रांची : देश में डेल्टा प्लस का खतरा मंडरा रहा है। जीनोम सिक्वेंसिंग की जांच से पता चलता है कि ये वैरिएंट फैला है या नहीं, मगर राज्य के पास इसकी जांच की मशीन ही नहीं है। इस जांच के लिए झारखंड ओडिशा पर आश्रित है। सैंपल भेजने के बाद वहां से काफी विलंब से रिपोर्ट आती है। कहा जा सकता है कि ऐसे में डेल्टा प्लस वैरिएंट फैल जाए तो झारखंड के पास संभलने का मौका दूसरे राज्यों के मुकाबले में कम है। हालांकि राज्य सरकार खासकर स्वयं मुख्यमंत्री इस मामले में काफी संजीदा हैं। संभावित तीसरी लहर से निपटने की तैयारियों की वे खुद मानीटरिंग कर रहे हैं।

खतरा टला नहीं

आइसीएमआर से बार-बार पत्राचार कर सिक्वें¨सग मशीन की मांग की जा चुकी है। वे बार-बार कह रहे हैं कि अभी लापरवाही नहीं करनी है, खतरा टला नहीं है। इसके बावजूद प्रशासनिक और लैब की लापरवाही से सैंपलिंग की रफ्तार सुस्त है। स्वास्थ्य विभाग के निर्देश के बाद भी लैब द्वारा पर्याप्त संख्या में सैंपल नहीं भेजे जा रहे। इसके अलावा टीकाकरण के प्रति लोगों की उदासीनता, मास्क नहीं पहनने की आदत, शारीरिक दूरी के अनुपालन में कोताही समेत अन्य कोविड नियमों का उल्लंघन इस खतरे को बढ़ाने में और भी सहायक हो सकता है।

जुलाई-अगस्त में खतरा

बताते चलें कि जुलाई-अगस्त माह में कोरोना की तीसरी लहर आने की संभावना जताई जा रही है। कई राज्यों में कोरोना के डेल्टा प्लस वैरिएंट भी मिले हैं और भारत सरकार ने इसे लेकर झारखंड सहित सभी राज्यों को अलर्ट किया है। कोरोना के विभिन्न वैरिएंट की पहचान के लिए आरटी-पीसीआर में पॉजिटिव पाए जानेवाले सैंपल की जीनोम सिक्वें¨सग जरूरी है, लेकिन इसमें मेडिकल कॉलेजों व जांच लैब द्वारा कोताही की जा रही है। राज्य में 28 मार्च से 15 जून तक के 731 सैंपल ही आइएलएस, भुवनेश्वर जीनोम सिक्वें¨सग के लिए भेजे जा सके हैं, जबकि आइसीएमआर ने आरटी-पीसीआर में पॉजिटिव पाए जानेवाले सैंपल में से पांच प्रतिशत (जिनका सीटी वैल्यू 25 से कम है) की जीनोम सिक्वें¨सग कराने का सुझाव राज्यों को दिया है। भेजे गए सैंपल में से 328 सैंपल में कोरोना के वैरिएंट ऑफ कंसर्न (वीओसी) मिल चुके हैं।

300 सैंपल मिनिमम

इधर, स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव अरुण कुमार सिंह ने सैंपल नहीं भेजे जाने पर ¨चता जताते हुए सभी सेंटीनल साइटों (सभी मेडिकल कॉलेज के अलावा जहां आरटी-पीसीआर जांच होती है) से प्रत्येक 15 दिनों पर 15-15 सैंपल जीनोम सिक्वें¨सग के लिए अनिवार्य रूप से भेजने के निर्देश दिए हैं। राज्य में वर्तमान में दस ऐसी साइटें हैं। इस तरह पूरे राज्य से प्रतिमाह न्यूनतम 300 सैंपल भेजने को कहा गया है। इसे लेकर उन्होंने सभी मेडिकल कॉलेजों के प्राचार्यों, अधीक्षकों, रिम्स के निदेशक, आरअी-पीसीआर लैब के सभी नोडल पदाधिकारियों को पत्र लिखा है।

20 दिन से एक माह का समय

मशीन नहीं होने से झारखंड में जीनोम सिक्वें¨सग नहीं हो पा रही है। इस वजह से राज्य को सैंपल भुवनेश्वर भेजने पड़ते हैं, जहां सैंपल की सिक्वें¨सग में 20 दिन से लेकर एक माह तक लग जाते हैं। स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव आइसीएमआर को कई बार पत्र लिखकर जीनोम सिक्वें¨सग मशीन की मांग की है, लेकिन राज्य को अभी तक मशीन नहीं मिल पाई है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य अभियान, झारखंड के राज्य नोडल पदाधिकारी (आइईसी) सिद्धार्थ त्रिपाठी ने कहा है कि इसे लेकर आइसीएमआर के पदाधिकारियों से बात हुई है। राज्य को शीघ्र मशीन मिलने की उम्मीद है। यदि मशीन आइसीएमआर से नहीं मिलेगी तो राज्य सरकार इसे क्रय भी कर सकती है।

क्या है जीनोम सिक्वें¨सग

जीनोम सिक्वें¨सग से कोरोना की प्रकृति का पता चलता है। यह भी पता चलता है कि किसी सैंपल में कोरोना का कौन सा वैरिएंट है। आरटी-पीसीआर में पॉजिटिव पाए गए सैंपल की जीनोम सिक्वें¨सग होती है।

कितने सैंपल में मिल चुके हैं कोरोना के वैरिएंट

डेल्टा (बी.1.617, बी.1.617.2, बी.1.617.3) : 204 (जमशेदपुर-86, रांची-26, धनबाद-32, हजारीबाग-39, पलामू-21)

कापा (बी.1.617.1) : 63 (जमशेदपुर-43, रांची-8, धनबाद-,04, हजारीबाग-05, पलामू -03)

अल्फा/यूके (बी.1.1.7) : 29 (रांची-18, जमशेदपुर-7, पलामू-2, हजारीबाग-2)

अन्य वैरिएंट : 32 (जमशेदपुर-09, रांची-04, धनबाद-13, हजारीबाग-03, पलामू -04)

Posted By: Inextlive