Jamshedpur : आजकल हर तरफ नवरात्रि की धूम है. मां की पूजा और आराधना की गूंज से माहौल भक्तिमय है. लेकिन ये क्या सिटी में एक मां ऐसी भी है जिसके बच्चे बुढ़ापे की लाठी तो नहीं बन सके अलबत्ता उन्हें बोझ समझकर साथ भी ना रखा और ढलती उम्र में दर-दर की ठोकर खाने को छोड़ दिया. कुछ ऐसी गर्ल चाइल्ड भी हैं जो पापा बोलना भी नहीं सीख पाई थी लेकिन उनके पापा ने उन्हें दुनिया के हवाले कर दिया. उनके लिए शिशु भवन सहारा बना.


मां ने पूछा, क्या मेरे लिए घर में थोड़ी भी जगह नहीं?उम्र के 70 पड़ाव पार कर चुकी हैं, इकबाल कौर। दो बेटे और दो बेटियों की मां हैं। पोते-पोतियां भी। उम्र के इस पड़ाव पर इकबाल की जिंदगी बच्चों को कहानियां सुनाने और टीवी पर चंद सीरियल्स देखने में गुजरनी चाहिए थी। लेकिन ऐसा ना हो सका। घर का माहौल बिगड़ता देख जब इकबाल ने अपने बेटे से पूछा कि उनके लिए घर में थोड़ी सी भी जगह नहीं हो सकती क्या? बेटे ने कुछ जवाब नहीं दिया। मां ने बेटे के मन को पढ़ लिया। पिछले 8 महीने से इकबाल टेल्को स्थित माता मंजीत कौर वीमेन ओल्ड एज होम में जिंदगी के बचे लम्हों को जीने की जद्दोजहद कर रही हैं।बोरिंग फेल हो गया, एक अदद चापाकल की जरूरत


माता मंजीत कौर वीमने ओल्ड एज होम में रहने वाली मंजीत और इकबाल के लिए पानी की व्यवस्था नहीं। चार साल पहले बोरिंग कराया था जो खराब हो चुका है। ऑटो से पानी मंगवाने पर उन्हें 7 गैलन पानी के लिए 100 रूपए देने होते हैं और उससे किसी तरह एक वीक तक काम चलाती हैं। मंजीत कहती हैं कि नेता लोग भी आए बोरिंग और चापाकल लगवाने का आश्वासन देकर गए लेकिन किसी ने कुछ नहीं किया। अगर आप इनकी हेल्प करना चाहते हैं तो टेल्को स्थित बीएड कॉलेज के पास माता मंजीत कौर वीमेन ओल्ड एज होम में जाकर इनकी हेल्प कर सकते हैं। आप 0657-2283199 पर मंजीत कौर से बात भी कर सकते हैं। आप आई नेक्स्ट से भी कांटैक्ट कर सकते हैं।मंजीत कौर को लगभग 40 साल पहले पति ने छोड़ दिया था। उनकी कोई संतान नहीं। मायके वालों ने भी मुंह मोड़ लिया। कहते हैं ना, जिंदगी मिली है तो जीना भी पड़ेगा। मंजीत ने हार नहीं मानी। स्कूल के बच्चों के कपड़े सिलकर और स्वेटर बुनकर एक-एक पैसे जोडक़र मंजीत ने घर बनवाया।

मंजीत जिंदगी से मिले दर्द ने एहसास करा दिया था कि जब कोई सहारा नहीं होता तो जिंदगी का हर पल किस तरह के इम्तहान लेती है। तभी उन्होंने फैसला कर लिया था कि उनका घर उन बेसहारा बुजुर्ग माताओं के लिए सहारा होगा जिन्हें अपनों ने ठुकराया हो। तब से आजतक उनके ओल्ड एज होम में कई ऐसी बेसहारा महिलाओं को सहारा मिल चुका है। उन्होंने अपना घर सरबत दो भला चेरिटेबल ट्रस्ट को दान दे दिया है। तीन साल पहले उन्हें पेरलाइसिस अटैक आया और आज वे ठीक से बात भी नहीं कर पाती। - सिस्टर, निर्मल शिशु भवन


बेटी को भार समझा, कर रहे होंगे कन्या की पूजानवरात्रि में कुंवारी कन्याओं को मां का रूप मानकर उनकी पूजा की जाती है। लेकिन हमारे ही आस-पास कुछ ऐसे लोग रहते हैं जो बेटियों को भार समझते हैं। न्यू बाराद्वारी स्थित निर्मल शिशु भवन में कई ऐसी गर्ल चाइल्ड हैं जिन्हें नन्हीं सी उम्र में उनके पैरेंट्स ने छोड़ दिया। इनमें कुछ ऐसी बच्चियां भी हैं जिनकी मां नहीं हैं लेकिन पिता ने भी उन्हें साथ रखना ठीक नहीं समझा। शिशु भवन की सिस्टर का कहना है कि ऐसे केसेज अक्सर आते ही रहते हैं।एक दिन की थी तो अनीशा को छोड़ गए थे उसके पापा
अनीशा अब तीन महीने की हो चुकी है। उसको यह नाम भी बाराद्वारी स्थित निर्मल शिशु भवन में ही मिला। उसके जन्म लेते ही मां चल बसी। पिता ने बेटी को पालना उचित नहीं समझा और छोड़ गए शिशु भवन में। सुशीला 8 महीने की है। मोनिका, सरस्वती और सोनामुवी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। हम नवरात्रि के दौरान कन्याओं की पूजा मां का रूप समझकर करते हैं। ये भी तो कन्याएं हैं तो इनकी पूजा कौन करेगा। इन्हें कौन एहसास दिलाएगा कि बेटियां बोझ नहीं होती। इनके पास जाकर कौन कुछ पल बिताएगा ताकि इन्हें भी थोड़ा सा प्यार मिले जिसके लिए ये तरस रही हैं। ये जब बड़ी होंगी तो इनके पास भी कई सवाल होंगे लेकिन उसका जवाब कौन देगा?

---क्या कहूं बेटा। बुजुर्ग मां के लिए बेटे के घर में थोड़ी सी भी जगह नहीं। मैं तो यही चाहती हूं कि मेरे बच्चे जहां भी रहें खुश रहें। मेरा क्या है, थोड़े दिन की जिंदगी है किसी तरह कट ही जाएगी। मेरा बड़ा बेटा और सिटी में रहने वाली बेटी दो बार मुझसे मिलने आए हैं।- इकबाल कौरदुनिया ऐसी ही है। जिन बच्चों के लिए माता-पिता सबकुछ करते हैं बाद में वही माता-पिता उनके लिए बोझ बन जाते हैं। हमें हेल्प करने वालों में, परमजीत सिंह, सेवा सिंह, परमजीत कौर, चरणजीत, श्याम सिंह, रविंदर सिंह, हरमीत सिंह जैसे लोग हैं इसलिए किसी तरह हमारी जिंदगी चल रही है।- मंजीत कौरयहां तो बच्चे आते ही रहते हैं। कई बच्चों को हमने रांची भेजा और वहां से कई को अडॉप्ट भी किया गया। छोटी बच्चियों के पिता ही उन्हें यहां छोड़ जाते हैं। कई केसेज तो ऐसे भी आते हैं जिसमें बेबी गल्र्स सडक़ पर पड़ी मिली हैं। Posted By: Inextlive