रांची: झारखंड के 12 सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित क्षेत्रों से 2300 सहायक पुलिस कर्मचारी लगातार पांच दिनों से अपनी मांगों को लेकर रांची के मोरहाबादी मैदान में धरना दे रहे हैं। सहायक पुलिस कर्मचारियों की नियुक्ति 2017 में तीन साल के लिए हुई थी। बीते 31 अगस्त को सभी की समय सीमा खत्म हो चुकी है। सहायक पुलिस कर्मचारी अब खुद को स्थायी करने की लड़ाई लड़ रहे हैं। इन 2300 सहायक पुलिस कर्मचारियों में अधिकतर 20 से 30 साल की युवतियां हैं। इनमें कुछ छोटे-छोटे बच्चों को साथ लेकर धरने में शामिल हुई हैं। इन युवतियों का कहना है कि हमारा बच्चा अभी से ही अपने हक के लिए लड़ना सीख रहा है। धरना दे रहे युवक-युवतियों का कहना है कि हमलोगों ने नौकरी च्वाइन कर अपने साथ ही आफत मोल ले ली है। सरकार हमारी सुन नहीं रही और जिस क्षेत्र से हम आते वहां नौकरी छोड़कर वापस जा पाना काफी मुश्किल होगा। क्योंकि ये लोग जहां रहती हैं, वह पूरी तरह से नक्सली क्षेत्र है। युवतियों को डर है कि नौकरी से हटा दिए जाने की स्थिति में घर जाने पर नक्सली उन्हें उठा ले जाएंगे, जिसके बाद मजबूरन उसी रास्ते को अपनाना पडे़गा, जिस रास्ते को छोड़कर ये युवा अपने सुनहरे भविष्य की ओर बढ़ रहे थे। क्योंकि इनपर भी परिवार के पालन-पोषण का दायित्व है।

धरती बनी बिछौना, आसमान चादर

मोरहाबादी मैदान यूं तो कई तरह के आंदोलन व धरने का साक्षी रहा है। लेकिन यह पहला मौका है जब वर्दी धारी अपनी मांग को लेकर बीते पांच दिनों से धरना दे रहे हैं। स्थिति ऐसी है कि धरने में बैठे वर्दी धारियों को रोकने के लिए भी वर्दी धारी ही आते हैं। धरने पर बैठे वर्दी धारियों का सोना, उठना, खाना, पीना सब मोरहाबादी मैदान में ही हो रहा है। रात को मोरहाबादी मैदान इन सहायक पुलिस कर्मचारियों के लिए बिछौना और आसमान चादर बन जाता है। वहीं दिन के उजाले में यहां कई अलग-अलग राजनीतिक पार्टी के सदस्यों का आना-जाना लगा रहता है। हालांकि सत्ता पक्ष से अब तक कोई भी इन पुलिस कर्मियों से मिलने नहीं पहुंचा है। युवतियों के नहाने-धोने की परेशानी को देखते हुए नगर निगम की ओर दादा-दादी पार्क खुलवा दिया गया है। साथ ही मोबाइल टॉयलेट और पानी का टैंकर भी यहां उपलब्ध करा दिया गया है।

शहीद हो जाएंगे लेकिन हटेंगे नहीं

धरने पर बैठे सभी सहायक पुलिस कर्मियों की एक ही आवाज है। इनका कहना है शहीद हो जाएंगे लेकिन धरना स्थल से नहीं हटेंगे। जब तक मांगें पूरी नहीं की जाती है। हमलोग हर परिस्थिति को सह कर यहीं धरना देते रहेंगे। गढ़वा से आए सहायक पुलिस कर्मी अविनाश कुमार ने बताया कि जब हेमंत सरकार सत्ता में नहीं आई थी, उस वक्त खुद हेमंत सोरेन ने हम सभी पुलिस कर्मियों से मुलाकात की थी और सरकार बनने के बाद स्थायी करने का आश्वासन भी दिया था। लेकिन आज सरकार बने लगभग दस महीना बीत चुका है। हमारी अवधि भी समाप्त हो चुकी है। लेकिन सरकार की ओर से कोई पहल नहीं की गई। मोरहाबादी आने से पहले हमलोगों ने स्थानीय नेता, मंत्री, विधायक हर किसी से फरियाद लगाई। काला बिल्ला लगाकर काम किया। लेकिन किसी ने भी हमारी मांगे नहीं सुनीं। अब आर या पार की लड़ाई होगी। या तो सरकार स्थायी करे या सभी पुलिस कर्मी यहीं पर आत्मदाह कर लेंगे।

सहायक पुलिस कर्मियों पर अत्याचार कर रही सरकार: रघुवर

नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के आदिवासी-मूलवासी युवक-युवतियों को नक्सलियों के चंगुल से बचाने के लिए हमारी सरकार ने अनुबंध पर सहायक पुलिस की नियुक्ति शुरू की थी। तीन साल के अनुबंध के बाद नियमित बहाली करने का लक्ष्य था। इसके लिए समुचित प्रावधान भी किये गये थे। आदिवासी-मूलवासियों की हितैषी होने का दावा करनेवाली वर्तमान सरकार इन पर अत्याचार कर रही है। ये बातें पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहीं। वह बुधवार को मोरहाबादी मैदान में आंदोलन कर रहे सहायक पुलिसकर्मियों से मिलने पहुंचे थे। उन्होंने कहा कि कुछ वर्ष पहले लगातार खबरें आती थीं कि गरीबी से त्रस्त नक्सल प्रभावित क्षेत्र के युवाओं को डरा कर या बरगलाकर नक्सली अपने दस्ते में शामिल करते हैं। इसे देखते हुए सरकार ने फैसला किया कि इन क्षेत्रों के युवाओं को अनुबंध के आधार पर सहायक पुलिस में भर्ती किया जाएगा। तीन साल के बाद इनकी नियुक्ति नियमित कर ली जाएगी। इनकी नियुक्ति से नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नक्सली गतिविधियों को लगाम लगाने में काफी मदद मिली। इन्होंने काफी ईमानदारी से काम किया। कोरोना के दौरान भी इनका कार्य सराहनीय रहा। अब हेमंत सोरेन की सरकार इनकी नियुक्ति पर रोक लगा कर इनके साथ अन्याय कर रही है, यह अमानवीय व्यवहार है।

Posted By: Inextlive