भेड़-बकरियों की तरह 51 घंटे का कष्टदायक सफर. धनबाद-अलपुजा एक्सप्रेस में टॉयलेट तक में नहीं रहती जगह. जैसे-तैसे हो रहा है मरीजों को वेल्लोर ले जाने का प्रयास.


रांची (ब्यूरो)। धनबाद-एलेप्पी एक्सप्रेस ट्रेन में पैसेंजर्स भेड़-बकरी की तरह सफर करने के लिए मजबूर हैं। ट्रेन की जेनरल बोगी अपनी हालत पर तो कराह ही रहा है, उससे ज्यादा तकलीफ इस ट्रेन की जेनरल बोगी में सफर कर रहे यात्रियों की है। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की टीम ने धनबाद-एलएपी एक्सप्रेस ट्रेन की जेनरल बोगी में कुछ दूर सफर कर इसका जायजा लिया, तो चौंका देनेवाली बात सामने आई। बाथरूम के बाहर बैठ गए
डीजे आई नेक्स्ट की टीम को जेनरल बोगी में सुधांशु मुखर्जी नामक एक व्यक्ति से मुलाकात हुई, जो अपने बड़े भाई के इलाज के लिए वेल्लोर जा रहे थे। सुधांशु और उनके बड़े भाई को बैठने के लिए सीट नहीं मिली तो दोनों बाथरूम के बाहर बैठ कर सफर करने लगे। सुधांशु जैसे और भी लोग थे जो जैसे-तैसे किसी तरह बैठकर बस अपनी मंजिल तक पहुंचने का इंतजार कर रहे थे। दरअसल इस ट्रेन से ज्यादातर वैसे लोग ही सफर कर रहे थे, जो इलाज के लिए बाहर जा रहे थे, हालांकि रिजर्वेशन की स्थिति थोड़ी ठीक है। दो दिन का सफर


रांची से अलापुजा रेलवे स्टेशन की दूरी 2335 किमी है। दो दिन का समय लग जाता है। ऐेसे में बोगियों में क्षमता से अधिक सवारी रेल यात्रा को दुर्गम बना देता है। धनबाद-एलेप्पी को एंबुलेंस ट्रेन के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि ज्यादातर मरीज इलाज के लिए ही इसमें सफर करते हैं। ट्रेन की स्थिति देख ऐसा लगता है जैसे यह खुद बीमार हो चुकी है, लेकिन न तो रेल प्रशासन एलेप्पी पर नजरें इनायत कर रहा है और न ही किसी जनप्रतिनिधि की इस पर नजर है। 75 स्टेशनों पर रुकते हुए ट्रेन 2,535 किलोमीटर दूरी तय कर धनबाद से एलेप्पी पहुंचती है। एलेप्पी एक्सप्रेस एक मात्र ट्रेन है जो धनबाद को दक्षिण भारत से जोड़ती है। इस ट्रेन से सबसे अधिक लोग इलाज के लिए धनबाद से काटपाड़ी यानी सीएमसी वेल्लोर जाते हैं। एक अनुमान के मुताबिक 80 प्रतिशत टिकट काटपाड़ी स्टेशन के लिए बुक होती हैं, यानी ट्रेन के अधिकांश यात्री काटपाड़ी स्टेशन पर उतरते हैं, लेकिन काटपाड़ी स्टेशन पर ट्रेन का स्टॉपेज सिर्फ पांच मिनट का है, जबकि रास्ते में यह ट्रेन राउरकेला में 8 मिनट, बोकारो, संबलपुर, टिटलागढ़ व विजवाड़ा में 10-10 मिनट तथा रांची में 15 मिनट रुकती है। ट्रेन सुपरफास्ट नहीं

सबसे ज्यादा मरीज लेकर चलने वाली इस ट्रेन का दुर्भाग्य है कि ट्रेन को सुपरफास्ट तक का दर्जा प्राप्त नहीं है। यही वजह है कि दक्षिण भारत पहुंच कर ट्रेन लोकल बन जाती है और हर छोटे-बड़े स्टेशनों पर रुकती है। टे्रन में क्षमता से अधिक जेनरल टिकट काट दिया जाता है। सुविधा के नाम पर रेल प्रबंधन ने कुछ भी उपलब्ध नहीं कराया है। पैसेंजर भेड़-बकरियों की तरह सफर करने पर मजबूर हैं। जान जोखिम में डाल कर यात्रा कर रहे यात्री धनबाद एलेप्पी में सफर करने वाले यात्री जान जोखिम में डाल कर यात्रा करने को विवश है। कोई गेट के पास बैठा है तो कोई बाथरूम के दरवाजे के बाहर। सीट में चार की जगह पांच से छह यात्री, ऊपर में दो से तीन और खाली पड़े हर स्थान पर यात्री बैठकर यात्रा करते नजर आ जाएंगे। यात्रा कर रहे यात्रियों ने बताया कि मजबूरी है इसलिए इतना कष्ट सह कर यात्रा कर रहे है। रेलवे प्रबंधन को जेनरल बोगी बढा देनी चाहिए। आम नागरिकों को परेशानी न हो। पैसेंजर्स की परेशानी भाई की तबीयत खराब है। इलाज कराने के लिए वेल्लोर ले जा रहे हैं। सीट नहीं मिली तो जहां जगह मिली बैठ गए। आगे किसी स्टेशन में जगह खाली होगी तो सीट पर बैठेंगे। - सुधांशु मुंखर्जी
वेल्लोर जाना बहुत जरूरी है। पिताजी का इलाज चल रहा है। मुझे बोला गया है आने के लिए। जैसे भी जगह मिले बस बैठकर पहुंच जाना है, लेकिन सरकार को हम पैसेंजर्स की तकलीफ समझनी चाहिए। - शिवपूजन वर्मा बहुत परेशानी है। बैठने में भी परेशानी हो रही है। काफी लंबा सफर है। इलाज के लिए जा रहे मरीज इसमें सफर कर और ज्यादा बीमार हो जाएंगे। ट्रेन को इलाज की जरूरत है। - मनीष कुमार

Posted By: Inextlive