नगर निगम के स्टोर में पड़ी-पड़ी कंडम हो गईं बसें. बसों की सीट बैटरी समेत अन्य पाट्र्स हो गए गायब. सिटी बस में शराबियों का अड्डा.


रांची(ब्यूरो)। राजधानी रांची को सुंदर और रमणीक रांची बनाने के कई बार सब्जबाग दिखाए गए। बड़ी-बड़ी घोषणाएं विकास को लेकर की गईं। लेकिन सभी घोषणाएं ढाक के तीन पात ही साबित हुई हैं। सिटी में बस सर्विस भी इसी उद्देश्य के साथ शुरू किया गया था कि नागरिकों को बेहतर ट्रांसपोर्टेशन की सुविधा मिल सके। कुछ समय ठीक से चलने के बाद बस की हालत धीरे-धीरे खराब होने लगी। अब यह बिल्कुल कंडम हो चुकी हैं। बसों की इस हालत के लिए जिम्मेवार इसके रखवाले ही हैं। सिटी बसों को चलवाने और मेंटेनेंस की जिम्मेवारी रांची नगर निगम की है। लेकिन नगर निगम आंखें बंद कर बैठा है। समय के साथ हर दिन बसों की हालत बदहाल होती जा रही है, लेकिन नगर निगम इसे ठीक कराने की जरूरत ही नहीं महसूस कर रहा। पांच करोड़ की बसें 2005 में खरीदी
राजधानी बनने के बाद पहली बार सिटी में यातायात व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए 2005 में सिटी बस चलाने की योजना बनी। जवाहरलाल नेहरू शहरी पुनरुत्थान मिशन के तहत रांची नगर निगम को 51 सिटी बसें दी गईं। इसमें नगर निगम का करीब पांच करोड़ रुपए खर्च हुआ। सिटी बसों को चलवाने का जिम्मा नगर निगम का था। लेकिन नगर निगम के अधिकारियों की लापरवाही और खराब नीति के कारण कभी भी सारी बसें सड़कों पर नहीं उतर पाईं। 20-25 बसें ही सड़क पर चल सकीं। बाकी की बसें अपर बाजार स्थित नगर निगम के स्टोर में पड़ी-पड़ी खराब होती रहीं। शुरू में नगर निगम ने बसों को चलाने के लिए इसे निजी हाथों मेें सौंप दिया। लेकिन इसके बाद भी सुचारु ढंग से बसें सड़क पर दौड़ नहीं पाईं। नगर निगम ने एक बार फिर से इसे चलवाने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली है। लेकिन आज चलने की स्थिति में 20 से भी कम बसें हैं। सभी बसें स्टोर और इधर-उधर खड़ी-खड़ी कबाड़ हो गईं। साढ़े तीन करोड़ में खरीदी 26 बसें


नगर निगम के पास पहले से 51 बसें थीं। 2017 में नगर निगम ने करीब साढ़े तीन करोड़ रुपए की लागत से 26 बसों की और खरीदारी की। नई बसों की खरीदारी के बाद निगम के पास 77 बसें हो गईं। बसों की संख्या बढऩे से लगा कि सिटी में पब्लिक ट्रांसपोर्ट की बेहतर सुविधा मिलेगी। लेकिन हकीकत में ऐसा कुछ हुआ नहीं। कुल साढ़े आठ करोड़ रुपए खर्च के बाद भी न तो लोगों को यातायात की बेहतर सुविधा मिली और न ही नगर निगम अपने संसाधन की रक्षा ही सही तरीके से कर सका। नई बसों की खरीदारी के बाद पुरानी बसों की देखभाल बिल्कुल बंद हो गई। बसें धीरे-धीरे कबाड़ में तब्दील होती गईं, बसों के पाटर्स भी गायब होने लगे है। अब ये बसे नशेडिय़ों का अड्डा बन चुकी हैं। शाम ढलने के बाद नशेड़ी बस में ही बैठकर ड्रिंक करते हैं। बसों की सीट, बैटरी, पहिए समेत अन्य कल पुर्जे चोरी हो गए।77 बसें संभाल नहीं पाया अब 500 बसों की मांग

नगर निगम के अधिकारियों की कार्यशैली भी अजब-गजब है। पहले मिली 77 बसों को नगर निगम कभी एक साथ रांची की सड़कों पर चला नहीं पाया। अब फिर से 500 बसों की मांग कर डाली है। नगर निगम के अधिकारियों ने यह तर्क देते हुए बसों की डिमांड की है कि 500 बसें आने के बाद शहर की ट्रैफिक व्यवस्था में सुधार होगा। केंद्रीय आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय की ओर से रांची नगर निगम को 500 बसें उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया गया था। बसों को खरीदने की प्रक्रिया अब भी जारी है। इन बसों में इलेक्ट्रिक और सीएनजी से चलने वाली बसें भी शामिल हैं। बसों का परिचालन शहर के हर कोने तक कैसे हो, इसे लेकर नगर निगम एक योजना तैयार कर रहा है। शहर की ट्रैफिक व्यवस्था सुधारने पर फिर से मंथन जारी है। फिलहाल राजधानी के सिर्फ दो रूट पर नगर निगम की सिटी बस चल रही है। एक रूट कचहरी से मेन रोड होते हुए राजेंद्र चौक तक और दूसरा रूट कचहरी से कांटाटोली होते हुए धुर्वा गोल चक्कर तक। इन दोनों रूटों पर बसों की सर्विस ऐसी है कि एक बस के गुजरने के 40 मिनट बाद दूसरी बस आती है। इस कारण लोगों को मजबूरी में ऑटो का सहारा लेना पड़ता है।बसों के परिचालन की योजना तैयार की जा रही है। पुरानी और कंडम हो चुकी बसों की रिपेयरिंग में काफी खर्च का अनुमान है। फिर भी जो बसें ठीक हो सकती हैं, उसे ठीक कराया जाएगा। संजीव विजयवर्गीय, डिप्टी मेयर, आरएमसी

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