लोगों को सुविधा नहीं नशेडिय़ों का अड्डा बनीं सिटी बसें. शुरुआत 91 सिटी बसों से आज सिर्फ 25 बची हैं. 20 बसों को लगा दिया गया है इलेक्शन ड्यूटी में. 5 बसों में ठूंस-ठूंस कर ढोये जा रहे हैं पैसेंजर्स.

रांची(ब्यूरो)। सिटी में आम लोगों की सुविधा के लिए सिटी बस सर्विस शुरू की गई थी, लेकिन दिनों दिन इसकी हालत बिगड़ती जा रही है। नगर निगम इसकी सुध लेने की कोशिश भी नहीं कर रहा है। आम नागरिक तो इन सिटी बसों का लाभ नहीं ले पा रहे हैं, लेकिन नशेडिय़ों और जुआरियों के लिए यह पंसदीदा अड्डा जरूर बन गया है। नागा बाबा खटाल और बकरी बाजार नगर निगम के स्टोर में सिटी बसें कबाड़ अवस्था में पड़ी हुई हैं। बस की सीट से लेकर इंजन और टायर सभी कंडम होते जा रहे हैं। ऐसे भी कई बसें जिन्हें मामूली पैसे खर्च कर ठिक किया जा सकता है। लेकिन निगम की अनदेखी के कारण बसें दिनोंदिन जर्जर और बेकार होती जा रही हैं। इसका फायदा आम लोगों को नहीं मिल रहा है।
96 में सिर्फ 25 बचीं
जेएनएनयूआरएम के तहत राजधानी रांची में 2005 में करीब पांच करोड़ की लागत से 51 बसों के साथ यह सर्विस शुरू की गई थी। बाद में नगर निगम ने और भी बसों की खरीदारी की। एक समय यह संख्या बढ़कर 91 तक पहुंच चुकी थी। लेकिन आज नगर निगम के पास ठीक -ठाक अवस्था में सिर्फ 25 बस रह गई हैं। उनकी भी स्थिति ठीक नहीं है। आये दिन कोई न कोई खराबी बस में आती रहती है। 2017 में नगर निगम ने फिर एक बार करीब साढ़े तीन करोड़ रुपए की लागत से 26 बसें खरीदीं। जिन बसों में मामूली खराबी भी आ जाती है उसे बनवाने के बजाय स्टोर में खड़ा कर दिया जाता एवं नई बस खरीदने की योजना बनने लगती है।
इलेक्शन ड्यूटी में 20 बस
नगर निगम के पास वर्तमान में 25 सिटी बसें हैं, जिनमें 20 बसों को इलेक्शन ड्यूटी में लगा दिया गया है। सिर्फ पांच बस ही राजधानी रांची की सड़कों पर चल रही हैं। बसों की संख्या कम होने के कारण इंसानों को भेड़-बकरी की तरह ठूंसा जा रहा है। लोग भी पैसे बचाने के चक्कर में इस तरह से ट्रेवल करने को मजबूर हैं। सबसे ज्यादा परेशानी स्कूल-कॉलेज जाने वाली लड़कियां, महिलाएं, बुजुर्ग और दिव्यांग को हो रहा है। इन्हें बैठने के लिए सीट तक नहीं मिलती। वहीं भीड़ का फायदा उठाकर चोर-उचक्के भी लोगों के सामान गायब कर देते हैं।
करोड़ों खर्च पर सुविधा नदारद
नगर निगम ने ट्रांसपोर्टेशन के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च कर दिए। लेकिन आम लोगों को सुविधा नहीं मिली। नई बसों की खरीदारी के बाद पुरानी बसों की देखभाल बिल्कुल बंद हो गई। बसें धीरे-धीरे कबाड़ में तब्दील होती गईं, बसों के पाट्र्स भी गायब होने लगे। अब ये बसें नशेड्यिों का अड्डा बन चुकी हैं। शाम ढलने के बाद नशेड़ी बस में ही बैठकर ड्रिंक करते हैं। बसों की सीट, बैटरी, पहिए समेत अन्य कल-पुर्जे चोरी हो चुके हैं। नगर निगम के अधिकारी इधर झांकने तक नहीं आते। इन दिनों बसों का संचालन नगर निगम कर रहा है। पहले के संचालक ने जब इन बसों को हैंडओवर किया उस समय भी बसें खराब अवस्था में थीं। जिसे रिपेयरिंग कर चलने लायक बनाया जा सकता था। लेकिन नगर निगम ने बसों को खड़े-खड़े बर्बाद कर दिया। आज हालात ये है कि बसों की रिपेयरिंग भी नहीं कराई जा सकती।
क्या कहती है पब्लिक
बसों की संख्या हर दिन घटती जा रही है, जिसका फायदा ऑटो चालक उठा रहे हैं। रांची में ऑटो की बाढ़ आ गई है। ये लोग भाड़ा में भी मनमानी करते हैं।
-- राहुल

बस कम और यात्री ज्यादा हो गए हैं, जिससे लोगों को बैठने के लिए सीट भी नहीं मिलती। पैसे देकर भी हमें खड़े-खड़े ट्रेवल करना पड़ता है।
-- अमीशा

बस में ट्रेवल करना आर्थिक रूप से थोड़ी राहत वाली जरूर है। लेकिन बस के इंतजार में काफी समय बर्बाद हो जाता है। बसों की कंडिशन में भी सुधार की जरूरत है।
- अंजली

Posted By: Inextlive