ईर्ष्या की मूल प्रकृति यह है कि आप अभी जैसे हैं उससे असंतुष्ट हैं तो जैसे ही आप किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जिसे देखकर आपको लगता है कि उसके पास आपसे ज्यादा है आपको ईर्ष्या होती है।

सवाल: सद्गुरु, मैं अक्सर जीवन में बहुत सारा पैसा कमाने के बारे में सोचता हूं। मैं इसके लिए मेहनत करने के लिए तैयार भी हूं। पर जब मुझे कुछ समझ में नहीं आता, तब मैं परेशान हो जाता हूं। मेरे पास जो है, वो काफी है पर मुझे फिर भी संतोष नहीं मिलता। क्या मेरी सोच गलत है?

एक इंसान के रूप में, आप जहां भी हैं, आप उससे कुछ ज्यादा होना चाहते हैं, जो आप अभी हैं। अगर आप बस पैसा जानते हैं, तो आप ज्यादा पैसे के बारे में सोचते हैं। अगर आप ताकत जानते हैं, तो ज्यादा ताकत के बारे में सोचते हैं। अगर आप ज्ञान जानते हैं, तो और अधिक ज्ञान पाने के बारे में सोचते हैं। अगर आप सुख जानते हैं, तो ज्यादा सुख पाने के बारे में सोचते हैं। आपका क्षेत्र चाहे जो भी हो, मूल रूप से हर इंसान उससे कुछ ज्यादा बनना चाहता है, जो वो अभी है। अगर वो कुछ ज्यादा मिल जाए, तो हर हाल में फिर उससे कुछ ज्यादा बनना चाहता है।

विस्तार करने की चाहत, इंसानी स्वभाव का ही एक हिस्सा है। अगर आप इसे ध्यान से देखें, तो पाएंगे कि आप असीम विस्तार चाहते हैं; आपके अंदर कहीं, अनंत हो जाने की लालसा है। आप अपने अंदर इस लालसा को रहने की जगह देते हैं, लेकिन ज्यादातर समय आप ऐसा अचेतन रूप से करते हैं। अगर आप इस असीम और अनंत प्रकृति की खोज अचेतन होकर करते हैं, तो हम इसे भौतिकवाद कहते हैं। अगर आप इसी चीज की खोज चेतन होकर करते हैं, तो इसे अध्यात्म कहते हैं।

सवाल: मैं यह पता नहीं लगा पा रहा कि मेरे लिए कौन-सी दिशा ठीक है। मैं मन में कई चीजें करने की सोचता हूं, पर आखिर में कुछ भी नहीं करता। मैं अपने निर्णय किस आधार पर लूं?

अगर आपमें सही निर्णय लेने की जागरूकता नहीं है, तो अभी आपके हाथ में जो भी काम हैं, उन्हें पूरे दिल से करने में लग जाइए। आप अभी जो भी कर रहे हैं, उसे पूरी भागीदारी के साथ कीजिए। लोग खाने, सांस लेने, उठने या सोने के काम भी भागीदारी के साथ नहीं करते। इसीलिए, उनमें ये समझ पैदा ही नहीं होती कि क्या करना चाहिए। वे जो भी करते हैं, उसमें कमी लगती है- ऐसा लगता है कि उन्होंने गलत काम चुना है। आप जो भी करते हैं, अगर आप उसमें वाकई अपना पूरा जीवन लगाते हैं, तो वो एक महान काम बन सकता है। अपने अस्तित्व के हर पहलू में, पूरी भागीदारी दिखाएं। फिर जीवन निर्णय लेगा, और वो कभी गलत नहीं होता।

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सवाल: क्या प्रेरणा के लिए दूसरों से ईर्ष्या करना ठीक है? अगर दूसरों से ईर्ष्या करके मैं आगे बढ़ने के लिए प्रेरित होता हूं, तो इसमें क्या गलत है?

ईर्ष्या की मूल प्रकृति यह है कि आप अभी जैसे हैं, उससे असंतुष्ट हैं, तो जैसे ही आप किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं, जिसे देखकर आपको लगता है कि उसके पास आपसे ज्यादा है, आपको ईर्ष्या होती है। आप दूसरों से बेहतर होने के चक्कर में अपना जीवन बर्बाद कर देंगे। इसकी बजाय खुद की तृप्ति पाने की दिशा में काम करना बेहतर है। आपका काम ये है कि क्या आप अपने हर काम में खुद को पूरी तरह झोंक रहे हैं? आपका शरीर, मानसिक वास्तविकताएं और भीतरी ऊर्जाएं, क्या आप इनसे अपना मनचाहा काम करवा पा रहे हैं? योग का यही मतलब है। जब आप खुद को इस तरह से तैयार करते हैं कि आपके भीतर हर चीज खूबसूरती से काम करती है, तब स्वाभाविक रूप से आपकी बेहतरीन क्षमताएं बाहर आएंगी।

सद्गुरु। 

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Posted By: Kartikeya Tiwari