Jamshedpur : जॉयदीप सिन्हा इस दुनिया में नहीं हैं. पर मरे भी नहीं. वे जिंदा हैं. वे सांस भी ले रहे. खड़े हैं और आस-पास की हलचल को देख भी रहे हैं. उनके न होने के बाद भी होने का एहसास करा रहे हैं स्मृति उद्यान के 27 पेड़.


खास पल हमेशा जीवित रहेंजॉयदीप सिन्हा इस दुनिया में नहीं हैं। पर मरे भी नहीं। वे जिंदा हैं। वे सांस भी ले रहे। खड़े हैं और आस-पास की हलचल को देख भी रहे हैं। उनके न होने के बाद भी होने का एहसास करा रहे हैं स्मृति उद्यान के 27 पेड़।
टाटा जूलॉजिकल पार्क जाते हुए राइट साइड में ‘स्मृति उद्यान’ पर नजर पड़े तो कभी उसके अंदर भी जाइएगा। वहां जॉयदीप की याद में उनकी 27वीं बर्थ एनिवर्सरी पर जयंत कुमार सिन्हा द्वारा 18 अप्रैल 1998 को 27 पौधे लगाए गए थे, जो अब पेड़ का रुप ले चुके हैं। यही खासियत है स्मृति उद्यान की। यहां पौधे के रुप में आप अपनों की याद को हमेशा के लिए स्थापित कर सकते हैं। बर्थ एनिवर्सरी हो, डेथ एनिवर्सरी या फिर कोई और खास ओकेजन। यहां उन यादों को हमेशा के लिए अमर करने का मौका आपके पास भी है।खास पल हमेशा जीवित रहें


जिंदगी के खास लमहों को पौधे का रुप देने और उसे अनफॉरगेटेबल बनाने का सिलसिला 15 साल पहले 1998 में शुरू हुआ। तब टाटा स्टील के कुछ टॉप ऑफिशियल्स ने ऐसी जगह की तलाश शुरू की जहां वे अपनी यादों को एक पौधे का रुप दे सकें ताकि उनके खास पल हमेशा जीवित रहें और एन्वायरमेंट के लिए भी कुछ अच्छा हो। उनकी तलाश जुबिली पार्क में खत्म हुई। उसके बाद लगभग 5 एकड़ जमीन को इस खास पहल के लिए रिजर्व कर लिया गया। आरआईटी के एक्स प्रिंसिपल भी यहां अमर हैं आरआईटी (रिजनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी) के एक्स प्रिंसिपल डॉ पी ठाकुर को भी इस स्मृति उद्यान ने लोगों की स्मृति में बनाए रखा है। अक्टूबर 1998 में नीलिमा ने एक पौधा लगाया था। ठाकुर प्रसाद वैद को भी उनके फैमिली मेंबर्स ने इस खास जगह पर जीवित रखा है।

जिस मकसद से स्मृति उद्यान को शुरू किया गया था आज वह सक्सेसफुल है। किसी भी व्यक्ति के लिए इससे ज्यादा खुशी की बात और क्या होगी कि उनके अपनों से जुड़ी यादें एक पेड़ के रुप में यहां हमेशा रहता है। - राजेश राजन, चीफ कॉरपोरेट अफेयर्स एंड कम्यूनिकेशन500 रुपये जमा कर अपनों को करें अमर


यहां पौधे लगाने के लिए जुस्को के हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट में जाकर एक फॉर्म भरना होता है, जिसमें पूरा डिटेल लिखना होता है। उस फॉर्म के साथ 500 रुपए भी जमा करने होते हैं। उसके बाद उस पौधे को पेड़ बनने और उसके पूरे मेंटनेंस की जिम्मेवारी उसी डिपार्टमेंट की हो जाती है। पेड़ के नीचे जिनके स्मृति में पौधे लगाए जाते हैैं, उनका नाम और ओकेजन पर लिखा जाता है। Report by : amit.choudhary@inext.co.in

Posted By: Inextlive