रूप में याद किया और कहा कि, भारत की स्वतंत्रता आंदोलन की नींव चंपारण की भूमि पर महात्मा गांधी ने रखी थी, पर इसके लिए भूमि की तैयारी पं शुक्ल ने ही की थी।

.और बनी गांधी की प्रयोगशाला

अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि चंपारण की धरती, भारत में गांधी के सत्याग्रह का प्रथम प्रयोगशाला बनी थी। इसी चंपारण ने उन्हें देश का शीर्षस्थ नेता, महात्मा और अंत में 'राष्ट्रपिता' की लोक-उपाधि से महिमा मंडित किया। सभी जानते हैं कि इनके चंपारण आने से पहले तक गांधीजी का परिचय, तत्कालीन कांग्रेस-अध्यक्ष के सचिव के रूप में था। इसका सारा श्रेय पं शुक्ल को जाता है।

ये सवाल कांग्रेसजनों से पूछे जाएंगे

डा सुलभ ने कहा कि यह दुर्भाग्य है कि, पं शुक्ल को जो मूल्य मिलना चाहिए वह हम दे नहीं सके और उन्हें लगभग बिसरा दिया गया। देश के अन्य प्रांतों से भले न पूछा जाए, पर बिहार के लोगों से भावी पीढि़यां अवश्य पूछेगी कि तूने ऐसा क्यों किया? यह सवाल खास तौर से कांग्रेसजनों से पूछे जाएंगे। सन 2000 में उनकी 125वीं जयंती पर, भारत सरकार ने उनकी स्मृति में 'डाक-डिकट' अवश्य जारी किया, किंतु इसके अतिरिक्त ऐसा अबतक कुछ नही हुआ, जिसका उल्लेख किया जा सके। हमें उनके नाम पर चंपारण में एक कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना करनी चाहिए। मौके पर लेखक विनायक पाण्डेय की पुस्तक 'इंदिरा गांधी-शहादत के 30 वर्ष'' का लोकार्पण भी किया गया। पं शुक्ल के नाती विपीन तिवारी, विनायक पाण्डेय, हाजी सुल्तान अहमद, डा सुशील झा, डा मुमताज रुही, पं शिवदत्त मिश्र, आचार्य आनंद किशोर शास्त्री, राजेन्द्र तिवारी, शशि भूषण सिंह, हरि मोहन मिश्र, फि़रोज़ हसन, योगेन्द्र मिश्र, ललितेश्वर प्रसाद राय, डा नजीबा अमान, आंद मोहन झा आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

Posted By: Inextlive